क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
सपने देखने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन माननीय प्रफुल्ल पटेल जैसा सपना देखना या तो अत्यधिक आत्मविश्वास कहा जाएगा या यह कहा जाएगा कि नेताओं का काम ही झूठ बोलना और गुमराह करना है।
AIFF अध्यक्ष पटेल साहब ने एक बार फिर दोहराया कि भारतीय फुटबाल टीम का लक्ष्य 2026 का फीफा वर्ल्ड कप है। 2027 के एएफसी कप के लिए दावेदारी पेश करते वक्त उन्होंने पत्रकारों की भरी सभा में जब यह शंखनाद किया तो कुछ पत्रकार मास्क में छिपे चेहरों में आंखों से हंसते नज़र आ रहे थे।
उनकी आंखें बता रही थीं कि जैसे उन्होंने कोई घिसा पिटा चुटकुला सुना हो।लेकिन खेल मंत्री किरण रिजिजू एआईएफएफ अध्यक्ष के दावे पर तालियां बजा रहे थे। इसलिए क्योंकि वह भी जब- तब खुद को बहुत बड़ा खेल जानकर और फुटबाल एक्सपर्ट बताते आये हैं।
सवाल यह पैदा होता है कि हमारे नेता-मंत्री कब तक यूं ही झूठ बोलते रहेंगे? कब तक अपनी कुर्सी बचाने के लिए झूठ और धोखाधड़ी का सहारा लेते रहेंगे? कौन नहीं जानता कि फुटबाल में हमारे देश की क्या हालत है और कैसे हमारे लिए एक एक कदम बढ़ाना कड़ी चुनौती बनता जा रहा है?
कभी मुंशी भी बोले थे:
बीस-पच्चीस साल पहले फेडरेशन अध्यक्ष स्वर्गीय प्रिय दास मुंशी भी गाहे बगाहे कहा करते थे कि भारतीय फुटबाल बहुत जल्दी ही वर्ल्ड कप खेलेगी। पहले उन्होंने 2006 को लक्ष्य बनाया। तत्पश्चात 2014 तक पलटी खा गए। यही काम प्रफुल पटेल भी कर रहे हैं। कुछ पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी कह रहे हैं कि भारतीय फुटबाल का मुखिया सठिया गया है या गलत फहमी का शिकार है। हैरानी वाली बात यह है कि खेल मंत्री भी हां में हां मिला रहे हैं।
भीख से मिलेगा मौका:
देश में फुटबॉल की गहरी समझ रखने वालों औरपूर्व खिलाड़ियों की राय में भारत को यदि कभी वर्ल्ड कप खेलने का मौका मिला तो ऐसा तब ही संभव है जब अंडर 17 आयोजनों की तरह मेजबानी मिल जाए या फीफा बड़ी कीमत वसूल कर या तरस खा कर भारतीय फुटबाल का सम्मान रख ले।कुछ आलोचक तो यहां तक कहते हैं कि 3026 में भी यदि भारत फीफा कप में खेल पाए तो बड़ी बात होगी।
बांग्लादेश से तो जीतो:
कुछ माह पहले बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने भारत से बराबर खेल कर भारतीय फुटबाल को हैसियत का आईना दिखा दिया था। जो देश 1951 और 1962 के एशियाई खेलों का चैंपियन था उसे अब एशियाड खेलने के लाले पड़े हैं। एक पूर्व ओलंपियन के अनुसार भारतीय फुटबाल अभी वहां नहीं पहुंची जहां 80-90 के दशक में थी। उससे पहले ओलंपिक में खेले। लेकिन जब तक महाद्वीप के पहले चार देशों में जगह नहीं मिल जाती, वर्ल्ड कप खेलने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
कहाँ के टाइगर:
‘ब्लू टाइगर्स’, यह संबोधन सुनने में अच्छा लगता है लेकिन जब हमारे खिलाड़ी उप महाद्वीप के देशों से पिटते हैं तो उनके अंधे भक्त भी अपने खिलाड़ियों को टाइगर मानने से इनकार कर देते हैं। बांग्लादेश, नेपाल, अफगानिस्तान, म्यांमार से बराबर खेलने वाले या हारने वाले तो मेमने ही हो सकते हैं। ऐसे में बेहतर यह होगा कि हम अपनी फुटबाल को सिर चढ़ाना छोड़ दें।