क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
जो भारतीय खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक का टिकट पा चुके हैं या जिन्हें अभी क्वालीफाइंग टूर्नामेंट खेलने हैं, उन्हें गाबा में खेले गए भारत आस्ट्रेलिया टेस्ट मैच की रिकार्डिंग कई बार ज़रूर देखनी चाहिए। वो कोच और फ़ेडेरेशन अधिकारी भी देखें जो कि क्रिकेट को जब तब बुरा भला कहते हैं। बेहतर होगा भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन और खेल मंत्रालय के बड़े छोटे पदाधिकारी भी अवश्य देखें ताकि उनको इस बात का ज्ञान हो सके कि मान सम्मान, पदक और प्रतिष्ठा कैसे जीते जाते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि क्रिकेट देश का सबसे लोकप्रिय खेल है जिसमें पैसे की भरमार है। यह ओलंपिक खेल भी नहीं है फिरभी अन्य खेलों के मुक़ाबले भारत में यह खेल शीर्ष पर विराजमान है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह खेल शुरुआती सालों में राजे महाराजाओं और धनाढ्य परिवारों से जुड़ा था। आज कोई भी ग़रीब-अमीर, बड़ा-छोटा और गाँव या शहर का बच्चा क्रिकेट खेल रहा है और बेहतर खेलने वालों के लिए आगे बढ़ने के तमाम रास्ते खुले हैं।
कंगारूओं को उन्हीं की सरजमीं पर क्रिकेट का सबक सिखाने वाले और भारतीय जीत में बड़ी भूमिका निभाने वाले मोहम्मद सिराज, वाशिंगटन सुंदर, टी नटराजन, शुभमान गिल और हनुमा विहारी जैसे युवा खिलाड़ियों से भारतीय ओलंपियन चाहें तो बहुत कुछ सीख सकते हैं। सिर्फ़ एक टेस्ट मैच में ही नहीं पूरी सीरीज़ में अनुभवी और युवा खून ने जमकर धमाल मचाया। कई खिलाड़ियों ने चोट खाई। एक समय लग रहा था कि अंतिम एकादश के लिए भी खिलाड़ी कम पड सकते हैं। जिन खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बच्चा कहा जा रहा था उन्होंने ग़ज़ब का प्रदर्शन कर दिखा दिया कि उनमे जग जीतने का जज़्बा है और देश के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए कुछ भी कर गुजर सकते हैं
फिर कैसे मान लें कि हमारे क्रिकेटर अन्य खेल खिलाड़ियों से कमतर देशभक्त हैं! आस्ट्रेलिया के विरुद्ध सिर्फ़ रुपये डालर दाँव पर नहीं थे, देश का सम्मान भी मायने रखता है और भारतीय यंगिस्तान ने अपने सीनियर खिलाड़ियों के कंधे से कंधा मिला कर वह सब कर दिखाया जिसकी किसी ने शायद कल्पना भी नहीं की होगी विराट कोहली की गैर मौजूदगी में अजिंक्य रहाने ने जब टीम की कमान संभाली तो बहुत कम लोगों को लगा कि अब भारतीय टीम का मुश्किल समय शुरू होगा। लेकिन रहाने, शार्दुल, पंत, पुजारा और तमाम खिलाड़ियों ने अपना श्रेष्ठ दिया और भारत को जीत दिलाई।
अन्य भारतीय खेलों पर नज़र डालें तो ज़्यादातर में क्रिकेट जैसे सनसनीखेज नतीजे कम ही देखने को मिले हैं| 1983 के विश्व कप में कपिल की टीम का वेस्ट इंडीज का साम्राज्य ध्वस्त करना और विश्व कप जीतना बड़ी उपलब्धि रही। तत्पश्चात भी विश्व विजेता बने और कुछ एक यादगार मैच जीते लेकिन ओलंपिक में हॉकी को छोड़ कोई अन्य खेल देशवासियों को रोमांचित नहीं कर पाया। कुश्ती में सुशील कुमार, योगेश्वर, साक्षी मलिक, मुक्केबाज़ी में मैरी काम, विजेंद्र, के पदकों ने उनके खेलों को सजाया सँवारा। अभिनव बिंद्रा, पीवी सिंधु, सायना नेहवाल, लियन्डर पेस, कर्णम मल्लेश्वरी और कुछ अन्य खिलाड़ियों ने ओलंपिक में पदक जीते लेकिन ज़्यादातर खेलों में विफलता ही हाथ लगी है।
क्रिकेट की जीत से पूरा देश रोमांचित है। बाकी खेलों के ठेकेदारों को भी समझ लेना चाहिए कि वे भी अपना कद और कारनामा टीम इंडिया जैसा उन्नत करें तो उनकी भी जय जयकार ज़रूर होगी। खेल मंत्रालय और आईओए को भी अपनी गिरेबां ज़रूर टटोल लेने चाहिए। उन्हें जान लेना छाईए कि क्रिकेट के सामने उनकी कोई हैसियत नहीं है। पैसे,प्रतिष्ठा के साथ अब प्रदर्शन में भी क्रिकेट ने उन्हें बहुत पीछे छोड़ दिया है। दुर्भाग्यवश, हमारे पास अन्य खेलों में क्रिकेट जैसा यंगीस्तान नहीं है। यदि भारत को ओलंपिक में बड़ी ताक़त बनना है तो क्रिकेट की तरह जीत का दृढ़ विश्वास पैदा करना होगा।