जब भी खेलों की दुनिया में कलात्मकता की बात होती है तब भारतीय हॉकी और अर्जेंटीना की कलात्मक फुटबॉल की चर्चा होना स्वाभाविक है । अर्जेंटीना ने अपनी कलात्मकता को आज भी जिंदा रखा हुआ है और उसे जीवित रखने का काम कोई खिलाड़ी कर पाया तो उस खिलाड़ी का नाम है, डिएगो माराडोना जिन्होंने आज इस दुनिया को, हम सबको अलविदा कह दिया है। लेकिन खेलो के मैदान से यह खिलाङी अपने उच्चकोटि औऱ असाधारण खेल के कारण हमेशा हमेशा जीवित और याद किया जाता रहेगा ।
अर्जेंटीना की यादें मेरे मानस पटल पर हमेशा अंकित हो आती है। मुझे स्मरण आता है जब मैंने 1973 मे भारतीय हॉकी टीम के सदस्य के रूप में अर्जेंटीना का दौरा किया था और हमारी टीम को उसी क्लब में जिससे मैराडोना खेलते थे Boca Juniors में ठहरने का अवसर मिला था ।आज जब माराडोना हमारे बीच नही है तो उस मैदान की सारी तस्वीर मेरी आँखों के सामने तैर सी जाती है।
उस समय माराडोना केवल 13 वर्ष के हुआ करते थे। दूसरी बार मैं Buenos Aires विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु अर्जेंटीना भारतीय हॉकी टीम सदस्य के रूप में गया हुआ था और जब हम वहाँ स्टेडियम में प्रवेश करते तब वहाँ उपस्थित दर्शक मुझे प्यार से Piolin Piolin कहकर पुकारने लगते थे, जिसका अर्थ था स्टिक से बॉल पर असाधारण कंट्रोल ।यह यादें आज इसलिये मेरे मन में इसलिए ताज़ा नही हो रही है कि क्योकि ये मेरी यादे है बल्कि यह यादे इसलिए ताज़ा हो उठीं है क्योकि ये यादे एक महान फुटबॉलर के खेल प्रेमी देश की हैं।उस धरती की हैं जिस पर उसने जन्म लिया था । जिसके लिये वे संपूर्ण जीवन भर खेलते रहे और उसके लिए और फुटबॉल के लिये जिए।
अर्जेंटीना में माराडोना को वहां के नागरिक बचपन मे El Pibe De Oro के नाम से पुकारते थे जिसका अर्थ है The golden Kid और वास्तव में वह खेलो की दुनिया के ऐसे चमकते हुये गोल्डन सितारे रहे हैं जिनकी चमक शायद ही कभी फीकी पड़ पायेगी । ऐसे महान खिलाड़ी के निधन से खेलों की दुनिया की बहुत बड़ी क्षति हुई है जिसका भरा जाना असंभव है। मैं भारतीय खेल जगत की ओर से माराडोना के कलात्मक खेल, उनकी बिजली सी गति, मैदान में उनकी चमत्कारिक उपस्थिति को याद करते हुये नमन और श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
अशोक कुमार ध्यानचंद।