दीपक निवास हुड्डा, कप्तान, भारतीय राष्ट्रीय कबड्डी टीम, ने स्पोर्ट्स टाइगर के शो बिल्डिंग ब्रिज पर अपने करियर के बारे में विस्तार से बात की और बताया कि रोहतक के एक गाँव से राष्ट्रीय टीम के कप्तान बनने तक का सफर कैसे उन्होंने तय किया। दीपक की यात्रा आसान नहीं रही और उन्हें बहुत कम उम्र से ही कई जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ीं।
उन्होंने स्पोर्ट्स टाइगर के शो “बिल्डिंग ब्रिज” पर बातचीत में, अपने शुरुआती दिनों के बारे में बात की और कहा, “जब मैं 4 साल का था, मेरी माँ का निधन हो गया और 12 वीं कक्षा में, मैंने अपने पिता को खो दिया था। मेरी एक बड़ी बहन भी है, जो शादीशुदा थी, लेकिन कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण, वह अपने दो बच्चों के साथ हमारे साथ रह रही थी और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी मुझ पर थी।
इसलिए उस समय मुझे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। घर का खर्च चलाने के लिए मैं एक निजी स्कूल में पढ़ाने जाता था। लेकिन मैनें साथ में कबड्डी खेलना भी शुरू कर दिया था। मैं सुबह 6-6:30 बजे तक खेल का अभ्यास करता था और फिर स्कूल में जाकर पढ़ाता था। मैं 2-2:30 बजे तक घर लौट आता था और फिर शाम को 7:30-8 बजे तक शाम को अभ्यास के लिए जाता था।
उन्होंने कहा, उन दिनों के दौरान, लगभग 1.5-2 वर्षों तक, मैं रात को खाना खाने के बाद भी 2-3 घंटों तक स्ट्रीट लाइट के नीचे अभ्यास करता था।”
कबड्डी एक ऐसा खेल है जिसमें खिलाड़ियों को एक-दूसरे को छूना होता है। इसलिए कोरोना वायरस महामारी ने कबड्डी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। दीपक को भी अन्य खिलाड़ियों की तरह देश में लगे लॉकडाउन के कारण खेल से लंबे समय तक दूर रहना पड़ा।
उन्होंने कहा कोविड-19 के दौरान शुरू में कुछ समस्याएं थी लेकिन हम उनसे निपटने में कामयाब रहे। अब जबकि प्रतिस्पर्धी खेल प्रतियोगिताएं शुरू हो चुकी है, दीपक को इस बात की खुशी है कि सब कुछ सामान्य हो रहा है। उन्होंने कहा, “मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि हम कबड्डी फिर से शुरू होने का इंतजार कर रहे थे।
हम सिर्फ अभ्यास कर-कर के थक गए थे और कबड्डी खेलना चाहते थे। इतने समय तक हम सिर्फ घर में थे तो कभी घर की छतों पर। हम सभी कबड्डी प्रतियोगितओं को मिस कर रहे थे।”
उन्होंने 2014 और 2016 के बारे में भी बताया जो वर्ष उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने कहा, “2014 में पटना में हुए नेशनल्स में मैनें काफी अच्छा प्रदर्शन किया था और यह नेशनल्स में मेरा सबसे अच्छा प्रदर्शन था।
उनके इस प्रदर्शन के आधार पर, दीपक को राष्ट्रीय शिविर में बुलाया गया और आखिरकार कुछ महीने बाद प्रो कबड्डी लीग की नीलामी हुई जिसमें उन्हें दूसरी सबसे बड़ी बोली मिली।
उन्होंने अपने भारत के पदार्पण के बारे में भी बताया और कहा, 2016 में, मैंने भारतीय टीम की ओर से खेलना शुरू किया और उसी वर्ष में दक्षिण एशियाई खेल और विश्व कप भी खेला और तब से खेल रहा हूं। अर्जुन अवार्डी दीपक ने 2019 के दक्षिण एशियाई खेलों में भारतीय टीम को स्वर्ण पदक भी दिलाया।”
दीपक ने अपने करियर के सर्वश्रेष्ठ पलों के बारे में भी बात की, जब उन्हें भारतीय राष्ट्रीय टीम का कप्तान नियुक्त किया गया, उन्होंने कहा, “2019 के दक्षिण एशियाई खेलों के लिए, टीम के चयन के लिए ट्रायल चल रहे थे तब यह तय हो गया था कि मैं कप्तान बनूंगा।
प्रारंभ में, एक खिलाड़ी के लिए, सिर्फ भारतीय जर्सी प्राप्त करना किसी सपने के सच होने जैसा होता है। फिर विश्व कप, एशियाई खेलों जैसे बड़े टूर्नामेंटों में पदक प्राप्त करना और जब स्वर्ण पदक जीतने के बाद राष्ट्रगान बजता है, तो यह एक बहुत ही भावुक क्षण होता है। उसके बाद, राष्ट्रीय टीम का कप्तान बनाया जाना मेरे लिए और साथ ही किसी भी खिलाड़ी के लिए बहुत गर्व की बात है।”
दीपक, जो प्रो कबड्डी लीग (PKL) में जयपुर पिंक पैंथर्स के कप्तान भी हैं, का मानना है कि प्रो कबड्डी लीग ने खेल के विकास में बहुत योगदान दिया है और यह देश का दूसरा सबसे ज्यादा देखा जाने वाला खेल है।
“प्रो कबड्डी लीग के बाद आज लोग हमें जानते हैं और कबड्डी की वास्तविक वृद्धि इसके बाद हुई है। पहले एशियाई खेल और विश्व कप जैसे अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट होते थे लेकिन बहुत कम ही लोग इस खेल को फॉलो करते थे। लोग वही देखते हैं जो टीवी पर देखा जाता है।”