क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
पिछले कुछ घंटो से देश विदेश के भारतीय मार्शल आर्ट्स खिलाड़ी और खेल प्रेमी लगातार यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि उनके खेल को सपोर्ट करने के लिए दिल्ली में कौनसा मार्शल आर्ट्स संगठन अस्तित्व में आया है।
इधर उधर पूछताछ और ताक झाँक के बाद पता चला कि मार्शल आर्ट्स गेम्स फ़ेडरेशन आफ इंडिया(एम जीएफ़आई) नामक संस्था ने भारत में मार्शल आर्ट्स खेलों को बढ़ावा देने के लिए एक छतरी के नीचे आने का आमंत्रण दिया है, जिसमें भारतीय ओलम्पिक समिति और दिल्ली ओलम्पिक से जुड़े कुछ प्रभावी लोग भी शामिल बताए जाते हैं।
सभी मार्शल आर्ट्स खेलों को एक प्लेटफार्म के नीचे लाने की कोशिश अपने आप में एक शानदार पहल ज़रूर है लेकिन राष्ट्रीय स्तर के अधिकांश मार्शल आर्ट्स खेल फ़ेडरेशन पूछ रहे हैं कि एमजीएफ़आई को यह अधिकार किसने दिया है।
और क्या इस भानमति के कुंडवे को खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक समिति की मान्यता प्राप्त है? जिन खेलों को जोड़ने का आह्वान किया गया है उनमें जूडो, कराटे, ताइक्वांडो और किक बॉक्सिंग जैसे चर्चित खेलों के अलावा तांग सुडो, स्के मार्शल आर्ट, मो थाई और कुछ अन्य खेल शामिल हैं।
इसमें दो राय नहीं कि भारत में मार्शल आर्ट्स खेल लूट खसोट और गंभीर बीमारी के शिकार हैं। कोई भी ऐसा खेल नहीं जिसमें दो से चार धड़े अस्तित्व में ना हों। सभी अपनी अपनी डफली बजा रहे हैं। लेकिन सब का राग बेहद बे सुरा है।
हर एक देश के भोले भाले अविभावकों को लूटने में लगे हैं, बच्चों का खेल भविष्य बिगाड़ रहे हैं और उनके अंदर की प्रतिभा का दोहन कर रहे हैं। जो प्रतिभाएं हॉकी फुटबाल,क्रिकेट, कबड्डी , कुश्ती, मुक्केबाजी आदि खेलों में नाम शौहरत कमा सकती थीं ओलंम्पिक मैडल जीत सकती थीं, उन्हें मार्शल आर्ट्स खेलों के ठेकेदार बर्बाद करने में लगे हैं।
सच तो यह है कि कोई भी खेल बुरा या कम महत्वपूर्ण नहीं है। बुरे हैं उन खेलों को चलाने वाले जोकि खेल के नाम पर दुकानें चला रहे हैं, जिसे अब ‘मॉल’ का रूप दिया जा रहा है, जिसके आर्किटैक्ट वही लोग हैं जोकि मार्शल आर्ट्स खेलों की छोटी – बड़ी दुकानें सजाए बैठे थे और अब एकजुट होने का ड्रामा रच कर रही सही कसर पूरी करना चाहते हैं।
एशियाड, ओलंम्पिक और पेशेवर सर्किट में जूडो, कराटे, ताइक्वांडो जैसे खेलों को अन्य खेलों सा सम्मान प्राप्त है। लेकिन अपने देश में इन खेलों को उनके शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों ने तबाह कर दिया है। अधिकांश फेडरेशन अधिकारी एक दूसरे से लड़ रहे हैं, जिनमे से कुछ एक जेल की सजा भुगत चुके हैं। लूट खसोट,गबन और पद के दुरुपयोग के आरोप उन पर लगे हैं।
मार्शल आर्ट्स गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया के गठन को लेकर अधिकांश खेल संघ हैरान हैं और पूछ रहे हैं कि उनके खेल किसी के घर की खेती हैं क्या? कुछ राष्ट्रीय और राज्य खेल संघों से बातचीत से पता चला कि उन्हें ऐसे किसी संगठन के गठन की जानकरी नहीं है।
एक खेल प्रमुख जानना चाहता है कि उन्हें यह अधिकार किसने दियाहै? दूसरा कहता है, खेल मंत्रालय, आईओए और उसकी सदस्य इकाइयों को इस मामले को गंभीरता से लेना होगा, क्योंकि तमाम मार्शल आर्टस खेल संकट से गुजर रहे हैं। कोरोना ने खिलाड़ियों और ट्रेनरों की कमर तोड़ डाली है। उनके सेंटर बंद पड़े हैं और रोजी रोटी का जुगाड़ नहीं है।
ऐसे में कुछ जुगाड़ू उनके कटे पर नमक क्यों छिड़क रहे हैं? कुछ कोच मानते हैं कि इस प्रकार के फर्जी संगठन मार्शल आर्ट्स खेलों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। अतः उड़ने से पहले ही उनके पर कतरने में ही भलाई है।
पता नहीं मार्शल आर्ट्स खेलों के फर्जीवाड़े को कब इस देश के पढ़े लिखे लोग समझ पाएंगे? कब तक अनपढ़ और अवसरवादी उन्हें चलाते रहेँगे और उनके नौनिहालों का भविष्य चौपट करते रहेंगे?
VeryGoodNotice
प्रणाम
खेलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तर पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त खिलाड़ीयों को कुछ न कुछ प्रोत्साहन राशि सरकार के खेल मंत्रालय की तरफ से मिलना चाहिए । जिससे अन्य खिलाड़ीयों में भी खेल के प्रति उत्साह पैदा हो और भारत अंतर्राष्ट्रीय एवं ओलंपिक खेलों में हमेशा देश के लिए मेडल की भरमार कर दें