क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
आईपीएल के 14वें सीजन की नीलामी हो गई है। कुछ बड़े नाम वाले सस्ते में बिके तो बहुत से अनजान और गुमनाम उम्मीद से कहीं ज्यादा ले उड़े। क्रिकेट की दुनिया में फिलहाल आई पीएल के खरीद फरोख्त की खबर सुर्खियों में है। समाचार पत्र, पत्रिकाएं, सोशल मीडिया और टीवी चैनल बस आईपीएल की बोली भाषा बोल रहे हैं।
दूसरी तरफ लगभग पचास ऐसे खेल हैं जोकि अपने आप से और कभी कभार एक दूसरे से पूछ रहे हैं ,’हमारा कुसूर क्या है?’ उन्हें समझ नहीं आ रहा कि हॉकी, फुटबाल, एथलेटिक, टेनिस, बैडमिंटन,कुश्ती,मुक्केबाजी,तैराकी, बास्केटबॉल, वॉलीबाल और अन्य खेल खेलकर उन्होंने कौन सा गुनाह कर दिया? उन्हें ओलंपिक खेलों को अपनाकर क्या मिला? और अपनी भावी पीढ़ी को क्रिकेट से दूर रखने की भूल क्यों कर बैठे?
आई पीएल नीलामी में कई खिलाड़ी ऐसे भी हैं जिन्हें कल तक कोई नहीं जानता था। उनकी पहचान अपने प्रदेश की रणजी ट्राफी टीम तक सीमित थी। लेकिन आईपीएल में उन्हें इतना मिल गया, जिसके बारे में उन्होंने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा।
दो से पांच सात करोड़ पाने वाले खिलाड़ियों में कुछ एक ऐसे भी हैं जिनका सपना आईपीएल खेलना जरूर था लेकिन करोड़ों पाने के बारे में शायद वे भी नहीं सोच रहे थे।
उधर बाकी खेलों से जुड़े खिलाड़ी एक बार फिर सन्न रह गए हैं। उनसे कुछ बोलते नहीं बन पा रहा। वे या तो अपनी किस्मत को कोस रहे हैं या देश के खेल आकाओं को बुरा भला कह रहे हैं। उनका खून उबाल ले रहा है।
कुछ अविभावकों को कोस रहे हैं और कह रहे हैं कि क्रिकेट वे भी खेलना चाहते थे पर मां बाप ने खेलने नहीं दिया। उन्हें अपने खेल से नफरत सी होने लगी है, जिसने बेरोजगारी, अभाव और बीमारी के अलावा कुछ भी नहीं दिया।
पूरी उम्र की कड़ी मेहनत के बाद भी अन्य खेलों के खिलाड़ी पेट भरने लायक भी नहीं कमा पाते पर एक अदना सा क्रिकेटर जब करोड़ों में खेलता है तो उसके सीने में साँप लोटने लगते हैं। उसे अपने खेल पर, खेल के कर्णधारों और सरकारों पर गुस्सा आता है।
यह सही है कि क्रिकेट अनिश्तित्ताओं का खेल है, जिसमें कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है। लेकिन जब एक अनजान खिलाड़ी करोड़ों में बिकता है तो बाकी खेलों के ओलंपिक पदक विजेताओं को अपनी हैसियत का पता चल जाता है।
उन्हें ओलंपिक पदक जीतने पर दो-चार करोड़ मिलते हैं लेकिन दुगुनी चौगुनी रकम क्रिकेट के नये रंगरूटों को यूं ही मिल जाती है। अन्य खेलों के लीग मुकाबलों की अनुबंध राशि पर नज़र डालें तो सुशील, योगेश्वर, पीवी सिंधू, सायना नेहवाल, साक्षी मलिक, मैरीकॉम आदि को एकदम निचले दर्जे के क्रिकेटरों के बेस प्राइज से भी कम मिलता आया है। हमारे ओलंपिक पदक विजेताओं में से ज्यादातर को उनकी लीग में 30 से 60 लाख ही मिल पाए।
गंभीर क्रिकेट खेलने वाले देश पांच सात ही हैं। फुटबाल, कुश्ती, मुक्केबाजी, एथलेटिक, तैराकी जैसे खेलो की पूरी दुनिया दीवानी है। लेकिन ओलंपिक और कुछ लोकप्रिय गैर ओलंपिक खेल गुमनामी का जीवन जी रहे हैं।
उनके स्टार खिलाड़ी गुमनामी का जीवन जी कर और बहुमूल्य साल अपने खेल को देने के बादभी उन्हें बदले में कुछ नहीं मिल पाता। घर, बाहर और समाज से उन्हें ताने सुनने को मिलते हैं कि पढ़ाई लिखाई पर ध्यान देते तो खाने के लाले नहीं पड़ते। कभी कभार यह भी उलाहना मिलता है , काश क्रिकेट खेली होती’!
लेकिन जिस देश का कुल खेल बजट आईपीएल के दो महीने के कुल बजट से भी कम हो,उसके खेलों का तो भगवान भी मालिक नहीं हो सकता। कई खेलों का सालाना खर्च तो विराट कोहली, धोनी, रोहित शर्मा और ऋषभ पंत को मिलने वाले15-20 करोड़ से भी कम है।
फिर भला हमारे खिलाड़ी क्रिकेट के सामने शर्मसार क्यों नहीं होंगे? यह सच्चाई उन लोगों के गाल पर जोरदार तमाचा है जो भारत को खेल महाशक्ति बनाने का दावा कर रहे हैं।