राजेंद्र सजवान/क्लीन बोल्ड
भारतीय हॉकी आज उस मुकाम पर है जहां से आगे बढ़ने की संभावनाएं अपार हैं। जिन तेवरों के साथ हमने ऑस्ट्रेलिया से करारी शिकस्त झेलने के बाद वापसी की उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम ही होगी।
पुरुष और महिला दोनों ही टीमों ने यूरोपीय टीमों से निपटना सीख लिया है। पूरा देश और हॉकी प्रेमी रोमांचित हैं।लेकिन सजा यह मतलब कदापि नहीं है कि हमने विदेशियों से निपटना सीख लिया है और अब हम किसी से कम नहीं हैं।
पेरिस में होगी अग्नि परीक्षा:
इसमें दो राय नहीं कि टोक्यो ओलंम्पिक में भारतीय पुरुष और महिला टीमें खूब खेलीं। ओलंम्पिक का मंजर देख कर लगा जैसे भईया खिलाड़ियों के हाथ कोई जादुई चिराग लग गया है। स्पीड, स्टेमिना और गोल जमाने की कलाकारी में हमारे लड़के और लड़कियां अभूतपूर्व रहे। ऐसा एकबार भी नहीं लगा कि यह वही टीमें हैं जिनके लिए ओलंम्पिक खेलना हमेशा सरदर्दी रहा है।
खैर, पेरिस ओलंम्पिक के लिए बस तीन साल बचे हैं। भले ही भारतीय खिलाड़ियों ने कामयाब होने के तमाम दांव पेंच सीख लिए हैं। लेकिन बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, नीदरलैंड, अर्जेन्टीना आदि टीमों का मानना है कि टोक्यो का मौसम भारतीय खिलाड़ियों के लिए खुशगंवार साबित हुआ।
इसमें दो राय नहीं कि आद्रता की अधिकता से ठंडे देशों के खिलाड़ी खासे परेशान रहे। अब पेरिस में भारतीय खिलाड़ियों को साबित करना है कि मौसम और परिस्थितियां कैसी भी हों उन्होंने चैंपियनों की तरह खेलना सीख लिया है।
एशियाड 2022:
हालांकि एशियाई हॉकी का पतन उस दिन शुरू हो गया था जब भारत और पाकिस्तान जैसे दिग्गज जीतना भूल गए थे। फ़िलहाल भारतीय हॉकी वापस लौट रही है और पाकिस्तान की हालत शायद खुद पाकिस्तान को नहीं पता।
अब अगले साल होने वाले एशियाई खेलों में ही महाद्वीपीय हॉकी की दशा दिशा का पता चल पाएगा। भारत के लिए एशियाई खेलों का खिताब अब ज्यादा महत्वपूर्ण बन गया है। वैसे भारत और पाकिस्तान के अलावा कोरिया, जापान और मलेशिया ही महाद्वीप की हॉकी को बचाए हैं।
चूक भारी पड़ सकती है:
जिस टीम ने 41 साल बाद फिर से हॉकी में पदक जीतने की शुरुआत की है उसे हर अगला कदम सोच समझ कर रखना होगा। अत्यधि आत्मविश्वास और बड़बोला पन कैसे भारी पड़ सकता है, पिछले प्रदर्शनों से सीखा जा सकता है।
जब रफ्तार पकड़ ली है तो हॉकी को हर कदम सोच समझ कर रखना होगा। पीछे मुड़कर देखने का मतलब भारतीय हाकी से बेहतर और कौन समझता होगा। दोनों ही टीमों ने यदि अपना श्रेष्ठ बनाए रखा तो बेहतर प्रदर्शन से पदक का रंग बदल सकता है। फिलहाल चूक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ें।
ग्रास रूट पर जोर:
टोक्यो ओलंम्पिक में खेले अधिकांश खिलाड़ी अगले ओलंम्पिक तक देश को सेवाएं दे सकते हैं लेकिन यदि हॉकी को अपना खोया स्थान पाना है तो उभरती प्रतिभों पर खास ध्यान देने की जरूरत है।
ऐसे सैकड़ों खिलाड़ी अभी से चुन लिए जाएं जोकि आठ दस साल बाद राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनें। यह प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए। हां, उम्र की धोखाधड़ी करने वालों को कदापि माफ न करें।
हॉकी इंडिया को चाहिए कि स्वागत समारोहों को जारी रखते हुए खिलाड़ियों की तैयारी पर भी ध्यान दे। अगला एशियाड ज्यादा दूर नहीं है। उसके बाद कामनवेल्थ खेल और फिर ओलंम्पिक कब आ जाएगा पता भी नहीं चलेगा।v