क्लीन बोल्ड/ राजेन्द्र सजवान
पिछले एक साल से भी अधिक समय से हमारा सरकारी भोम्पू जो कुछ दिखा- चटा रहा है, उसे लेकर देश के खेल प्रेमी ना सिर्फ ऊब गए हैं बल्कि कुछ एक तो यहां तक कहने लगे हैं कि दूरदर्शन कब तक खेल कार्यक्रमों के नाम पर बासी और सड़ा गला माल बांटता रहेगा? कब तक भारतीय खेल प्रेमियों को छलता रहेगा?
जहां एक ओर देश विदेश के टीवी चैनल खेल गतिविधियों के ठप्प हो जाने के बावजूद भी खेल प्रेमियों की पसंद और उनकी भावनाओं का भरपूर सम्मान कर रहे हैं तो दूरदर्शन और डीडी स्पोर्ट्स के पास अच्छी सोच का सरासर अभाव है। कोरोना काल में हालांकि खेल गतिविधियां नाम मात्र की बची हैं। क्रिकेट और कुछ अन्य खेलों के दम पर खेल चैनलों का खेल जारी है।
तमाम बड़े चैनल फुटबाल, क्रिकेट, मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स और अन्य खेलों के दम पर खेल प्रेमियों को जोड़े हुए हैं। लेकिन हमारा अपना राष्ट्रीय चैनल ओलंपिक वर्ष में या तो खामोश पड़ा है या कभी कभार वह सब दिखाता है जिसे खेल प्रेमी कतई देखना नहीं चाहते।
उस समय जबकि पूरी दुनिया चार दीवारी में कैद है, दूरदर्शन को चाहिए था कि देश के खेल प्रेमियों के लिए रोचक कार्यक्रम दिखाता, अपने खिलाड़ियों की पुरानी गलतियों और चैंपियनों के प्रदर्शन पर प्रकाश डालता, खेल हस्तियों से चर्चा की जाती लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
खेलों में हम क्यों पिछड़े हैं और 140 करोड़ की आबादी वाला देश एक एक पदक के लिए क्यों तरसता रहता है, जैसे सवालों के जवाब जानने के लिए पर्याप्त समय था लेकिन रचनात्मक और ज्ञानवर्धक खेल कार्यक्रमों के लिए दूरदर्शन के पास समय और समझ नहीं है।
बेचारे भारतीय खेल प्रेमी सोनी और स्टार स्पोर्ट्स पर उस फुटबाल को देखने के लिए विवश हैं , जिस तक हमारी फुटबाल सौ साल में भी शायद ही पहुंचे। मार पीट और खून खराबे वाले मार्शल आर्ट्स खेल और क्रिकेट को मजबूरन झेलना पड़ रहा है।
देश के जाने माने पूर्व खिलाड़ी, ओलंपियन और नामी कोच कहते हैं, “काश, कोई ऐसा टीवी चैनल होता, जोकि अपने खिलाड़ियों की खबर लेता, उनकी खामियों और खूबियों को उजागर करता। कम से कम ओलंपिक वर्ष में ओलंपिक खेलों पर रात दिन चर्चा होनी चाहिए थी।”
खेल विशेषज्ञों की राय में आज के उच्च तकनीक के दौर में खेलों का विकास और प्रचार प्रसार टीवी और प्रचार माध्यमों से ही संभव है। लेकिन इसके लिए सालों साल की तैयारी, उच्च तकनीक और अव्वल दर्जे के खेल प्रोमोटरों की जरूरत है।
दुर्भाग्यवश, हमारे देश की सरकारों ने कभी भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। अपने स्वार्थों की खातिर नेताओं ने दूरदर्शन और अन्य सरकारी माध्यमों का इस्तेमाल किया और नतीजा सामने है। हम दुनिया के सबसे फिसड्डी खेल राष्ट बनकर रह गए हैं।