क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
इसमें दो राय नहीं कि ब्राज़ील के पेले महान फुटबाल इतिहास के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं, जिन्होने अपने देश के लिए तीन विश्व खिताब जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें श्रेष्ठ आँकने वाले एक्सपर्ट्स,पूर्व खिलाड़ी और फुटबाल समीक्षक यह भी मानते हैं कि पेले की श्रेष्ठता को चुनौती देने वाला एक और सिर्फ़ एक खिलाड़ी अर्जेंटीना का महानतम फुटबालर डियागो माराडोना है, जिसने भले ही मात्र एक बार अपने देश को विश्व कप जिताने में अहम भूमिका का निर्वाह किया।
यह सही है कि पेले का रिकार्ड माराडोना की तुलना में कहीं बेहतर है पर माराडोना के प्रशंसक मानते हैं यदि माराडोना के साथ 1994 के फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप में धोखाधड़ी नहीं हुई होती तो फुटबाल जगत में उसका कद पेले से बड़ा या लगभग बराबरी का हो सकता था। 30 अक्तूबर 1960 को लानुस, ब्यूनस आयर्स में जन्में इस खिलाड़ी को जब “फ़ीफ़ा प्लेयर आफ द सेंचुरी” आँका गया तो कुछ लोगों को यह फ़ैसला नागँवार गुजरा था| फिरभी उन्हें पेले के साथ पुरस्कार में साझेदारी का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जोकि बहुत बड़ी बात है।
हालाँकि अर्जेंटीना और विश्व फुटबाल के बहुत से फुटबाल प्रेमी बार्सिलोना क्लब के स्टार खिलाड़ी ल्योन मेस्सी को माराडोना से बेहतर आँकते हैं पर एक बड़ा वर्ग यह मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि माराडोना से मेस्सी की तुलना की जाए, क्योंकि एक ने अपने दम पर अर्जेंटीना को विश्व विजेता बनाया तो दूसरा स्पेन के एक चैम्पियन क्लब का सबसे भरोसे का खिलाड़ी है।
बेशक, मेस्सी की कलाकारी का जवाब नहीं। उसने अनेक अवसरों पर देश के लिए भी शानदार प्रदर्शन किया पर माराडोना जैसा करिश्मा वह फिलहाल नहीं कर पाया है अपने पेशेवर करीयरके दौरान माराडोना ने अर्जेंटिनोस जूनियर, बोका जूनियर्स, बार्सिलोना, नेपोली, सेविला जैसे नामी क्लबों को सेवाएँ दीं और गोलों की झड़ी लगाई| लेकिन वह 1986 में कीर्ति शिखर छूने में सफल रहे। उनकी कप्तानी में अर्जेंटीना ने विश्व कप तो जीता ही, माराडोना को टूर्नामेंट का श्रेष्ठ खिलाड़ी भी आँका गया और गोल्डन बाल पुरस्कार के हकदार बने।
टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल में इंग्लैंड पर मिली २-1 की जीत में उनका रोल सबसे अहम रहा। इस मुक़ाबले में उन्होने “हैंड आफ गॉड” और “द गोल आफ द सेंचुरी” की रचना की और खूब नाम कमाया। मध्य मैदान से इंग्लैंड के छ्ह खिलाड़ियों को अपनी दर्शनीय ड्रिबलिंग और चपलता से छकते हुए ऐसा गोल जमाया जोकि फुटबाल इतिहास में फिर कभी देखने को नहीं मिल पाया|
लेकिन तमाम खूबियों के बावजूद माराडोना इंसानी कमज़ोरियों के शिकार रहे और खेल इतिहास के सर्वाधिक विवादास्पद खिलाड़ियों में शुमार किए गए। 1991 में इटली में कोकीन केडोपिंग परीक्षण में विफल होने के बाद उन्हें 15 महीनों के लिए निलंबन झेलना पड़ा।
लेकिन १९९४ का फ़ीफ़ा विश्व कप उनके चमकदार करियर पर दाग लगा गया| एफेड्रिन का सेवन करने के चलते उन्हें अमेरिका से बीच टूर्नामेंट में निकाल दिया गया। इस घटना ने उनके खेल जीवन को आघात ज़रूर पहुँचाया लेकिन मरोड़ोना के दीवाने इसे अमेरिका की चाल बताते हैं|
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