क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
हॉकी की तरह भारत चार साल पहले तक कबड्डी में भी बेताज बादशाह माना जा रहा था। फर्क सिर्फ इतना है कि हॉकी ओलंम्पिक खेल है और कबड्डी फिलहाल एशियाड से आगे नहीं बढ़ पाया है। यह भी सच है कि भारतीय कबड्डी ने 1990 के एशियाई खेलों से लेकर सात अवसरों पर एशियाड स्वर्ण जीते लेकिन 2018 के जकार्ता खेलों में ईरान ने भारत को बुरी तरह हरा कर सेमी फाइनल में ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। भारतीय टीम को कांस्य पदक ही मिल पाया।
2022 के एशियाई खेलों के लिए चंद महीने बाकी हैं। लेकिन भारतीय कबड्डी तैयारी की बजाय अपनी अंदरूनी फूट से जूझ रही है। जकार्ता एशियाड में भारत के शर्मनाक प्रदर्शन का असल कारण भी फूट और गुटबाजी ही थी। वर्षों तक कबड्डी फेडरेशन के मुखिया रहे स्वर्गीय जनार्दन गहलोत के निधन के बाद शुरू हुई आपसी कलह गुटबाजी, आरोप प्रत्यारोप से होती हुई कोर्ट कचहरी तक पहुंची और अब मामला सुलझने की बजाय और बिगड़ रहा है।
कुछ समय के लिए श्रीमती गहलोत अध्यक्ष बनीं। लेकिन जल्दी ही उनके बेटे तेजस्वी गहलोत को अध्यक्ष पद सौंप दिया गया। कासानी ज्ञानेश्वर महासचिव और दिल्ली के निरंजन सिंह को कोषाध्यक्ष चुना गया। लेकिन गुटबाजी और सत्तालोलुपता के चलते खेल बिगड़ता रहा। इसी फूट का नतीजा था कि एशियाड में दो गुट अपनी अलग अलग टीमें भेजने पर अड़ गए थे। खैर तब मामला जैसे तैसे सुल्टा लिया गया था।
भले ही भारत में प्रो कबड्डी लीग की शुरुआत के बाद खिलाड़ियों को लाखों करोड़ों मिल रहे हैं लेकिन कबड्डी यदि कोर्ट कचहरी में ही खेली जाती रही तो जल्दी ही भारतीय कबड्डी तबाह हो सकती है।
भारतीय खेलों के लिए चीन में आयोजित होने वाले एशियाई खेल 2022 कई मायनों में चुनौतीपूर्ण रहेंगे। एक तो भारत द्वारा टोक्यो ओलंम्पिक में अर्जित साख दांव पर रहेगी। दूसरे चीन को चुनौती देने और जगहंसाई से बचने के लिए पदक तालिका में कमसे कम दूसरा तीसरा स्थान अर्जित करना।
लेकिन क्या भारतीय खिलाड़ी ऐसा कर पाएंगे? क्या भारत चीन , जापान और कोरिया को कड़ी टक्कर दे पाएगा? लेकिन भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती कुछ ऐसे खेल हैं जोकि ओलंम्पिक में शामिल नहीं हैं, जिनमें सबसे पहले कबड्डी का नाम आता है जोकि लगातार कोशिशों के बावजूद भी ओलंम्पिक खेल का दर्जा हासिल नहीं कर पाया है। डर इस बात का भी है कि यदि भारतीय पुरुष और महिला टीमें पिछले एशियाड की तरह एकबार फिर स्वर्ण पदक जीतने में नाकाम रहती हैं तो कबड्डी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा सकता है।
सात बार एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली भारतीय पुरुष टीम को जकार्ता खेलों में अंततः ईरान ने पकड़ लिया और पटक दिया। पुरुष टीम कांस्य पदक ही जीत पाई जबकि महिलाएं रजत जीतने में सफल रहीं। अजेय मानी जा रही भारतीय कबड्डी का यह हाल तब है जबकि चीन, जापान, कोरिया और कई अन्य एशियाई देश कबड्डी को गंभीरता से नहीं लेते।
जब भारत में प्रो कबड्डी लीग की शुरुआत हुई तो यह कहा गया कि प्रो कबड्डी के अस्तित्व में आने के बाद भारत इस खेल को ओलंम्पिक दर्जा दिला पाएगा और विश्व में कबड्डी की ताकत बनेगा। लेकिन सत्ता के भूखों ने कबड्डी को तमाशा बना कर रख दिया है। चार साल होने को हैं लेकिन फेडरेशन के झगड़े नहीं सुलट पा रहे। ऐसे में एशियाई खेलों की तैयारी पर बुरा असर तो पड़ेगा , भारत के हाथ से कबड्डी फिसल भी सकती है।