क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
मणिपुर की मीरा बाई चानू भारी भरकम भारतीय ओलंम्पिक दल की एकमात्र ऐसी खिलाड़ी है, जिसे मुक़ाबले से पहले ही निश्चित पदक विजेता मान लिया गया था। छोटे कद की इस बड़ी वेटलिफ्टर ने देश के लिए टोक्यो ओलंम्पिक का पहला पदक जीत कर न सिर्फ भारतीय वेटलिफ्टिंग को जीवित कर दिखाया अपितु उन उम्मीदों को भी साकार कर दिया, जिनमें भारत को पहले ही दिन कोई ओलंपिक पदक नज़र आ रहा था।
असल चैंपियन:
उस समय जबकी भारत के जानेमाने खेल विशेषज्ञ निशानेबाजों और तीरंदाजों से अभूतपूव प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे थे, एक ऐसा वर्ग भी था जोकि बार बार कह रहा था कि मीरा बाई टोक्यो ओलंम्पिक में भारत का खाता खोलने जा रही है। खेल प्रेमियों और वेटलिफ्टिंग के जानकारों का ऐसा आत्म विश्वास शायद ही पहले कभी देखने को मिला होगा।
भले ही कई पहलवानों, मुक्केबाजों, निशानेबाजों और तीरंदाजों को पदक के दावेदार मान लिया गया था लेकिन मीरा बाई पर दांव खेलने का बड़ा कारण यह था कि वह 49 किलो भारवर्ग में विश्व रिकार्ड धारी है और स्वर्ण पदक जीतने वाली चीनी लड़की को ही उससे बेहतर माना जा रहा था। दोनों वरीयता क्रम में क्रमशः पहले दूसरे नंबर पर थीं और ओलंम्पिक मुकाबले के बाद भी उनका क्रम यही रहेगा।
21 साल बाद:
सन 2000 के सिडनी ओलंम्पिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने पहली भारतीय महिला के रूप में ओलंम्पिक पदक जीता था। अब मीरा बाई ने 21 साल बाद ना सिर्फ पदक का रंग बदला अपितु रियो ओलंम्पिक के अपने निराशाजनक प्रदर्शन को भी भुला दिया है। तब भी वह पदक की प्रबल दावेदार थी पर छह प्रयासों में मात्र एक बार सफल रही थी। अब वह ओलंम्पिक में रजत पदक जीतने वाली पहली वेटलिफ्टर और पीवी सिंधू के बाद दूसरी भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई है।
खेल का गौरव बढ़ाया:
वेटलिफ्टिंग को आमतौर पर पुरुषों का खेल माना जाता है, हालांकि आज तक एक भी पुरुष खिलाड़ी ओलंम्पिक पदक नहीं जीत पाया है। यह भी सही है कि महिला वेटलिफ्टरों को प्रायः टेढ़ी नजरों से देखा जाता रहा है। लेकिन मल्लेश्वरी के बाद अब चानू के पदक ने खेल का सम्मान बढ़ाया है। साथ ही भारतीय महिलाओं को संदेश दिया है कि वेट लिफ्टिंग को भी अन्य खेलों की तरह अपनाएं क्योंकि इस खेल में कामयाबी की अपार संभावना है। बस इरादा पक्का और नजर पदक पर होनी चाहिए, मीरा बाई चानू की तरह।