क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलंपिक चंद सप्ताह दूर है। तमाम देशों के खिलाड़ी निर्णायक तैयारी में लगे हैं। भले ही आयोजन को लेकर अगर मगर का सिलसिला बरकरार है लेकिन खेल हुए तो हमारे खिलाड़ी कितने पदक जीत सकते हैं , कहना मुश्किल है।
खेल मंत्रालय और आईओए हमेशा की तरह डींगें हांक रहे हैं। उन्हें अपने खिलाड़ियों की तैयारी पर गर्व तो होना चाहिए पर अत्यधिक आत्मविश्वास कहाँ तक ठीक है यह ओलंपिक पदक तालिका देखने के बाद ही पता चल पाएगा।
भारतीय ओलंपिक दल पर नज़र डालें तो दो खिलाड़ी ऐसी हैं, जिनके पास पहले से ही बड़ा अनुभव और ओलंपिक पदक हैं। मुक्केबाज मैरीकॉम और बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू दूसरा पदक जीतने के लिए कमर कसे हैं।
रियो ओलंपिक में कुश्ती का कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक सोनम मलिक से हार कर पहले ही बाहर हो चुकी है। फिरभी कुश्ती दल से इसलिए बड़ी उम्मीद की जा रही है क्योंकि बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट जैसे विश्व चैंपियन अगुवाई कर रहे हैं।
टोक्यो की उड़ान पकड़ने से पहले दो घटनाएं भारतीय दावेदारी को कमजोर करने वाली रही हैं। एक तो बैडमिंटन दल का आकार छोटा हुआ है और ओलंपिक क्वालीफायर समय से पहले समाप्त घोषित किए जाने के कारण सायना नेहवाल और किदाम्बी श्रीकांत की ओलंपिक भागीदारी संभव नहीं हो पाई है। दूसरी घटना छह बार की विश्व चैंपियन मैरीकॉम की ताजा हार के रूप में देखी जा रही है।
एशियन चैंपियनशिप के फाइनल में उसकी हार पर कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि शायद उसका श्रेष्ठ प्रदर्शन पीछे छूट गया है। शायद यही सायना के साथ भी है। जब स्वर्ण विजेता पूजा रानी अपने प्रदर्शन को ओलंपिक की तैयारी के रूप में देख रही है तो मेरी काम की तैयारी को नाकाफी कहा जा सकता है, क्योंकि, ओलंपिक में मुकाबले कठिन होने वाले हैं। सीधा सा मतलब है कि ‘लच्छन’ ठीक नजर नहीं आ रहे।
यह सही है कि मैरीकॉम जीवट एथलीट है और महिला मुक्केबाजी में अलग मुकाम रखती है। बेशक, उम्र भी उस पर हावी है। आठ-नौ साल के अंतराल केबाद भी अपने से कई साल छोटी लड़कियों के विरुद्ध खड़ा होना बड़ी बात है।
लेकिन एक बड़ा वर्ग मानता है कि निकहत ज़रीन जैसी युवा और ऊर्जावान लड़की को ओलंपिक में उतारने का सही मौका था जोकि खो गया है। क्या निकहत चार साल बाद तक अपनी फार्म बनाए रख पाएगी? भगवान ना करे उसका हाल भी नरसिंह यादव जैसा हो!
यूं तो पीवी सिंधू भी अपने श्रेष्ठ से मीलों दूर खड़ी है। विवादों के चलते उस पर कम लोग ही भरोसा कर रहे हैं।
जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा देर से ही सही। विदेशों में ट्रेनिंग के लिए निकल पड़े हैं। उनका बहुमूल्य समय कोरोना ने खराब कर दिया है। हॉकी टीमों और एथलीटों की ट्रेनिंग भी बीमारी के कारण प्रभावित हुई है। अब देखना यह होगा कि बुरे वक्त में हमारे खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ कैसे देते हैं?