क्लीन बोल्ड/ राजेन्द्र सजवान
हाल ही में एथलेटिक फेडरेशन के अध्यक्ष आदिल सुमरीवाला ने एक बयान में कहा कि भारत ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत सकता है। उनके बयान पर देश के एथलेटिक जानकारों और पूर्व चैंपियनों के कान खड़े होना स्वाभाविक है। सभी एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि भला ऐसा कौनसा एथलीट है जिससे ओलंपिक स्वर्ण की उम्मीद की जा रही है!
संभवतया फ़ेडेरेशन अध्यक्ष को लगता है कि भारत को अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण आगामी टोक्यो ओलंपिक में मिल सकता है। फ़ेडेरेशन और मीडिया के एक वर्ग ने जिन एथलीटों को सबसे ज़्यादा भाव दिया है और जिनसे ओलंपिक पदक की उम्मीद व्यक्त की जा रही उनमे नीरज चोपड़ा, हिमा दास और दुति चन्द के नाम सबसे पहले लिए जाते हैं। इस कतार में कुछ रिले रेस भी शामिल की हैं। नीरज लंबे समय तक चोट से जूझने के बाद ट्रैक पर उतर आया है और उसने ओलंपिक टिकट भी पा लिया है। हिमा और दुति को पहले ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई करना है तत्पश्चात ही पदक के बारे में सोच सकती हैं।
कोरोना वायरस के फैलाव के कुछ सप्ताह पहले तक हिमा और दुति ने यूरोपियन सर्किट में खूब धमाल मचाया था। एक के बाद एक कई दौड़ें जीत कर देशवासियों को गदगद कर दिया। मीडिये के कुछ लोग तो यहाँ तक कहने लगे थे कि भारत को ओलंपिक मैटेरियल मिल गया है। आख़िर जब पूरा जोड़ घटा कर देखा गया तो दोनों महिला एथलीटों के प्रदर्शन को खारिज कर दिया गया। अपने ही कुछ नामी कोच तो यहाँ तक कहने लगे कि यह प्रदर्शन सिर्फ़ छलावा है। कुछ एक के अनुसार ओलंपिक पदक के लिए उनकी तैयारी अभी नाकाफ़ी है और उनके पास ज़्यादा वक्त भी नहीं बचा है।
एथलेटिक अन्य खेलों की जननी मानी जाती है और चूँकि एथलेटिक में भारतीय प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा इसलिए बाकी खेलों में भी छुट पुट कामयाबी मिल पाई है। लेकिन शर्म की बात यह है कि डेढ़ सौ करोड़ की आबादी अपने पहले ओलंपिक पदक के लिए छटपटा रही है। भले ही कितना झूठ बोलें दावा करें, अगले दो ओलंपिक तक भी ओलंपिक गोल्ड मिल पाना आसान नहीं लगता। हाँ कोई चमत्कार हो जाए तो बात अलग है।
हर ओलंपिक से पहले बहुत कुछ कहा सुना जाता रहा है और बड़ी बड़ी डींगें हांकी जाती हैं। भारी भरकम दल के लिए तिकड़म लड़ाई जाती हैं लेकिन बार बार और लगातार खाली हाथ और विवाद के साथ लौटने की परंपरा सी बन गई है। टोक्यो में यदि ओलंपिक आयोजन हुआ तो यही कहानी फिर दोहराई जाएगी। इस बार तो सहानुभूति के भी अच्छे ख़ासे नंबर मिल जाएँगे। खेल मंत्रालय को कोरोना के नाम पर घड़ियाली आँसू बहाकर भाव विभोर किया जा सकता है। अर्थात ओलंपिक पदक या गोल्ड जीतने के झाँसे के साथ टीम का आकार भी बड़ा किया जा सकता है। यह रणनीति कलमाडी काल से अपनाई जा रही है लेकिन तब भारतीय एथलीटों का प्रदर्शन कहीं बेहतर था।
जहाँ तक भारतीय एथलेटिक के श्रेष्ठ की बात है तो मिल्खा सिंह और पीटी उषा के प्रदर्शन पर हम भारतीय गर्व करते आए हैं। इसमें दो राय नहीं कि तमाम अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में दोनो भारतीय एथलीटों ने शानदार प्रदर्शन किया। ख़ासकर पीटी उषा अभूतपूर्व रहीं। एशियायई खेलों और एशियन चैंपियनशिप में उषा को मिली कामयाबी की कोई भारतीय खिलाड़ी बराबरी नहीं कर पाया। मिल्खा नें 1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर दौड़ में और उषा ने 1984 के लास एंजेल्स ओलंपिक की 400 मीटर बाधा दौड़ में चौथा स्थान अर्जित किया। अंजू बाबी जार्ज, बीनामोल, शाइनी अब्राहम, श्रीराम सिंह, गोपाल सैनी, मोहिंदर गिल, गुरबचन रंधावा और कुछ अन्य ने पहचान बनाई लेकिन पदक जीतने वाला प्रदर्शन अभी तक देखने को नहीं मिल पाया है।
Winning a Gold in Olympics by Indian athlete will be a test of fire and it imay not be possible in another 10 years, because of fact that process of selection, training and participation of our potential sportspersons is based on scientific support. The holistic development of an elite athlete is of paramount importance including his/her body, mind and spirit, followed by highly competitive international exposure, before the actual participation in Olympic Games, which are considered to be more than war-like situations in many ways. For this purpose, we need to design a sports policy, develop an action plan and deliver desired results- a Gold in Olympics.
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