क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
देश के सर्वकालीन श्रेष्ठ पुरुष एथलीट सरदार मिल्खा सिंह 88 के हो चले हैं। उनकी दिली इच्छा है कि जीते जी किसी भारतीय को ओलंपिक चैंपियन बनता देख पाएं। हाल ही में उन्होंने एक कार्यक्रम के चलते कहा कि उन्हें उस दिन सबसे ज्यादा खुशी मिलेगी जिस दिन कोई भारतीय ओलंपिक गोल्ड जीतेगा। गनीमत है उन्होंने यह नहीं कहा कि पदक जीतने वाले एथलीट को क्या पुरस्कार देंगे!
भारतीय खेल प्रेमी जानते हैं कि 1995 में उन्होंने घोषणा की थी कि जो भारतीय उनके रोम ओलंपिक में बनाए 400 मीटर के रिकार्ड को तोड़ेगा, उसे 5 लाख इनाम देंगे। तीन साल बाद पंजाब के परमिंदर ने यह कर दिखाया पर मिल्खा जी ने अपना वादा पूरा नहीं किया। अगर मगर और बहानेबाजी कर परमिंदर के प्रदर्शन को कमतर करने का दुखद बहाना बनाया, जिस कारण से उन्हें जगहंसाई का पात्र भी बनना पड़ा था। तब से एथलेटिक से जुड़े लोगों ने उन्हें गंभीरता से लेना छोड़ दिया है। खासकर , भारतीय एथलेटिक में उन्हें महज ज्ञान बांटने वाला संत कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने खेल के विकास में उन्होंने कोई बड़ा योगदान शायद ही कभी दिया हो।
इसमें दो राय नहीं कि मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक के चौथे स्थान के बाद से राष्ट्रीय नायक से बन गए। एशिया और कामनवेल्थ खेलों के स्वर्ण ने उनका कद बढ़ाया लेकिन देश में एथलेटिक को चलाने वाले, एथलीट और कोच उनसे कम ही प्रभावित रहे। कारण, उन्होंने खेल के उत्थान की बजाय एथलेटिक फेडरेशन और उभरते एथलीटों का मनोबल तोड़ने वाले बयान दिए। फेडरेशन से उनकी कभी पटी नहीं।
खेल जानकार और विशेषज्ञों की मानें तो ओलंपिक में चौथा स्थान पाने वाले जिन खिलाड़ियों ने सबसे ज्यादा लोकप्रयिता पाई, सुविधाओं का सुखभोग किया उनमें मिल्खा और दीपा करमारकर सबसे भाग्यशाली रहे हैं। खासकर, दीपा बिना कुछ किए धरे ही सब कुछ पा गईं। जानकारों की राय में ऐसा इसलिए है क्योंकि हम खेलों में बहुत पीछे चल रहे हैं। ऐसे में छोटी छोटी सफलताओं को पाने वाले बेवजह सितारे बन जाते हैं और तमाम सुविधओं पर हाथ साफ करने में कामयाब हो जाते हैं।
इसमें दो राय नहीं कि मिल्खा गरीब और साधारण परिवार से थे। भारतीय फौज के इस एथलीट को सेना ने प्रोत्साहन दिया और वह ओलंपिक तक जा पहुंचे। लेकिन सेना और पंजाब के खेल विभाग से रिटायर होने के बाद उन्होंने सिर्फ उपदेशक की भूमिका निभाई। कुछ पूर्व एथलीटों के अनुसार यदि उन्होंने भावी खिलाड़ियों को सिखाया पढ़ाया होता और उन्हें प्रदर्शन में सुधार की तजबीज सिखाई होती तो भारत को कुछ और अच्छे एथलीट मिल जाते।
पंजाब के खेल पद पर रहते उन पर कुछ आरोप भी लगे जोकि बाद में भुला दिए गए। उन पर बनी फिल्म पर भी उंगली उठी। मिल्खा भारतीय एथलेटिक की हालत से भली भांति परिचित हैं। उन्हें पता है कि देश में एक भी एथलीट ऐसा नहीं जोकि ओलंपिक गोल्ड जीतने का दम रखता हो। लेकिन सपने देखने में बुराई क्या है!