क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
National Sports Award 2020 – सरकार के खेल मंत्रालय ने पैरा खिलाड़ियों और स्वदेशी खेलों को सामान्य खिलाड़ियों द्वारा खेले जाने वाले खेलों के समान दर्जा देने का फैसला किया है। इस बार के राष्ट्रीय खेल अवार्डों पर नजर डालें तो सब को खुश करने की इसी रणनीति के चलते खेल अवार्ड बांटे गए।
लेकिन जहां एक ओर वर्ष 2020 विश्वव्यापी महामारी के लिए इतिहास पुस्तिकाओं में दर्ज हो चुका है तो कोरोना काल उन भाग्यशालियों को भी हमेशा याद रहेगा जिनके लिए तमाम नियमों की अनदेखी कर रिकार्ड तोड़ खिलाड़ियों और कोचों को खेल रत्न, अर्जुन, ध्यानचन्द और द्रोणाचार्य अवॉर्ड बाँटे गए| हालाँकि बड़ी तादात में खेल पुरस्कारों का बँटवारा कुछ लोगों को रास नहीं आया लेकिन संभवतया सरकार नें कोरोना से त्रस्त खिलाड़ियों और गुरुओं का मनोबल बढ़ाने के लिए यह निर्णय लिया होगा।
हालाँकि एक बड़ा वर्ग कह रहा है कि सरकार ने सब को खुश करने और राजनीतिक लाभ पाने के लिए ऐसा किया। खैर, सरकार की मंशा चाहे कुछ भी रही हो, अधिकाधिक खिलाड़ी और कोच सम्मान पा गए| लेकिन आने वाले सालों में भी क्या खेल मंत्रालय अपने ही बनाए नियमों की अनदेखी करेगा?
कुछ पूर्व खिलाड़ियों और कोचों को लगता है कि खेल मंत्रालय को भविष्य में अपने फ़ैसले को लेकर पहले से ज़्यादा असंतुष्टों का सामना करना पड़ सकता। यह भी संभव है कि पैरा और स्वदेशी वर्ग बराबरी का हक माँगने के लिए आवाज़ बुलंद कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो मामला गंभीर हो सकता है।
रियो ओलंपिक में पदक लूटने के दावे के साथ गए भारतीय दल को मात्र दो ही पदक मिले जबकि खेल मंत्री और तमाम ज़िम्मेदार लोगों ने दर्ज़न भर पदक जीतने का दावा किया था । मंत्रालय, आईओए और खेल संघों को बुरा भला सुनना पड़ा। लेकिन जिस वक्त भारतीय दल की थू थू हो रही थी हमारे पैरा खिलाड़ी रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन के साथ तिरंगा फहरा रहे थे। सही मायने में पैरा खिलाड़ियों ने देश के गौरव को चार चाँद लगाए|
रियो ओलंपिक में देवेन्द्र झांझरिया और मारियप्पन ने स्वर्ण पदक, दीपा मलिक ने रजत और वरुण भाटी ने कांस्य पदक जीते। झांझरिया, दीपा और मारियप्पन खेल रत्न पा चुके हैं|हालाँकि सभी वर्गों के खिलाड़ियों को समान पुरस्कार राशि दी जाती है लेकिन रियो ओलंपिक के शानदार प्रदर्शन के बाद पैरा खेलों ने अवॉर्ड कमेटियों पर आरोप लगाया कि उनके बहुत से खिलाड़ियों की अनदेखी की जाती है।
पक्षपात का आरोप लगाने वाला पैरालम्पिक संघ भी लगातार विवादों में रहा है| संघ का एक धड़ा अपने ही खिलाड़ियों के बीच के भेदभाव को उजागर करते हुए कहता है कि गंदी राजनीति के चलते बेहतर खिलाड़ियों की अनदेखी की जाती है| अपना नाम ना छापने की शर्त पर कुछ अधिकारी तो यह भी कहते हैं कि पैरा खिलाड़ी इसलिए पदक जीत रहे हैं क्योंकि इन खेलों में बहुत कम खिलाड़ी भाग लेते हैं।
तीसरी चुनौती के रूप में देश के स्वदेशी खेल आ खड़े हुए हैं पहला बड़ा सम्मान मलखंब के कोच योगेश मालवीय को द्रोणाचार्य पुरस्कार के रूप में मिला है। चूँकि सरकार हर साल स्वदेशी खेलों को सम्मान देने की पक्षधर है इसलिए खेल पुरस्कार ऐसे त्रिकोण में फँस सकते हैं, जिसके चलते विवादों में बढ़ोतरी की आशंका है। सरकार द्वारा स्वदेशी को बढ़ावा और अपने पुराने खेलों को प्रोत्साहन देने का सीधा सा मतलब है कि राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के लिए तय योग्यता और मापदंडों में भी बदलाव किया जाएगा, जिसे लेकर बड़ा विवाद तय है।