क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
खो खो फेडरेशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता सुधांशु मित्तल अपने खेल को ओलंपिक खेल का दर्जा दिलाने का सपना देख रहे हैं लेकिन वह भारतीय ओलंपिक संघ(आईओए) की राजनीति से दूर रहना चाहते हैं। कुछ दिन पहले तक वह आईओए के घमासान में खासी रुचि ले रहे थे पर यकायक वह आत्मसमर्पण जैसी मुद्रा में कैसे आ गए?अपने निवास पर आयोजित एक मुलाकात के चलते उन्होंने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि वह फिलहाल देश और दुनिया में खो खो के लिए माहौल बनाने के बारे में सोच रहे हैं। उनकी पहली प्राथमिकता खिलाड़ियों को सुविधा देना और खोखो को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने की है। हां, इतना जरूर कहा कि सही वक्त आने पर आईओए को भी जरूर सुधारेंगे, जोकि अपनी चाल भूल गई है।
जोर डालने पर उन्होंने लगभग हाथ जोड़ते हुए कहा कि आईओए के साथ उनका अनुभव इतना बुरा रहा है कि अब उस ओर देखने का मन नहीं करता। उन्हें नहीं लगता कि फिर कभी पुरानी कहानी दोहराना चाहेंगे।
फिलहाल उन्हें उस दिन का इंतजार है जब यह विशुद्ध भारतीय खेल 2022 के एशियाड में शामिल होगा। उन्हें उम्मीद है कि सरकार द्वारा परंपरागत खेलों को बढ़ावा देने के चलते खो खो की प्रगति संभव है। उन्होंने कहा कि उनके खेल के लिए पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। ठीक वैसे ही जैसे कबड्डी ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए विश्व स्तर पर पहचान बनाई है। लेकिन कबड्डी की कामयाबी का राज उसकी प्रो लीग है,जिसने खेल और खिलाड़ियों को मालामाल कर दिया है। क्योंकि कबड्डी में खिलाड़ी सुरक्षित भविष्य देख रहे हैं इसलिए जो दिखता है वही बिकता है कि कहावत सच हो रही है।
श्री मित्तल का मानना है कि कबड्डी की तर्ज पर वह भी गए नवंबर माह में खोखो लीग के आयोजन का फैसला कर चुके थे पर कोरोना ने खेल बिगाड़ दिया।उन्हें विश्वास है कि लीग का आयोजन शीघ्र संभव हो पायेगा। बगल में बैठे फेडरेशन सचिव एम एस त्यागी के अनुसार यदि कोरोना से निजात मिली तो सितंबर में लीग का आयोजन हो सकता है जिसमें दस फीसदी खिलाड़ी एशिया, अफ्रीका और यूरोप से हो सकते हैं। श्री त्यागी ने बताया कि उनका खेल तकनीकी रुप से कबड्डी से भी ज्यादा गतिमान और आकर्षक है, जिसके ओलयम्पिक खेल बनने की बड़ी सम्भावना है। उनके अनुसार खो खो देशभर में बेहद लोकप्रिय खेल है। जरूरत थी तो एक कुशल नेतृत्व की और श्री मित्तल के अध्यक्ष पद संभालने के बाद से खो खो की कामयाबी तय समझें।
त्यागी मानते हैं कि उनके खेल को जीरो से शुरू करना है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ सालों में खो खो की प्रगति नहीं हो पाई। जब यह विशुद्ध भारतीय खेल 2022 के एशियाड में शामिल होगा तब जाकर उन्हें चैन मिलेगा। चूंकि सरकार परंपरागत खेलों को बढ़ावा दे रही है, उम्मीद है कि अब खो खो की प्रगति भी संभव हो पाएगी।
त्यागी को भरोसा है कि श्री मित्तल के नेतृत्व में भारत वर्ल्ड खो खो का नेतृत्व कर पायेगा। एशियाड में शामिल होने के बाद उनके खेल को ओलम्पिक में जगह पाने के लिए कमसे कम 70 देशों का समर्थन चाहिए, जोकि कुछ एक सालों में संभव हो सकता है।
सुधांशु मित्तल ने एक सवाल के जवाब में खेल मंत्री किरण रिजिजू की जमकर तारीफ की और कहा कि वह भारतीय खेलों की नब्ज पहचानते हैं और हर खेल की गहरी समझ रखते हैं। उनके अनुसार खेल मंत्री प्राचीन भारतीय खेलों को नयापन देने का प्रयास कर रहे हैं और खो खो को उनका हर प्रकार से सहयोग मिल रहा है। उन्होंने स्वीकार किया कि खोखो को अभी लम्बा सफर तय करना है और इससफर में उन्हें मीडिया का सहयोग चाहिए।