क्लीन बोल्ड /राजेंद्र सजवान
‘मैं चीफ़ नेशनल कोच हूँ। जो चाहूँगा करूँगा, तुम्हें जो करना है कर लो। मैने तो ओलम्पियन मनोज कुमार को भी नहीं छोड़ा”, भारतीय मुक्केबाज़ी टीम के चीफ़ कोच सीए कुट्टप्पा द्वारा रेलवे के एक मुक्केबाज़ को डराने धमकाने का यह तरीका कितना सही है, इसके बारे में देश का मुक्केबाज़ी फ़ेडेरेशन(बीएफआई) या खेल मंत्रालय ही बेहतर बता सकता है।
लेकिन दोनों ज़िम्मेदार इकाइयाँ फिलहाल मौन हैं और किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रही हैं। उन्हें भारतीय मुक्केबाज़ी में उठे तूफान का ज़रा भी अहसास नहीं है। ज़िम्मेदार लोगों को जान लेना चाहिए कि कभी कभार कोई छोटा सा लगने वाला मुद्दा किस कदर बड़ा घाव बन जाता है। कुछ दिन पहले ही रितिका फोगाट नाम की उभरती पहलवान ने पराजय से दुखी होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर डाली थी।
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पटियाला के राष्ट्रीय मुक्केबाज़ी कैंप में दो मुक्केबाज़ों की चीफ कोच कुट्टप्पा से ठन गई। दोनों रेलवे में कार्यरत हैं। मुक्केबाजों का आरोप है कि कोच उनका करियर खराब करने पर उतारू हैं।
एशियन यूथ चैम्पियशिप में 63 किलो का रजत पदक जीतने वाले सोनीपत के अंकुश दहिया का आरोप है कि कोच कुट्टप्पा ने उनकी रीढ़ की हड्डी पर जानबूझ कर लात मारी, जोकि पहले से ही चोटग्रस्त थी। इस बारे में कोच को भी पता था। नतीजन दहिया अब कैंप से घर के बिस्तर में पहुँच गए हैं। उसे लगता है कि अब शायद ही ठीक हो कर रिंग में उतर पाए। ऐसा हुआ तो वह जीना नहीं चाहेगा। उसके सपनों को कोच ने लात मारकर बर्बाद कर दिया है, अंकुश ने अपना दर्द बांटते हुए कहा।
52 किलो भार वर्ग के मुक्केबाज़ आशीष इंशा ने खेल मंत्री किरण रिजुजू को मेल भेज कर न्याय की गुहार लगाई है। नरेला के इस मुक्केबाज़ के अनुसार वह रेलवे में कार्यरत है और नौकरी तब तक स्थाई नहीं हो सकती जब तक रेलवे स्पोर्ट्स प्रोमोशन बोर्ड द्वारा आयोजित टीटीई प्रशिक्षण कैंप में भाग नहीं लेता। वह बाक़ायदा नियमानुसार राष्ट्रीय कैंप से छुट्टी लेकर विभागीय कैंप में शामिल हुआ था।
लेकिन जब वह वापस पटियाला लौटा तो कोच कुट्टप्पा ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और बाहर निकाल दिया। इस मामले में कोच और मुक्केबाज़ के बीच का एक आडियो सोशल मीडिया पर चर्चा और चिंता का विषय बना हुआ है। बातचीत के चलते कोच और मुक्केबाज़ एक दूसरे को नियम क़ानून तो सिखा ही रहे हैं साथ ही कोच धमकी देते हुए कहा रहे हैं कि उसे पटियाला में किसने घुसने दिया? हैरानी यह सुनकर हुई कि कोच मुक्केबाज़ से कह रहा है कि वह मुक्केबाज़ी या नौकरी में से किसी एक को चुने। तारीफ की बात यह है कि द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित कोच महाशय खुद भारतीय सेना में कार्यरत हैं और दोहरा डायत्व निभा रहे हैं।
अफ़सोस की बात यह है कि मुक्केबाज़ों और कोच का विवाद तब सिर उठा रहा है जबकि भारतीय मुक्केबाज़ लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और टोक्यो ओलम्पिक में पदक जीतने के बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं। कुछ पूर्व मुक्केबाज़ों और कोचों का मानना है कि बीएफआई और खेल मंत्रालय को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। भले ही मामला गंभीर नहीं लगता लेकिन धुआँ उठा है तो कहीं ना कहीं आग तो सुलग रही है। बेहतर होगा समय रहते कोच और खिलाड़ियों को समझा बुझा लिया जाए। वरना कुछ भी हो सकता है। मामला हाथ से निकला तो कुछ अप्रिय भी घट सकता है।
दोनों ही प्रताड़ित मुक्केबाजों को डर है कि कोच उनका जीवन बर्बाद कर सकता है। अब उनकी आखिरी उम्मीद फेडरेशन और खेल मंत्रालय पर टिकी है, जिन्हें फुरसत नहीं है। पता नहीं क्यों रेलवे भी अपने मुक्केबाजों की पीड़ा को नहीं समझ पा रहा है।