क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
कोरोना के कहर के चलते आईपीएल का आयोजन संभव नहीं था लेकिन भारतीय क्रिकेट बोर्ड और उसके सपोर्ट स्टाफ ने जब एक बार ठान लिया तो आईपीएल का बिगुल बज गया और अपने देश में ना सही तो विदेश में आयोजन का जोखिम उठाने का साहस भी उठाया।
भले ही स्टेडियम खाली पड़े हैं पर क्रिकेट के रोमांच में कहीं कोई कमी नहीं आई। मैचों का ठीक ठाक आयोजन हो रहा है। रिकार्ड बन बिगड़ रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि हमारा मीडिया भी क्रिकेट की खबरों और मैचों के नतीजों के लिए उतना ही मुस्तैद है जितना पिछले आयोजनों में था।
महामारी के चलते दर्शक विहीन स्टेडियम में क्रिकेट के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा लेकिन भारतीय क्रिकेट आकाओं ने हमेशा ही सोचने की बजाय करने में विश्वास किया। यही कारण है कि जिस क्रिकेट को कभी बेकार और फालतू लोगों का खेल कहा जाता था उसके चलते अनेक लोगों का कारोबार चल रहा है।
फिलहाल भारत में ऐसा कोई दूसरा खेल नज़र नहीं आता जोकि क्रिकेट को टक्कर दे सके। खैर, कमाई के मामले में तो देश के तमाम खेल मिल कर भी क्रिकेट की बराबरी नहीं कर सकते और लोकप्रियता ऐसी कि बाकी खेल कहीं नजर नहीं आते।
अन्य भारतीय खेलों पर नज़र डालें तो 21वीं सदी की शुरुआत सभी खेलों के लिए बेहद खराब रही है। कभी हॉकी मैचों में अच्छी ख़ासी भीड़ जमा हो जाती थी। दिल्ली, पंजाब और कई अन्य राज्यों में मैचों के चलते हज़ारों हॉकी प्रेमी मौजूद रहते थे। फुटबाल मैचों में बंगाल, गोवा, पंजाब, दिल्ली, आंध्र प्रदेश आदि प्रदेशों में ख़ासी दर्शक संख्या होती थी।
इसी प्रकार अन्य खेलों में भी उसके प्रशंसकों का अकाल नहीं था लेकिन पिछले कुछ सालों से अधिकांश खेल खाली स्टेडियम में खेले जा रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि यूएई में कोरोना के चलते स्टेडियम की दर्शक दीर्घाएँ वीरान पड़ी हैं।
क्रिकेट और अन्य खेलों के अंतर को समझने के लिए आईपीएल और बाकी लीग के अंतर को भी जान लेते हैं। हॉकी, कबड्डी, फुटबाल, टेनिस, बैडमिंटन, कुश्ती मुक्केबाज़ी आदि खेलों की लीग का आयोजन इसलिए असरदार नहीं रहा क्योंकि इन खेलों की हैसियत क्रिकेट जैसी नहीं है । आईपीएल के टिकट पाना आसान नहीं होता जबकि बाकी खेलों के मुफ़्त प्रवेश पत्र भी कोई नहीं लेता।
भले ही ओलंपिक खेलों का दर्ज़ा विश्व स्तर पर बहुत उँचा है और चैम्पियन देशों में क्रिकेट को कोई जानता तक नहीं। लेकिन भारत में क्रिकेटर ओलंपिक पदक विजेताओं पर भी भारी पड़ते हैं। एक गुमनाम क्रिकेटर आईपीएल में खेलने की एवज में पाँच-दस करोड़ पा जाता है, जबकि ओलंपिक स्वर्ण जीतने पर इसके आधी रकम नहीं मिल पाती।
इस बड़े फ़र्क के लिए हमारे खेल और खेल आका ज़िम्मेदार हैं, जिन्होने वक्त रहते खेल की बजाय निहित स्वार्थों को वरीयता दी। किसी भी खेल में एक भी जगमोहन डालमियाँ या ललित मोदी पैदा नहीं हुआ|। नतीजन बाकी खेल पनप नहीं पाए।
V well said sajwan bhai ,all other sports fedrations, associations must learn a leswon frm Bcci……..if there is will there is way!!!!
V well said sajwan bhai ,all other sports fedrations, associations must learn a lesson frm Bcci……..if there is will there is way!!!!
अन्य खेलों को क्रिकेट से सीख लेनी चाहिए। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भर होने की सीख दे चुके हैं। भारत में क्रिकेट बोर्ड आत्मनिर्भर है। दूसरे खेलों को उसका अनुसरण करना चाहिए। निजी हितों को प्राथमिकता में रखने से यह संभव नहीं है।