क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
खेल जगत में भारत ऐसा देश है, जिसे जनसंख्या के हिसाब से दुनिया का सबसे फिसड्डी खेल राष्ट्र कहा जा सकता है। जहाँ एक ओर कुछ एक लाख की आबादी वाले देशों के खिलाड़ी ओलंपिक में झंडे गाड़ रहे हैं तो भारत में एक भी खिलाड़ी ऐसा नहीं जिस पर ओलंपिक पदक जीतने का दाव खेला जा सके। लेकिन तारीफ करनी होगी भारतीय खेल प्रेमियों की जोकि किसी भी खेल को अपनाने से ज़रा भी परहेज नहीं करते।
आजकल भारत में क्रिकेट से मिलते जुलते खेल बेसबाल की गुपचुप लेकिन गंभीर तैयारी चल रही है। यह खेल अपने देश में पिछले पचास सालों से खेला जाता रहा है लेकिन खेल पर कब्जा जमाने की होड़ के चलते बेसबाल खिलवाड़ बनकर रह गया था। हालाँकि, भारतीय बेसबाल फ़ेडेरेशन के महासचिव हरीश कुमार भारद्वाज दावा करते हैं कि देश में इस खेल के 40 हज़ार के लगभग रजिस्टर्ड खिलाड़ी हैं और 33 सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन किया जा चुका है। सब जूनियर और जूनियर स्तर के आयोजन भी लगातार किए जा रहे हैं।
भले ही हमने अपने परंपरागत खेलों से पीछा छुड़ा लिया है लेकिन अन्य देशों के कुछ लोकप्रिय खेलों को आदर सम्मान देने की परंपरा का निर्वाह हम बखूबी कर रहे हैं। ऐसा ही एक खेल है,बेसबाल। हालाँकि यह खेल 18वीं सदी में इंग्लैंड में शुरू हुआ और 19वीं सदी में इसे अमेरिका में बेहद पसंद किया गया, जिसने आगे चल कर अमेरिका के राष्ट्रीय खेल का दर्जा प्राप्त कर लिया।
भारत में भी इस खेल के लिए बाजार खोजने की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। अमेरिका और कनाडा में बाक़ायदा बेसबाल की प्रोफेशनल लीग का आयोजन, मेजर लीग बेसबाल (एमएलबी) के बैनर तले किया जाता है, जिसमें अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान आदि देशों के मंजे हुए खिलाड़ी भाग लेते हैं और लाखों- करोड़ों कमाते हैं।
एमएलबी ने दुनियाभर में अपने खेल के प्रचार प्रसार के लिए एक बड़ा अभियान चला रखा है, जिसके चलते सभी देशों में इस खेल को लोकप्रिय बनाने के लिए बाकायदा खिलाड़ियों और कोचों के प्रशिक्षण शिविर लगाए जा रहे हैं। ‘ट्रेन द ट्रेनर प्रोग्राम‘ नाम से शुरूकिए गए एक कार्यक्र्म के तहत भारत में छोटे बड़े शहरों के कोचों को बेसबाल की बारीकियां सिखाने का काम एमएलबी इंडिया के स्पोर्ट्स हेड डेविड पेलेसे और बिजनेस हेड रियो ताकाहाशी को सौंपा गया है, जोकि लंबे समय से भारत में खेल के लिए संभावनाएँ तलाश रहे हैं और कोचों को अत्याधुनिक ट्रेनिंग के गुर सिखा रहे हैं।
गुड़गाँव में आयोजित ट्रेंनिंग कैंप में डेविड और ताकाहाशी से भारत में खेल की संभावना, और खिलाड़ियों एवम् कोचों के स्तर के बारे में हुई बातचीत से एक बात साफ हो गई कि भारतीय खिलाड़ियों को ही नहीं कोचों को भी अपनी फिटनेस पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। डेविड के अनुसार उनके कार्यक्र्म में शामिल तमाम कोच अभी फिटनेस से बहुत दूर हैं। संभवतया ऐसा कोरोना के चलते हुए लाक डाउन के कारण है,क्योंकि पिछले कई महीनों से खेल गतिविधियाँ लगभग ठप्प पड़ी हैं। भारी भरकम और सौ किलो वजनी कोच ने माना कि वह खुद भी अपनी फिटनेस पर बराबर ध्यान नहीं दे पाए।
डेविड मानते हैं कि क्रिकेट भारत का लोकप्रिय खेल है, जिसके चलते अधिकांश खेल दब कर रह गए हैं। लेकिन लाखों करोड़ों खिलाड़ी एक ही खेल को अपनाएँगे तो संतुलन गड़बड़ा जाएगा। उन्होने क्रिकेट और बेसबाल को एक जैसे खेल बताया और कहा कि दोनों ही खेलों में बाल, बैट, हेल्मेट आदि मिलते जुलते उपकरण प्रयोग में लाए जाते हैं और हिट और रन का नियम भी है।
उन्हें नहीं लगता कि भारत में बेसबाल की लोकप्रियता की संभावना कम है। वह मानते हैं की भारत किसी भी खेल के लिए बड़ा बाज़ार है और एमएल बी हर हाल में भारत को अपने खेल का मजबूत गढ़ बनाने के लिए कटिबद्ध है। उनकी क्रिकेट से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है बल्कि बेसबाल क्रिकेट की छाया में पनपना चाहता है।
ताकाहाशी की राय में खेल को संचालित करने वाली संस्था को प्रयास तेज करने होंगे। उनकी मदद के लिए एमएलबी हर प्रकार से तैयार है। उनके अनुसार एमएलबी दुनियाभर में खेल को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयत्नशील है। राष्ट्रीय फ़ेडेरेशन या उसकी इकाइयों को निशुल्क सेवाएँ दी जा रही हैं। अब गेंद भारतीय फ़ेडेरेशन के पाले में है| उसे अपने स्तर पर प्रयास तेज करने होंगे।
मौके पर मौजूद सचिव हरीश भारद्वाज के अनुसार उनका खेल खेल मंत्रालय से मान्यता प्राप्त है और आईओए की मान्यता भी जल्द मिल सकती है। लेकिन उन्हें लंबा सफ़र तय करना है। भारद्वाज के अनुसार क्रिकेट से उनका कोई मुकाबला नहीं है लेकिन यदि पर्याप्त सुविधाएँ मिलें और खिलाड़ियों को सरकार और अधिक प्रोत्साहन दे तो बेसबाल भी क्रिकेट की तरह लोकप्रिय हो सकता है।