गुरु हनुमान: कड़क गुरु पर हंसोडे और ज़िंदादिल इंसान

दोस्तों,
आप जानते ही हैं कि कोविड-19 के कारण खेल जगत की अधिकांश गतिविधियाँ ठप्प पड़ी हैं या कुछ एक खेल ही हरकत में हैं। यही मौका है जब हमारे खेल आका, खेल मंत्रालय और खेल प्रशासक अपने पुराने चैम्पियनों को याद कर सकते थे और उनके आचार व्यवहार, खेल के तौर तरीकों से सीख ले सकते थे।
लेकिन बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि महामारी के दौर में, जबकि हमारे पास कुछ करने, कहने के लिए नहीं बचा है, हमने अपने पूर्व चैंपियनों और आदर्श खिलाड़ियों की सुध नहीं ली। बेशक, यही वक्त था जब हम अपने पूर्व चैम्पियनों के प्रति आदर भाव दिखा सकते थे, उनकी उपलब्धियों का सम्मान कर सकते थे पर ऐसा किसी भी खेल संघ, भारतीय ओलंपिक संघ और यहाँ तक कि खेल मंत्रालय ने भी नहीं सोचा।
दरअसल ऐसा कुछ करने की हमारी परंपरा नहीं रही है। पुरानी ग़लतियों से सीख नहीं लेते और बीते कल के चैम्पियनों को कभी याद नहीं करते। शायद यही हमारा चरित्र रहा है। यही कारण है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र खेलों में सबसे बड़ी अलोकतांत्रिक संस्था बन कर रह गया है।
गुरु हनुमान ना सिर्फ़ एक सफल गुरु खलीफा थे अपितु अपने मसखरेपन, हंसोडे व्यक्तित्व और हाज़िरजवाबी के लिए भी जाने गए। देश को सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय पहलवान और दर्जनों कोच देने वाले इस गुरु ने अनेक एशियाड, कामनवेल्थ , विश्व चैम्पियन पहलवान पैदा किए।
ओलम्पियनों की उन्होने कतारें लगाइं तो कई द्रोणाचार्य, अर्जुन अवार्डी, पद्मश्री उनके अखाड़े की देन रहे। गुरु जी ट्रेनिंग के चलते जितने कट्टर और कठोर थे, अखाड़े के बाहर उतने ही हंसोडे और चुटकुलेबाज भी थे। उनसे जुड़े ऐसे ही कुछ प्रसंगों का ज़िक्र करते हैं:
कुश्ती फ़ेडेरेशन के चुनाओं में एक बार गुरु हनुमान ने भी हाथ आजमाया और जीएस मंडेर पैनल के विरुद्ध सचिव पद के दावेदार अपने प्रिय शिष्य प्रेम नाथ का समर्थन करने जयपुर पहुंच गए। फेडरेशन की सभी इकाइयों के सदस्य गुरु जी से प्रेमनाथ की जीत का ढोल पीट रहे थे और गुरु के परामशिष्य होने का दम भर रहे थे।
लेकिन जब नतीजा आया तो प्रेम नाथ बुरी तरह हार गए। उन्हें मात्र चार वोट मिले। गुरु के लगभग बीस शिष्य और समर्थक दगा दे गए| आहत गुरु बोले, गुरु गुड़ रह गए और चेले शक्कर हो गए। लेकिन जल्दी ही सामान्य हुए और हंसते हुए बोले,”क्या कोई पत्रकार पता लगाएगा कि प्रेम नाथ को वोट देने वाले चार बेवकूफ कौन हैं?”
हालाँकि संजय पहलवान मास्टर चंदागीराम के शिष्य थे और लंबे समय से अर्जुन अवार्ड की माँग कर रहे थे। लेकिन उनका कमजोर पहलू यह था कि शानदार पहलवान होने के बावजूद भी इसलिए सम्मान नहीं मिला क्योंकि फ़ेडेरेशन को खरी खरी सुनाने से नहीं डरते थे।
लेकिन गुरु हनुमान चूँकि कुश्ती को समर्पित थे और शरण आने वाले सभी पहलवानों के लिए लड़ मर जाते थे। संजय ने जब उनके दरवाजे दस्तक दी तो गुरुजी ने लाठी उठा ली। द्रोणाचार्य महासिंह राव से बोले, गांधी समाधि पर धरने की तैयारी करें। पहले राजघाट पर धरना दिया। इतने से बात नहीं बनी तो खेल मंत्री उमा भारती के निवास जा पहुँचे।
इससे पहले क़ि मंत्री जी कार्यालय के लए निकल पातीं। मौका देख कर गुरु जी उनकी गाड़ी के आगे लेट गए और तब तक उठने के लए राज़ी नहीं हुए जब तक उनसे फ़ोन करवा कर संजय का अर्जुन अवॉर्ड पक्का नहीं करवा लिया।
गुरु हनुमान अखाड़े में गुरु जी की सेवा के लिए, टट्टू केसरी(सुरेश) नाम का एक युवक तैनात था, जोकि उनके ख़ान पान और उनकी मालिश करने के साथ साथ साफ सफाई का ध्यान रखता था। एक दिन गुरुजी ने महा सिंह राव जी की उपस्थिति में उसका परिचय कराते हुए कहा कि उसे बाक़ायदा इंटरव्यू लेकर काम पर रखा गया है।
उसके गाँव का नाम, बाप का नाम पूछा और जब उसने बताया कि उसके तेरह भाई बहन हैं तो हैरान रह गया। फिर मैने (गुरु जी ने )उत्सुकता से पूछ लिया कि तेरा बाप क्या काम करता है तो यह बोला, “बस यही काम करता है”। तो ऐसे जिंदा दिल थे गुरु श्रेष्ठ द्रोणाचार्य गुरु हनुमान।