यूँ तो कोरोना का कहर तमाम खेलों पर टूटा है पर भारतीय फुटबाल के लिए वापसी के तमाम रास्ते बंद होते नज़र आ रहे हैं। देश के कुछ पूर्व खिलाड़ी, कोच और फुटबाल के एक्सपर्ट ऐसा मान रहे हैं। पूर्व ओलंपियन और भारत के सर्वकलीन श्रेष्ठ कोच रहीम साहब के सुपुत्र हकीम कहते हैं कि पिछले कई सालों में हमारी फुटबाल ने जो कुछ हासिल करने की कोशिश की उसे कोरोना ने बर्बाद कर दिया है। कुछ इसी प्रकार की राय अंतरराष्ट्रीय कोच बीरुमल भी रखते हैं।
बांग्लादेश की फुटबाल को ज़ीरो से हीरो बनाने में बीरुमल का बड़ा हाथ रहा। उन्होने भारतीय फुटबाल संघ और साई द्वारा नकारेज़ाने के बाद बांग्लादेश की स्कूली और जूनियर प्रतिभाओं के प्रशिक्षण का बीड़ा उठाया और देखते ही देखते बांग्लादेश भारत के विरुद्ध बड़ी ताक़त बन कर खड़ा हो गया। हकीम की तरह उन्हें भी लगता है कि भारत को संभलने में कई साल लग सकते हैं। कारण, 1970 के बाद से हमने अपनी फुटबाल को लगातार गिरते देखा है। संभालने के प्रयास किसी ने किए ही नहीं।
हकीम के साथ ओलंपिक में भाग लेने वाले कुछ खिलाड़ियों को नहीं लगता कि भारत में फुटबाल का माहौल जल्दी से लौट पाएगा। कारण, खेल मंत्रालय, फुटबाल संघ, उसकी इकाइयों और निचले स्तर पर गंभीर और ईमानदार लोगों की कमी है। ज़्यादातर को लगता है कि जब हमारे खिलाड़ी नंगे पाँव खेलते थे तब फ़ेडेरेशन अधिकारी इतने नंगे नहीं थे। आज उनके पास ना कोई योजना है, ना समझ है और ना ही नीयत सही है।
बीरुमल को लगता है कि कोरोना हमारी फुटबाल को ज़ीरो पर धकेल चुका है। क्योंकि सीनियर टीम के अधिकांश खिलाड़ी एक दो साल में बूढ़े हो जाएँगे और अंडर 17 वर्ल्ड कप में खेले ज़्यादातर खिलाड़ियों का कोई पता नहीं। वैसे भी उनमें से कई एक निर्धारित आयुसीमा से कहीं ज़्यादा बड़े थे, जिन्हें फ़ेडेरेशन और साई ने मिलीभगत से ओके कर दिया था।
हकीम के अनुसार एशियन चैंपियनशिप में जिस भारतीय टीम को बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान ने बराबरी पर रोक दिया था उसके अधिकांश खिलाड़ी बूट टाँगने की स्थिति में हैं। उनके खेल में गिरावट साफ नज़र आती है। कोरोना काल के बाद शायद एकदम नई टीम खड़ी करनी पड़ेगी, जिसके लिए भारतीय फुटबाल तैयार नहीं है।
हालाँकि अन्य देशों को भी कोरोना ने नुकसान पहुँचाया है पर उनके पास ऐसा सिस्टम है, जिसके द्वारा नये खिलाड़ी स्वतः निकल कर आते हैं, जबकि भारत में सुनील क्षेत्री, बाई चुंग भूटिया, विजयन, इंदर सिंह, मगन सिंह जैसे खिलाड़ी कई कई सालों में सामने आए। वैसे भी अब ज़िम्मेदार लोगों को राष्ट्रीय टीम की कोई चिंता नहीं है। उन्हें तो बस आईएसएल जैसे बेतुके आयोजन को सजाना संवारना है।
Sahi kaha sajwwn bhai..jaisei gareeb ko corona mei zayda bada jhatka laga hai usi parkar sei kamzor aur badhaal football ko bhi corona kaal nigal gaya hai,ab hamari football ko kaffi wawat lagegaa sudhernei mei……khiladio sei lekei coaches ,referee,admin,grounds men,club owners…sabhi kei liyei mushkil ki gaddhi hai…. let’s hope jaldi he sab normal ho.