राजेंद्र सजवान
हॉकी प्रेमियों और खासकर, महिला हॉकी के लिए बेहद दुखद खबर है कि भारतीय महिला हॉकी संघ की पूर्व महासचिव मैडम अमृत बोस अब हमारे बीच नहीं रहीं। कोरोना से लड़ते जूझते उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई है। वह अपने पीछे महिला हॉकी का एक ऐसा शानदार अध्याय छोड़ गई हैं, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा। वह 85 साल की थीं।
मैडम स्वयं एक राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रहीं। जानकी देवी महाविद्यालय में वरिष्ठ प्रोफेसर के पद पर रहते उन्होंने जहां एक ओर कॉलेज हॉकी को मजबूती प्रदान की तो दिल्ली और देश की महिला खिलाड़ियों को आगे बढ़ने में भी मदद की।
उनका व्यक्तित्व हमेशा रौबदार रहा, जिसके दम पर उन्होंने दमानिया और निर्मल मिल्खा सिंह जैसी असरदार महिलाओं को अपदस्त कर भारतीय महिला हॉकी को नई पहचान दी। बेशक, वह दबंग मिजाज थीं और महिला हॉकी को पुरुष प्रधान हॉकी फेडरेशन में विलय का विरोध करती रहीं। विलय को लेकर उनका केपीएस गिल जैसे प्रशासक से कई बार टकराव भी हुआ।
हालांकि भारतीय महिला हॉकी टीम ने 1982 के दिल्ली एशियाड में कोरिया को हरा कर पहला खिताब जीता लेकिन सही मायने में भारतीय महिला टीम का स्वर्णिम दौर विद्या स्टोक्स और अमृत बोस की जोड़ी के चलते शुरू हुआ।
2002 में मैनचेस्टर में आयोजित कामनवेल्थ खेलों में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी दमदार टीमों को परास्त कर पहली बार कामनवेल्थ खेलों का स्वर्ण जीतना भारतीय लड़कियों की सबसे बड़ी उपलब्धि थी तो अगले साल एफ्रो एशियन खेलों का खिताब और एक साल बाद अपनी मेजबानी में एशिया कप की जीत अभूतपूर्व प्रदर्शन रहे।
बोस के सचिव पद पर रहते सीता गोसाईं, प्रीतम ठाकरान, मनजिंदर कौर, अमनदीप कौर, ममता खरब, सबा अंजुम, हेलन मेरी और दर्जनों अन्य खिलाड़ी उभर कर आईं। खिलाड़ियों पर उनका दबदबा गज़ब का था। वह सचमुच महिला हॉकी की बोस थीं।