क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
भारतीय कुश्ती में सुशील कुमार एक बड़ा नाम है। शायद यह कहना ठीक रहेगा कि सुशील भारतीय ओलंपिक इतिहास में श्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन करने वाला श्रेष्ठ खिलाड़ी है, जिसने ओलंपिक खेलों में क्रमशः कांस्य और रजत सहित दो पदक जीते हैं। अब तक कोई भारतीय खिलाड़ी ऐसा करिश्मा नहीं कर पाया है छत्रसाल अखाड़े से निकला यह चैम्पियन तीसरा ओलंपिक पदक जीतने के लिए प्रयासरत है और टोक्यो ओलंपिक को लक्ष्य मान कर एक और कोशिश करना चाहता है।
जहाँ तक व्यक्तिगत श्रेष्ठ प्रदर्शन की बात है तो निशानेबाज़ अभिनव बिंद्रा एकमात्र स्वर्ण पदक विजेता भारतीय खिलाड़ी हैं। टीम खेलों में दद्दा ध्यान चन्द और बलबीर सिंह सीनियर के तीन तीन स्वर्ण पदकों की बराबरी तो शायद ही कोई कर पाए।
एक और पदक का दावा
सुशील को एक और चांस के लिए कठिन परीक्षा से गुज़रना है और अपने भार वर्ग के कुछ उभरते और कुछ एक अनुभवी पहलवानों से निपटना होगा। उम्र उस पर हावी है पर हिम्मत नहीं हारी है। यदि सुशील ओलंपिक क्वालीफायर की बाधा पार कर जाता है और एक और बेहतरीन प्रदर्शन के साथ पदक हासिल कर लेता है तो उसके पदकों की बराबरी करना बड़ी चुनौती बन सकता है। भारतीय खेलों का जो हाल है उसे देखते हुए किसी चमत्कार से ही कोई खिलाड़ी सुशील के पदकों की संख्या को लांध पाएगा।
आक्रामकता बड़ी ताक़त
इसमें दो राय नहीं कि सुशील की सबसे बड़ी ताक़त उसकी आक्रामकता है। एशियाड, विश्व स्तर और ओलंपिक में उसे जो भी कामयाबी मिली उसका बड़ा कारण आक्रामक शैली रही है। जिस किसी ने उसे करीब से देखा है, वह जानता है कि सुशील को आक्रमण करने का मौका देना जानलेवा साबित हो सकता है। लेकिन जब भी वह चूका उसकी कीमत चुकानी पड़ी है।
2012 के लंदन ओलंपिक के फाइनल में उसने थोड़ी सी रणनीति बदली और रक्षात्मक खेलने की कीमत चुकाई। जापानी पहलवान ने सुशील की तकनीक को गंभीरता से पढ़ा और उसे आक्रमण का मौका नहीं दिया। नतीजा सुशील के हाथ से एक निश्चित स्वर्ण पदक फिसल गया।
बेहतरीन फुटबालर
सुशील और योगेश्वर दत्त को जिस किसी छत्रसाल स्टेडियम के मैदान पर फुटबाल खेलते देखा है, वह एक बात तो दावे से कह सकता है कि पहलवान नहीं होते तो अच्छे फुटबालर हो सकते थे। अखाड़े के कोच सतपाल, राम फल और स्वर्गीय यशवीर का हमेशा से यह मानना रहा कि किसी भी खेल से जुड़े खिलाड़ी के लिए फुटबाल से बेहतर व्यायाम कोई दूसरा नहीं है। क्लीन बोल्ड का मानना है कि लंदन ओलंपिक से पहले के पहलवान फुटबालर दिल्ली के किसी भी क्लब को आसानी से हरा सकते थे। उनकी स्पीड, स्टेमिना और तालमेल देखते ही बनता था ।
योगेश्वर् के पाँव क्यों छूता है सुशील
पता नहीं इस खबर में कितनी सच्चाई है कि वर्षों तक साथ खेले और कुश्ती के दाँव पेंच सीखे सुशील और योगेश्वर के संबंध ठीक नहीं चल रहे| लेकिन यह सचाई बहुत कम लोग जानते हैं कि सुशील अपने हमउम्र योगेश्वर के पाँव छूते हैं। आम तौर पर हरियानऔर गाँव देहात में राम राम करने की परम्परा है लेकिन क्लीन बोल्ड को यह देख कर हैरानी हुई कि देश के दो चैम्पियन पहलवानों का जब कभी सामना हुआ, सुशील ने योगेश्वर के पाँव छूकर अभिवादन किया। पूछने पर सुशील ने जवाब दिया, “सर योगेश्वर जी पंडित हैं और हमारे समाज में पंडितों को विशेष सम्मान देने की परंपरा है।” सुशील के जवाब से पता चलता है कि वह ना सिर्फ़ चैम्पियन हैं अपितु एक उच्च संस्कारी इंसान भी है।
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