नयी दिल्ली। यह 12 जनवरी 1973 की बात है। भारत और इंग्लैंड के बीच चेन्नई में सीरीज का तीसरा टेस्ट मैच शुरू हुआ। भारतीय टीम में बिशन सिंह बेदी, भगवत चंद्रशेखर और ईरापल्ली प्रसन्ना जैसे दिग्गज स्पिनरों के अलावा आलराउंडर सलीम दुर्रानी शामिल थे जो बायें हाथ के स्पिनर थे। इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी का फैसला किया तो सवाल उठा कि भारत की तरफ से गेंदबाजी का आगाज किससे करवाया जाए। क्या स्पिनरों को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए। टीम में एकनाथ सोलकर थे जो मध्यम गति की गेंदबाजी कर लेते थे। वैसे भी उस जमाने में भारत के मध्यम गति के गेंदबाजों का काम गेंद की चमक कम करना था। सोलकर ने नयी गेंद थामी। आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि उनके साथ दूसरे छोर से नयी गेंद का जिम्मा सुनील गावस्कर ने संभाला था। गावस्कर भी मध्यम गति से गेंदबाजी कर लेते थे।
यह किस्सा इसलिए क्योंकि इससे यह पता चलता है कि भारत में एक समय तेज गेंदबाजी का क्या हाल था। कपिल देव के आगमन के बाद भारत में तेज गेंदबाजों को अधिक महत्व मिला था और आज कहानी पूरी तरह बदल चुकी है। भारत के पास तेज गेंदबाजों की लंबी फौज तैयार है।
अब आस्ट्रेलियाई सीरीज को ही देख लीजिए। एडीलेड में पहले टेस्ट में जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी और उमेश यादव टीम में शामिल थे लेकिन चोटों के कारण ब्रिस्बेन में अंतिम टेस्ट मैच में इन तीनों में से कोई मैदान पर उतर पाया। इस सीरीज में अपने टेस्ट करियर का आगाज करने वाले मोहम्मद सिराज ने गेंदबाजी विभाग की अगुवाई की जिसमें शार्दुल ठाकुर, टी नटराजन और नवदीप सैनी जैसे नये तेज गेंदबाज थे। केवल एक स्पिनर वाशिंगटन सुंदर था। इन गेंदबाजों ने क्या कमाल किया। इन्होंने आस्ट्रेलिया के 20 विकेट हासिल किये। भारत मैच और सीरीज जीत गया।
यह भारत की गेंदबाजी स्ट्रेंथ का सबूत है। हमारी बेंच स्ट्रेंथ भी बेहद मजबूत है यह अब दुनिया के क्रिकेट खेलने वाले देशों को पता चल गया है और इसलिए अब वे भारतीय तेज गेंदबाजी के गुणगान करने में नहीं थकते हैं। अब भारतीय टीम सत्तर या अस्सी के दशक की तरह स्पिनरों पर निर्भर नहीं है।
अब इंग्लैंड की टीम से मुकाबला होगा। भारत में सीरीज खेली जानी है और प्लेइंग इलेवन में दो स्पिनर रखा जाना तय है लेकिन तब भी तेज गेंदबाजों की तूती बोलेगी यह तय है। जसप्रीत बुमराह, इशांत शर्मा, मोहम्मद सिराज और शार्दुल ठाकुर टीम में हैं और आलराउंडर हार्दिक पंड्या की भी वापसी हुई हैं। मोहम्मद शमी और उमेश यादव चोटिल हैं लेकिन टीम को उनकी कमी बहुत अधिक नहीं खलेगी यह तय है।
इसका मतलब यह भी भारतीय तेज गेंदबाजी में प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है और किसी भी गेंदबाज के लिये प्लेइंग इलेवन में जगह बनाना आसान नहीं हैं। लेकिन यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा है और इससे टीम को भी फायदा हो रहा है। तेज गेंदबाजों के चोटिल होने का खतरा बना रहता है लेकिन अब किसी गेंदबाज के चोटिल होने पर टीम का संतुलन नहीं गड़बड़ाता है।