क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन,(एफआईएच) के अध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र बत्रा एक बार फिर से विश्व हॉकी के शीर्ष पद पर विराजमान हो गए हैं। कम अंतर से ही सही उन्होंने कांटे की टक्कर के चलते बेल्जियम हाकी के अध्यक्ष मार्क कोड्रोन को हरा कर यह साबित कर दिया है कि उनकी लीडरशिप में भारत की यश कीर्ति बढ़ी है और विश्व हॉकी में उनके कामों को भी मान्यता मिली है। साथ ही भारतीय हॉकी की अपेक्षा में भी बढ़ोतरी हुई है।
महामारी के चलते दुनिया के तमाम देश 23 जुलाई से शुरू होने वाले टोक्यो ओलंपिक खेलों की तैयारी में जुटे हैं, जिनमे भारतीय टीम भी शामिल है। बेशक,भारतीय नजरिए से 22 मई को हुआ एफ आई एच अध्यक्ष पद का चुनाव भारत के लिए बड़ा महत्व रखता है। जीत से डॉक्टर बत्रा का कद और ऊंचा हुआ है। वह भारतीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष हैं। लेकिन आम भारतीय हॉकी प्रेमी से पूछें तो वह ओलंपिक में भारत को विक्ट्री स्टैंड पर देखना चाहता है।
यह न भूलें कि डॉक्टर बत्रा ने उस देश की हॉकी के प्रमुख को हराया है जिसने बहुत थोड़े समय में ऊंचाइयों को छुआ है। तारीफ की बात यह है कि कुछ साल पहले तक बेल्जियम को कोई जानता तक नहीं था। लेकिन आज बेल्जियम विश्व रैंकिंग में पहले स्थान पर है, जिसने ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, हॉलैंड, भारत, पाकिस्तान जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है।
आईओए अध्यक्ष बने रहेंगे: एफ आई एच अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के बाद यह तय हो गया है कि डॉक्टर बत्रा दूसरी बार भारतीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष का चुनाव भी आसानी से जीत जाएंगे। सूत्रों से पता चला है कि कुछ घर के भेदियों ने उनका खेल बिगाड़ने की कोशिश की और एफ आई एच के सदस्यों को उनके खिलाफ भड़काया लेकिन अंततः जीत उनकी हुई। यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा, ऐसा उनके करीबी मानते हैं।
चाहिए ओलंपिक पदक:
हालांकि भारतीय हॉकी चौथे पायेदान पर है। इतने से आम हॉकी प्रेमी संतुष्ट होने वाला नहीं है। उन्हें ओलंपिक पदक चाहिए, फिर चाहे रंग कोई भी हो। 1980 में भारत ने अपना आठवां स्वर्ण पदक जीता था। तत्पश्चात हमारे खिलाड़ी खाली हाथ लौटते आए हैं। बार बार ओलंपिक पदक का दावा करते हैं, खूब हवा बांधी जाती है पर कामयाबी कोसों दूर रह जाती है।
यह सही है कि जबसे बत्रा हॉकी इंडिया के अध्यक्ष बने, हॉकी खिलाड़ियों का जीवन स्तर सुधरा और उन्हें लाखों मिलने लगे। हॉकी इंडिया लीग की शुरुआत के बाद से हमारे खिलाड़ी सम्पन्न हुए हैं। हॉकी इंडिया और खेल मंत्रालय ने उनकी हर छोटी बड़ी जरूरत को पूरा किया है। लेकिन ओलंपिक पदक की उम्मीद हर चार साल बाद आगे बढ़ जाती है। यह ना भूलें कि आठ ओलंपिक स्वर्ण जीतने वाला देश एक बार 12वें और आखिरी स्थान पर रहा तो 2008 के पेइचिंग ओलंपिक में खेलने का मौका नहीं मिल पाया।
टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने का मौका है। कोच, खिलाड़ी सभी दावा कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय टीम पहले तीन में स्थान बनाकर पदकों के सूखे को समाप्त करेगी। यदि ऐसा हुआ तो डॉक्टर बत्रा के लिए यह सबसे बड़ा तोहफा होगा। यदि उनके शीर्ष पद पर रहते भारतीय हॉकी ओलंपिक पदक नहीं जीत पाई तो आगे की राह मुश्किल हो सकती है।