क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
” भारतीय क्रिकेटरों की बेशर्मी के बीच आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर को आई शर्म। आई पी एल छोड़ा, लिखा-लोग मर रहे हैं और यहाँ पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है|” सोशल मीडिया पर इस संदेश को लेकर बहुत कुछ अच्छा और बुरा भला कहा जा रहा है। कोई क्रिकेट को कोस रहा है तो कोई आईपीएल से जुड़े भारतीय खिलाड़ियों को भद्दी गलियाँ दे रहा है|
चूँकि मैं खुद क्रिकेट की एबीसी नहीं जानता इसलिए आईपीएल को कोसने का हमें भी कोई हक नहीं। लेकिन जो सोशल मीडिया और सार्वजनिक प्लेटफार्म पर क्रिकेट के पक्ष-विपक्ष में अपनी अपनी हांक रहे हैं, उन्हें भी आज के हालात को देखते हुए अपना क्रिकेट ज्ञान ज़रूर बाँटना चाहिए क्योंकि सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा।
इसमें दो राय नहीं कि क्रिकेट ने अपने दम पर अपना साम्राज्य खड़ा किया है और उसके सामने बाकी खेलों की कोई हैसियत नहीं है। राज्य और राष्ट्र की सरकारें उसके सामने नतमष्तक हैं। उसके अपने क़ानून और अपनी दादागिरी है। राजनीतिक पार्टियों के नेता क्रिकेट को प्यार करते हैं और क्रिकेट का बड़े से बड़ा अपराध माफ़ कर सकते हैं। यही कारण है कि टोक्यो ओलम्पिक की तैयारी में जुटे खिलाड़ी जब तब कोरोना की चपेट में आ जाते हैं लेकिन आईपीएल निर्बाध गति से आगे बढ़ रहा है और कोरोना को मुँह चिढ़ा रहा है। ऐसा क्यों? कोई साजिश तो नहीं?
कोरोना की विभीषिका के चलते देश के कुछ जाने माने खेल और क्रिकेट पत्रकार आईपीएल के आयोजन को जारी रखने और बीच में रोक देने को लेकर एक राय नहीं हैं। कुछ कह रहे हैं कि आईपीएल महज तमाशा है और इसको जारी रखने या रोक देने से कोई फ़र्क नहीं पड़नेवाला, क्योंकि यहाँ हारने वाली टीम ज़्यादा खुशी मना रही है। साफ है कहीं ना कहीं कोई बड़ी गड़बड़ ज़रूर है।
भला कोई हारना क्यों चाहेगा? क्यों करोड़ों की टीमें और लाखों से बीस करोड़ तक के खिलाड़ी जान बुझ कर हारना चाह रहे हैं? क्यों आस्ट्रेलिया और अन्य देशों के खिलाड़ी और अंपायर बीच खेल को छोड़ स्वदेश लौटना चाह रहे हैं? क्या वे भारतीय खिलाड़ियों से ज़्यादा चरित्रवान् और देशभक्त है?
एक तरफ तो अधिकांश खिलाड़ी कोरोना के कहर के चलते डरे सहमे हैं पर खरीद फ़रोख़्त वाली व्यवस्था के हाथों मजबूर हैं।
जहाँ एक ओर विदेशी खिलाड़ी भारतीय शासन प्रशासन पर उंगलियाँ उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि यह वक्त क्रिकेट के भौंडे आयोजन का नहीं है। कुछ खिलाड़ियों ने भारत में कोरोना से हो रही मौतों के बढ़ते आँकड़े को लेकर चिंता भी जतलाई है और प्रधानमंत्री कोष में दान भी दे रहे हैं। विदेशी क्रिकेटर कह रहे हैं कि आईपीएल आख़िर क्यों सरकारों की मजबूरी बन गया है? लेकिन खुद बीसीसीआई अध्यक्ष सौरभ गांगुली की हठधर्मिता देखिए कि वह निर्धारित कार्यक्र्म के अनुसार आईपीएल को जारी रखने की जिद्द पर आड़े हैं।
एक वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार आईपीएक ना तो क्रिकेट है और ना ही कोई तमाशा,ये पैसा कमाने का धंधा है तो दूसरे कह रहे हैं कि यह क्रिकेट नहीं एक टीवी शो जैसा है जिसमें विष कन्याएँ और अपराधी बाक़ायदा अपनी भूमिका निभाते आए हैं। एक वर्ग कह रहा है कि कोरोना का विकराल रूप देखते हुए यदि आईपीएल के चलते लोग अपने अपने घरों में रह कर मैच का लुत्फ़ उठा रहे हैं तो बुराई क्या है, आख़िर सरकार और प्रशासन भी तो यही चाह रहे हैं कि लोग अपने घरों में सुरक्षित रहें।
सवाल यह पैदा होता है कि आईपीएल को कोई टेढ़ी आँख भी क्यों नहीं देख सकता? क्यों ओलम्पिक वर्ष के चलते सिर्फ़ क्रिकेट चल रहा है? सारा देश बंद है, हा हाकार मची है और आईपीएल अपनी मस्ती में क्यों चूर है? एक वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार इसलिए क्योंकि इस आयोजन में देश के नेताओं, बड़े उद्योगपतियों सट्टेबाज़ों, माफ़िया और अपराधियों का पैसा लगा है। कई बड़े नेताओं के परिजन क्रिकेट बोर्ड और आईपीएल से जुड़े हैं। फिर भला कोई आईपीएल का क्या उखाड़ लेगा?