पद्मश्री से सम्मानित और 2016 रियो पैरालंपिक में रजत पदक विजेता दीपा मलिक (Deepa Malik) ने टोक्यो में होने वाले धरती के सबसे शानदार आयोजन के लिए ज्यादा से ज्यादा एथलीटों को प्रखर बनाने के लिए एक अलग भूमिका निभाई है। रियो से पहले, वह खेलों की दौड़ में खुद को तैयार करने में व्यस्त थी, और अब उनके पास टोक्यो के लिए कमर कसने वाली पूरे भारतीय दल की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा, “यह बहुत ही विडंबनापूर्ण है कि विकलांगता से योग्यता हासिल करने तक की यात्रा तब शुरू हुई, जब हर किसी ने मुझ से कहा कि मेरा जीवन एक कमरे में खत्म हो जाएगा। मैं कभी भी कमरे से बाहर नहीं जा पाऊंगी। तब मैंने कहा कि मैं एक कमरे में बंद होकर नहीं रहूंगी और बाहर निकल कर रहूंगी।
चाहे वह तैराकी हो, बाइक चलाना या रैलिंग करना हो, मैं हमेशा मैदान पर रहती थी। लेकिन अध्यक्ष की जिम्मेदारी ने मुझे वापस एक कमरे में बैठा दिया है। मुझे बाहर के कई लोग आकर मिलते हैं। इसलिए चाहती हूं कि मैं अंदर रहकर बाहर वालों को कुछ दे सकूं। वहां रहकर में उन्हें उपर उठाने के साथ और सशक्त बनाने में मदद कर सकती हूं।”
एक एथलीट के रूप में दो दशक के करीब बिताने के बाद, उसने एक अलग जिम्मेदारी निभाने का फैसला किया और फरवरी 2020 में भारत की पैरालंपिक समिति की अध्यक्ष चुनी गई। मलिक ने ओलंपिक चैनल को खेल प्रशासन में शामिल होने के पीछे के कारणों के बारे में बताया, “मैंने ज्यादातर पदक अपने देश के लिए एक जिम्मेदार एथलीट के रूप में जीते हैं। मैंने एशियाई खेल, विश्व चैंपियनशिप जीती, रिकॉर्ड भी तोड़े और रियो में पैरालंपिक पदक जीता है।
मैंने हमेशा खुद को खिलाड़ी से ज्यादा खेलों के लिए एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में माना है, जो एक बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। जब भी मैंने पदक जीता तो मुझे लगा कि मैं बदलाव ला सकती हूं। इसने मुझे कुछ नीतियों को बदलने और पैरा-खेल के लिए कुछ जागरूकता पैदा करने के लिए मजबूर करूंगी। इसके पीछे मेरा मकसद था कि खेल जरिये कैसे लोग विकलांगता के साथ सशक्त बन सकते हैं।”
पीसीआई की अध्यक्ष के रूप में खुद की भूमिका का उनके दिमाग में स्पष्ट खाका तैयार है। वह इसमें मिलने वाली चुनौतियों से भलीभांति परिचित हैं और उन्हें माथे पर लेने के लिए भी तैयार है। जबकि वर्तमान में महामारी की स्थिति ने उसके लिए और भी जटिल समस्याएं खड़ी कर दी हैं। उत्कृष्टता के लिए उनके दृढ संकल्प ने विपत्ति को भी एक और अवसर में बदलने में मदद की है।
“महासंघ एक सकारात्मक बदलाव ला रहा है जहां वे एक एथलीट-केंद्रित दृष्टिकोण लेने और अपनी योजनाओं को एथलीटों को केंद्र में रखते हुए तैयार कर रहा हैं। मुझे लगा कि मैं इसमें योगदान कर सकती हूं। खेल ने जो मुझे दिया, मैं इसके जरिये उसे वापस दे रही हूं। एक एथलीट के रूप में मैं कुछ बदलाव ला सकती हूं, फिर नेतृत्व करते हुए एक प्रशासक के रूप में भी। मैं एक एथलीट के रूप में अपने अनुभव के आधार पर निश्चित रूप से बड़ा योगदान दे सकती हूं – जैसे कि एथलीट क्या चाहते हैं और मैं उनकी आवाज बन सकती हूं।”
उन्होंने आगे बताया, “मुझे एक बार इस पद की पेशकश की जा रही थी, तो यह फासलों को मिटाने का एक अच्छा अवसर था। अगर महासंघ खुद प्रमुख भूमिका में एक एथलीट और एक ऐसे व्यक्ति को मौका देना चाहता है जो सबसे गंभीर विकलांगता की श्रेणियों से आता है, तो यह उन्हें और सिस्टम को संवेदनशील बनाता है, जो एथलीटों की जरूरत भी है।”
भूमिका में आये बदलाव ने उन्हें एक कमरे की चार दीवारों पर पहुंचा दिया। एक अध्यक्ष के रूप में उन्हें बैठकें लेनी होती हैं, नीतियां बनानी होती हैं और सरकारी अधिकारियों से मिलना होता है और अन्य जिम्मेदारियां हैं जो उन्हें ट्रैक से दूर कर देती हैं। फिर भी, मलिक अपनी भूमिका को लेकर खुश है, क्योंकि वह अपनी क्षमता के माध्यम से वह अपने कमरे के बाहर से कई और एथलीटों को अंदर ला सकती हैं।