क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
सरकार के खेलो इंडिया और फिट इंडिया कार्यक्रम कितने असरदार हैं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल सबसे बड़ी समस्या यह है कि खिलाड़ी और आम नागरिक कहाँ खेलें ताकि फिट और हिट रह सकें। खेल मैदान लगातार घट रहे हैं या क्रिकेट के अतिक्रमण के शिकार हैं। sajwansports.com के एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि दिल्ली और देश के बड़े महानगरों और अधिंकाश शहरों में खेलने के लिए मैदान और स्टेडियम अपर्याप्त हैं या जो हैं भी उन पर क्रिकेट ने कब्जा कर लिया है। देश को खेल महाशक्ति बनाने का सपना देखने वाली सरकार और उसका खेल मंत्रालय चुपचाप तमाशा देख रहे हैं।
मिली भगत का खेल:
जहां तक दिल्ली की बात है तो देश की राजधानी होने के बावजूद खेलों के नाम पर सिर्फ क्रिकेट खेली जाती है।
भारतीय खेल प्राधिकरण, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली सरकार और तमाम सरकारी और गैर सरकारी विभागों के खेल मैदान या तो सूने पड़े रहते हैं या उनमें गतिविधियों के नाम पर सिर्फ क्रिकेट खेली जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि क्रिकेट की पहुंच ऊपर तक है और मैदान हथियाने में सेटिंग काम आती है। अधिकांश विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों के बेटे बेटियां क्रिकेट खेलते हैं या क्रिकेट में रुचि रखते हैं। ऐसे में क्रिकेटरों की हर जायज नाजायज मांग मान ली जाती है और उनके लिए तमाम कायदे कानून ताक पर रख कर क्रिकेट मैदान उनके नाम चढ़ा दिए जाते हैं। यह भी पता चला है कि -‘इस हाथ दे उस हाथ ले’ का खेल जोर शोर से चल रहा है।
क्रिकेट की खेती:
मान लिया कि कोरोना के चलते अधिकांश खेल गतिविधियां ठप्प पड़ी हैं लेकिन क्रिकेट बराबर खेली जा रही है। बड़े छोटे सभी स्टेडियमों में क्रिकेट अपने पूरे दम खम के साथ लौट चुकी है और बाकी खेलों को डराने धमकाने का खेल पहले की तरह चल निकला है। दिल्ली एनसीआर के खेल मैदान , पार्क और गलियां ही नहीं, खेत और खलिहान भी क्रिकेटमय हो चुके हैं। हर तरफ गेंद बल्ले केमुक़ाबले चल रहे हैं। किसान और जमींदारों को इन मैदानों से लाखों की कमाई हो रही है। चूंकि क्रिकेट की खेती फायदे का सौदा है इसलिए खेत लगातार घट रहे हैं। बाकी खेलों के लिए कोई जगह नहीं बची है। उनकी हालत बद से बदतर हो रही है।
बड़े खिलाड़ियों का कब्जा:
सर्वे में हैरान करने वाली यह बात सामने आई है कि क्रिकेट स्टेडियमों, मैदानों पर रिटायर हो चुके क्रिकेट खिलाड़ियों ने कब्जा जमा लिया है। देश के लिए खेले और करोड़ों में खेलने वाले खिलाड़ी अपनी पहुंच का फायदा उठा कर न सिर्फ क्रिकेट मैदान हथिया रहे हैं अन्य खेलों पर भी उनका कब्जा है। पूछने पर पता चला है कि राजधानी के कुछ नामी क्रिकेट खिलाड़ी अधिकारियों के साथ सांठ गांठ कर अपने नाम से मैदान अलाट कराते हैं और आगे किसी और को किराये पर चढ़ा देते हैं। इस खेल में कई पूर्व टेस्ट क्रिकेटर भी शामिल हैं। उनके इस फर्जीवाड़े से क्रिकेट से रोजी रोटी चलाने वाले कोच भी नाराज हैं। कई अकादमियां बड़े नाम वाले खिलाड़ियों के नाम पर चल रही हैं, हालांकि उनके दर्शन कभी नहीं होते।
वीरान पड़े हैं स्टेडियम:
दिल्ली में यूं तो नाम के लिए इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, नेहरू स्टेडियम, तालकटोरा स्टेडियम, शिवाजी स्टेडियम, श्याम प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम, ध्यानचन्द नेशनल स्टेडियम , छत्रसाल स्टेडियम और कई अन्य छोटे बड़े स्टेडियम और खेल मैदान हैं लेकिन अधिकांश आम खिलाड़ी की पहुंच से बाहर हैं। इन स्टेडियमों के रख रखाव पर करोड़ों खर्च किया जा रहा है पर खेल गतिविधियों के नाम पर साल दो साल में ही कोई बड़ा आयोजन हो पाता है। जो शिवाजी स्टेडियम कभी हॉकी का दिल कहा जाता था आज वीरान पड़ा है। नेशनल स्टेडियम पर कई सरकारी कार्यालय खुल गए हैं और खिलाड़ियों के लिए प्रवेश लगभग वर्जित है। हां, ज्यादातर स्टेडियमों से सटे क्रिकेट मैदानों में रौनक जस की तस बनी हुई है।
उजड़ रहे हैं ओलंपिक खेल मैदान:
ओलंपिक खेलों से जुड़े खिलाड़ी इसलिए भी खफा हैं क्योंकि न सिर्फ दिल्ली अपितु देशभर के स्कूल-कॉलेजों में बने हॉकी, फुटबाल, टेनिस, बैडमिंटन, बास्केटबॉल के मैदान और कोर्ट उजाड़े जा रहे हैं और उनकी जगह छोटे-बड़े क्रिकेट मैदान या नेट बना दिए गए हैं। हैरानी वाली बात यह है कि सरकार और खेल मंत्रालय सब कुछ जानते हुए भी खामोश है और क्रिकेट के नाजायज फैलाव को मूकदर्शक की तरह देख रहे हैं। ऐसी हालत में ओलंपिक पदक भला कैसे मिल पाएंगे?