राजेंद्र सजवान
भारतीय खेलोंपर सरसरी नज़र डालें तो खिलाड़ी और कोच वही सफल रहे हैं, जिन्होंने खेल को गंभीरता से लिया और पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वाह किया। बदले में सरकार ने उन्हें खेल अवार्डों से नवाजा। लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसने ताउम्र खेल संघों की चाकरी की और बड़े से बड़ा लाभ उठाया।
तीसरा वर्ग उन खिलाड़ियों और गुरुओं का है, जोकि बड़े से बड़े अधिकारियों के सामने कभी नहीं झुके। उनका लक्ष्य हमेशा खेल और खिलाड़ियों का हित रहा। ऐसे ही गुरु श्रेष्ठ थे जूडो कोच गुरचरण सिंह गोगी,जिनका नाम देश के सबसे सम्मानित कोचों में लिया जाता है।
हालांकि भारत में अच्छे और समर्पित कोच अनेक रहे हैं लेकिन सिर्फ खेल और खिलाड़ियों पर ध्यान देना और फेडरेशन अधिकारियों की जी हुजूरी न करने वाले बिरले कोचों में शुमार किए जाते रहे हैं।
उनके जाने से जूडो पर बड़ा फ़र्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि भारतीय जूडो तो पहले ही मर चुकी थी। अफसोस इस बात का है कि जिस खेल को उन्होंने जगाने और जिलाने का ताउम्र प्रयास किया वह उनके जाने से पहले ही मर चुका था।
गोगी बेहद शांत चित्त और संतोषी प्रवृति के इंसान रहे। भले ही जूडो फेडरेशन और उसके भरष्ट अधिकारियों ने खेल को बर्बाद करने का खेल जारी रखा लेकिन उन्होंने अपना अभियान थमने नहीं दिया।
यशलाल सोलंकी, संदीप ब्याला, नरेंद्र , पूनम जैसे ओलंपियन पैदा किए और सैकड़ों राष्ट्रीय एवम अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी उनके हाथों निकले लेकिन उनकी सेवाओं को साई और जूडो फेडरेशन ने कभी सम्मान नहीं किया। इसलिए , क्योंकि वे काम पर भरोसा करते थे। नकारा अधिकारियों और फेडरेशन के बड़ों को उन्होने कभी भाव नहीं दिया।
फेडरेशन अध्यक्ष रहे डागा और टाइटलर की महत्वकांक्षा को उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। यही कारण है कि जो द्रोणाचार्य अवार्ड उन्हें सालों पहले मिल जाना चाहिए था बहुत देर से मिला। अफसोस इस बात का भी है कि गुटबाजी के शिकार अपने खेल का पतन देख कर दुनिया से विदा हुए।
उनके चार अर्जुन अवारडियों में शामिल प्रिय शिष्य यशपाल सोलंकी श्रद्धांजलि देते हुए कहते हैं , “हमारे गुरु उस महान परंपरा के थे जिसने कभीअपने लाभ के लिए जूडो फेडरेशन, किसी अधिकारी और किसी और के तरले नहीं किए।
हैरानी वाली बात यह है कि वे देश को अनेकों नामी खिलाड़ी देते रहे लेकिन फेडरेशन ने उन्हें कभी राट्रीय टीम के कोच का सम्मान नहीं दिया। उन्हें कदम कदम पर अपमानित करने की कुचेष्टा की गई लेकिन उन्होंने अपना धर्म और कर्म जारी रखा।”
यशपाल कहते हैं कि ऐसा नेक और खेल को समर्पित कोच शायद ही कोई और हुआ हो। जुडो फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष मुकेश कुमार ने भी उनके गुरुत्व गुणों का बखान किया और कहा कि वे बड़े सेबड़े सम्मान के हकदार थे लेकिन गंदी राजनीति के चलते उनके योग्यता का समुचित उपयोग नहीं हो पाया।
एक पत्रकार और पारिवारिक मित्र की हैसियत से गोगी सर को करीब से देखने समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और पाया कि वह बेहद सीधे, सच्चे और मीठे इंसान थे।
ट्रेनिंग के चलते जितने आक्रामक थे रिंग के बाहर उतने ही विनम्र और यारों के यार रहे। व्यवहार कुशलता का श्रेय उन्होंने हमेशा पत्नी और साई कोच सुमन गोगी को दिया, जिनके साथ उनका रिश्ता आखिर तक दो जिश्म एक जान वाला रहा। कहते थे,’सुमन जी ने मुझे इंसान बना दिया’। लेकिन लोग उन्हें जूडो के भगवान के रूप में हमेशा याद रखेंगे।
सुमन गोगी अपने पति के नक्शे कदम पर चलते हुए महान कोच बनीं। हौज़ रानी का उनका जूडो सेन्टर पति के मार्गदर्शन में बड़ा नाम कमाने में सफल रहा। इस सेंटर के सैकड़ों बच्चे अंतर राष्ट्रीय पहचान बनाने में सफल रहे हैं। सुमन को भरोसा है कि पति द्वारा स्थापित परंपरा का निर्वाह करते हुए वह जूडो की सेवा करती रहेगी।
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