June 16, 2025

sajwansports

sajwansports पर पड़े latest sports news, India vs England test series news, local sports and special featured clean bold article.

रक्षक ही संतोष ट्राफी का भक्षक बना! IS AIFF KILLING SANTOSH TROPHY?

IS AIFF KILLING SANTOSH TROPHY

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल फुटबाल जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है भारतीय फुटबाल उसी रफ्तार से उल्टी चाल चल रही है। जी हां, यही सब भारतीय फुटबाल में हो रहा है। वरना क्या कारण है कि जिस देश ने कभी एशिया महाद्वीप में नाम सम्मान कमाया वह आज अपनी राष्ट्रीय फुटबाल चैंपियनशिप को भी नहीं बचा पा रहा।

सन 1981 में शुरू हुई संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैंपियनशिप 80 साल पुरानी हो गई है। इस बीच पश्चिप बंगाल ने सर्वाधिक 32 बार खिताब जीते। पंजाब, सर्विसेस, केरल, महाराष्ट्र आदि ने भी इस ट्राफी को चूमा। लेकिन अब शायद यह आयोजन बंद होने की कगार पर खड़ा है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि भारतीय फुटबाल फेडरेशन की संतोष ट्राफी में कोई रुचि नहीं रही।

फेडरेशन जब से आईएसएल और आई लीग के मोह में फंसी है तब से देश में आयोजित होनेवाले छोटे बड़े तमाम आयोजनों पर संकट गहरा गया है। खेल को बढ़ावा देने और फुटबाल प्रोत्साहन के नाम पर पेशेवर तेवर अपनाने वाली एआईएफएफ पता नहीं क्या चाहती है लेकिन उसे संतोष ट्राफी से जैसे कोई लेना देना नहीं है। क्षेत्रीय आधार पर खेले गए मैचों को लेकर गंभीरता की कमी साफ नजर आई।

भारतीय फुटबाल पर सरसरी नज़र डालें तो लगभग 10 लाख फुटबाल खिलाड़ियों में से लगभग पांच छह सौ पर ही फेडरेशन मेहरबान है। यह भी सच है कि इनमें से 11 की राष्ट्रीय टीम गठित करना भी सम्भव नहीं हो पाता।

आईएसएल और आई लीग के चलन से पहले संतोष ट्राफी भारतीय फुटबाल का प्राण मानी जाती थी। इस आयोजन के आधार पर ही राष्ट्रीय टीम का गठन किया जाता था। ज़ाहिर है हर खिलाड़ी का पहला सपना इस आयोजन में भाग लेना और अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व करना होता था। वह संतोष ट्राफी अब पूरी तरह उपेक्षित है।

यह भी सच है कि संतोष ट्राफी में भाग लेने वाली तमाम टीम भाई भतीजावाद, अवसरवाद और गंदी राजनीति की शिकार हैं। ज्यादातर राज्यों का हाल फेडरेशन जैसा है, जहां केवल अंधा कानून चल रहा है। ऐसे में वास्तविक प्रतिभाएं उभर कर नहीं आ रहीं। एक सर्टिफिकेट पाने के लिए मारा मारी का खेल खेला जा रहा है। जिस आयोजन से खेल का भला नहीं होने वाला उसे बेवजह ढोना तर्क संगत भी नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *