क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलंपिक से नाम वापस लेने का उतर कोरिया का फ़ैसला कोरोना से त्रस्त खेल जगत के लिए एक और बुरी खबर है। कोविद 19 के फैलाव को कोरिया ने कारण बताया है। हालाँकि जापान की ओलंपिक आयोजन समिति और अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति खेलों के आयोजन की ठान चुके हैं लेकिन यदि कुछ और देशों ने असमर्थता दिखाई और बीमारी के सामने हाथ खड़े किए तो एक साल के स्थगन के बाद खेलों को रद्द घोषित भी किया जा सकता है।
यदि ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं हो पाता तो खिलाड़ियों के प्रदर्शन का ग्राफ सालों पीछे जा सकता है। 2016 के रियो ओलंपिक के बाद जिन खिलाड़ियों ने चार साल बाद अपना रिकार्ड बेहतर करने और नये कीर्तिमान रचने का ख्वाब देखा था उनके सपने अधूरे रह जाएँगे। आख़िर खिलाड़ी भी इंसान हैं और उनकी शारीरिक-मानसिक क्षमता की भी सीमा है। यह ज़रूरी नहीं कि चार साल बाद वे अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन बनाए रख पाएँगे।
इस कसौटी पर भारतीय खिलाड़ियों को परखें तो ज़्यादातर खेलों में हमारे खिलाड़ी अपने श्रेष्ठ के साथ रिटायर होने को विवश हो सकते हैं। जिन खेलों में भारत को पदक की उम्मीद है उनमे कुश्ती, बैडमिंटन, मुक्केबाज़ी, निशानेबाज़ी, हॉकी प्रमुख हैं। कुश्ती में सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त के बाद सबसे बड़ी उम्मीद के रूप में अनुभवी और विश्व स्तर पर धूम मचाने वाले बजरंग पूनिया एवम् विनेश फोगाट को लेकर दावे किए जाते रहे हैं।
दोनों पहलवानों ने अपने प्रदर्शन से यह साबित भी किया है कि उनसे क्यों ओलम्पिक पदक की अपेक्षा की जा रही है। कुछ अन्य पहलवान भी दावेदार बन कर उभरे हैं। लेकिन यदि किसी कारणवश टोक्यो ओलम्पिक रद्द होते हैं तो फार्म में चल रहे पहलवानों पर उम्र भारी पड़ सकती है और वे शायद ही 2024 के पेरिस खेलों में भाग ले पाएँ।
कुश्ती के अलावा बैडमिंटन ऐसा खेल है जिसमें पिछले दो ओलम्पिक खेलों में पदक मिले हैं। सायना नेहवाल के लिए बड़ी चुनौती क्वालीफ़ाई करना है। सिंधु का ओलम्पिक प्रवेश तय है। दोनों ही ओलम्पिक पदक विजेताओं के पास शायद आख़िरी मौका है। सायना का खेल ढलान पर है जबकि सिंधु संघर्ष कर रही है।
अब नहीं तो कभी नहीं, वाली कहावत उस पर लागू होती है। यही स्थिति मुक्केबाज़ मैरिकाम के साथ है। लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद उसके प्रदर्शन में दम खम की कमी साफ नज़र आई है। बढ़ती उम्र मैरिकाम पर भारी पड़ रही है।
भले ही महिला और पुरुष हॉकी टीमों ने टोक्यो का टिकट पाया है। लेकिन हॉकी पर से कब का भरोसा उठ चुका है। हालाँकि हॉकी इंडिया और टीम कोच और हॉकी जानकार सालों बाद पदक जीतने का दम भर रहे हैं लेकिन खेल नहीं हुए तो कई वरिष्ठ खिलाड़ी अगले ओलम्पिक तक थक चुके होंगे। यह ना भूलें कि उम्र की धोखाधड़ी भारतीय खिलाड़ियों का गहना रही है। गिरते प्रदर्शन और साँसे फूलने के बावजूद इसलिए टीम में बने रहते हैं क्योंकि उम्र छिपाते हैं।
एथलेटिक में लाख झूठ बोलें लेकिन पदक से फिलहाल बहुत दूर हैं। कुछ महिला एथलीट बड़े बड़े दावे ज़रूर कर रही हैं लेकिन 2024 के खेलों तक उनका ट्रैक पर जमे रहना मुश्किल लगता है। अर्थात पदक की हुंकार भरने वाले नब्बे फीसदी खिलाड़ी शायद ही अगले ओलम्पिक तक मैदान पर डटे रह पाएंगे।