June 16, 2025

sajwansports

sajwansports पर पड़े latest sports news, India vs England test series news, local sports and special featured clean bold article.

भारतीय खेल: 75 साल में बस मुट्ठी भर पदक! चीन बोला, क्यों गुलाटी मार रहा पड़ोसी।

Indian Games Just a handful of medals in 75 years

राजेंद्र सजवान/क्लीन बोल्ड

15 अगस्त पर विशेष:

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है। इन सालों में हमने कितनी तरक्की की, देश को किस कदर सजाया संवारा, इस बारे में अलग अलग राय हो सकती है। लेकिन खेलों में हमने क्या खोया, क्या पाया, हर देशवासी जानता है। बेशक, हॉकी के बेताज बादशाह वाली पदवी हम से छिन गई है और क्रिकेट भारत का सबसे लोकप्रिय खेल बन कर उभरा।

मुट्ठी भर पदक:

किसी भी देश की खेल उपलब्धियों का आकलन उसके ओलंम्पिक प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है। इस कसौटी पर हम खुद को देखें तो हॉकी के पाँच स्वर्ण और अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा के व्यक्तिगत स्वर्ण पदकों के अलावा कुछ चांदी और कांसे के पदक ही जीत पाए हैं।

ध्यानचंद युग के तीन स्वर्ण पदकों को जोड़ लें तो टोक्यो ओलंम्पिक 2020 तक भारत के कुल पदकों की संख्या आठ स्वर्ण सहित 35 ही बैठती है। यह प्रदर्शन गर्व करने लायक कदापि नहीं है।

ज़ाहिर है आज़ादी के बाद भारतीय खेल आकाओं ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया। भले ही सरकारें एक दूसरे को बुरा भला कहें पर खेल किसी भी सरकार की प्राथमिकता में कभी रहे ही नहीं। आज हैं या नहीं जिम्मेदार लोगों को अपनी अंतरात्मा से पूछना पड़ेगा।

नीरज के गोल्ड पर गुलाटी:

हमारे भालावीर नीरज चोपड़ा ने जब भारत के लिए एथलेटिक का खाता सोने के पदक के साथ खोला तो हमारे परंपरागत प्रतिद्वंद्वी चीन ने हंसी उड़ाते हुए कहा,”देखो तो पड़ोसी को एक गोल्ड पर कैसे गुलाटियां मार रहा है!” हालांकि चीन ने इतनी खेल भावना जरूर दिखाई की नीरज को गज़ब का चैंपियन बताया और कहा कि वही भारतीय खेलों की डूबती नैया का खेवैया बन कर सामने आया है।

चीन ने भले ही हमारी हंसी उड़ाई पर कुछ गलत भी नहीं कहा। जो देश हमारा कट्टर दुश्मन है उससे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। वह हर ओलंम्पिक से इतने पदक जीत ले जाता है जितने शायद हम एक सदी में भी नहीं जीत पाएंगे।

उसका मुकाबला अमेरिका, जैसे दिग्गज से है और हम पाकिस्तान को नीचा दिखा कर अपनी पीठ ठोकने में लगे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि हम चीन के बाद दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाले देश हैं परंतु ओलंम्पिक पदकों के मामले में कई बार पदक तालिका में नजर नहीं आते।

जिम्मेदार लोग शपथ लें:

यह संयोग है कि डायमंड जुबली वर्ष में भारतीय खिलाड़ियों ने देशवासियों को शानदार तोहफा दिया है। लंदन ओलम्पिक को पीछे छोड सात पदकों का रिकार्ड बनाया है। सभी खिलाड़ी साधुवाद के पात्र हैं।

खासकर नीरज ने भारतीय खेलों में प्राण फूंकने वाला थ्रो फेंक कर राणा प्रताप के भाले की याद ताजा कर दी है। यही मौका है जब भारतीय खेल लगातार आगे बढ़ने का प्रण लें। 15 अगस्त पर सभी खेल संघ, आईओए, खेल मंत्रालय और खेल प्राधिकरण शपथ लें कि अब देश के खेलों को और नीचे नहीं गिरने देंगे और अपने शर्मनाक रिकार्ड को सुधार कर देश के खेल खिलाड़ियों का उद्धार करेंगे।

बड़बोले नहीं महाशक्ति बने:

भारतीय खेलों का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि खिलाड़ियों और उनके माता पिता की मेहनत और कुर्बानी को हमारे नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए भुनाते आ रहे हैं। टोक्यो के प्रदर्शन पर खिलाड़ियों को करोड़ों दिए जा रहे हैं क्योंकि वे कामयाब रहे। लेकिन ग्रास रुट स्तर पर खिलाड़ियों की कोई सुध नहीं लेता। तब हमारे नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री और बड़े औद्योगिक घराने कहाँ चले जाते हैं?

आज जो लोग नीरज की कामयाबी को अपना वोटबैंक बनाने की कुचेष्टा में लगे हैं उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि नीरज का स्वर्णिम थ्रो सरकारी मदद से नहीं निकला । यह उसकी और परिवार की कड़ी मेहनत का परिणाम है।

यदि भारत को ऐसे कुछ और पदक चाहिए और खेल महाशक्ति बनना है तो कामयाबी का श्रेय लूटने वालों को बड़बोलापन छोड़ना होगा। यह न भूलें की भारतीय खेलों की कामयाबी म्हांठगिनी है। लंदन में 6 तो रियो में 2 और अब टोक्यो में 7 पदक तो यही बताते हैं। 2024 के 15 अगस्त को हम यदि पेरिस में जीते दस-बारह पदकों का जश्न मना पाए तो हम चीन को जवाब दे सकते हैं।

लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री देश के खिलाड़ियों को जो भी संदेश दें लेकिन देश में खेलों का कारोबार करने वाले खेल संघों, अपने खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण को इतना जरूर समझा दें कि खेल से धोखा भी देश से धोखा होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *