क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
कुछ समय पहले तक क्रिकेट जानकार और एक्सपर्ट्स यह मान चुके थे कि फटाफट और टी ट्वेन्टी क्रिकेट टेस्ट क्रिकेट के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकते हैं। कैसे टेस्ट क्रिकेट को बचाया जाए इस बारे में विचार विमर्श और मंत्रणाएं शुरू हो चुकी थीं।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में टेस्ट क्रिकेट का जो रूप स्वरूप उभर कर आया है उसे देख कर पूर्व खिलाड़ी और क्रिकेट पंडितों की सोच में बदलाव आया है। अब वे कह रहे हैं कि टेस्ट क्रिकेट पर आया संकट टल गया है, क्योंकि आईसीसी और क्रिकेट खेलने वाले देशों के क्रिकेट बोर्डों ने टेस्ट क्रिकेट को बनाए और बचाए रखने का हल खोज लिया है।
भारत, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड और अन्य क्रिकेट खेलने वाले देशों ने हाल ही में खेले गए कुछ टेस्ट मैचों में जैसा जीवट का प्रदर्शन किया है उसे देखते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि मैच का नतीजा चाहे पाँचवें और अंतिम दिन तक आया हो या दो- ढाई दिन में ही हार जीत तय हो गई, क्रिकेट का रोमांच देखते ही बना।
कहीं से भी किसी भी कोण से क्रिकेट उबाऊ नहीं लगी। फिर चाहे न्यूज़ीलैंड-आस्ट्रेलिया, आस्ट्रेलिया-भारत, भारत-इंग्लैंड के बीच के मैच हों या अन्य देशों के मुक़ाबले रहे हों, अधिकांश रोमांचक रहे।
संभवतया ऐसा इसलिए भी है क्योंकि टेस्ट खेलने वाली टीमों के सामने एक लक्ष्य है। वह यह कि टेस्ट क्रिकेट की दो श्रेष्ठ टीमों के बीच आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल 18 जून को लार्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर खेला जाना है।
बेहतर रिकार्ड के साथ न्यूज़ीलैंड की टीम पहले ही फाइनल में पहुँच चुकी है। अब भारत और आस्ट्रेलिया की टीमों में काँटे की टक्कर है। इंग्लैंड के साथ खेले जाने वाले चौथे टेस्ट के परिणाम से पता चलेगा कि फाइनल में न्यूज़ीलैंड का सामना किससे होगा। भारत यदि निर्णायक टेस्ट में जीत जाए या ड्रॉ खेल जाए तो ऑस्ट्रेलिया स्वतः ही रेस से बाहर हो जाएगा।
इसमें दो राय नहीं कि एकदिनी और टी20 क्रिकेट को समय सीमा के कारण ज़्यादा पसंद किया जाता है। लेकिन विश्व क्रिकेट के सर्वकालीन धुरंधर गावसकर, कपिल, एलन बोर्डर, क्लाइव लायड, विव रिचर्ड्स, इयन बॉथम, इमरान ख़ान, रिचर्ड हैडली, मुरली धरन, और अधिकांश वर्तमान खिलाड़ियों ने टेस्ट क्रिकेट को हमेशा आदर्श क्रिकेट माना और साथ ही सीमित ओवरों की क्रिकेट का भी लुत्फ़ उठाया।
हालाँकि आईपीएल की शुरुआत के बाद से अनेकों बार खिलाड़ियों पर आरोप लगाए जाते रहे कि वे टेस्ट क्रिकेट को गंभीरता से नहीं लेते या फटाफट क्रिकेट ने उनकी तकनीक को बिगाड़ कर रख दिया है। लेकिन हाल में खेली गई कुछ टेस्ट सीरीज़ को देखें तो अधिकांश खिलाड़ी खुद को क्रिकेट की माँग के अनुरूप ढालने में कामयाब रहे हैं।
आस्ट्रेलिया को आस्ट्रेलिया में हरा कर भारतीय खिलाड़ियों ने ना सिर्फ़ जीत का जश्न मनाया बल्कि टेस्ट क्रिकेट को भी गौरवान्वित किया। इंग्लैंड के विरुद्ध भी गेंद बल्ले के संघर्ष में क्रिकेट का रोमांच पूरे निखार पर रहा है।
बेशक, अब टेस्ट क्रिकेट चैम्पियशिप के फाइनल पर सबकी नज़रें रहेंगी लेकिन यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि टेस्ट क्रिकेट का संकट पूरी तरह टल गया है। कारण, दो-तीन दिन में मैचों के परिणाम निकलना भी हमेशा श्रेयकर नहीं रहेगा। यदि सिलसिला यूँ ही चलता रहा तो बहुत से प्रायोजक और दर्शक स्टेडियम का रुख़ करना छोड़ सकते हैं।
यह सही है कि मेजबान अपनी गेंदबाजों के अनुरूप विकेट सजाते हैं, जैसा कि अहमदाबाद की पिच पर भी देखने को मिला| कुल गिरे 30 में से 28 विकेट स्पिन गेंदबाज़ों के हिस्से आए। यदि सिलसिला यूँ ही चलता रहा और गेंद बल्ले के संतुलन पर ध्यान नहीं दिया गया तो टेस्ट क्रिकेट का संकट गहरा भी सकता है।