क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
कोरोना से सीधी लड़ाई लड़ने वाले और आम नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने वाले डॉक्टर, नर्स, सफाई कर्मचारी और कोरोना पीड़ितों की सेवा करने वाले सेवाकर्मियों के लिए “कोरोना वॉरियर्स’ जैसा संबोधन काफी नहीं है। उन्हें वह बड़े से बड़ा सम्मान मिलना चाहिए, जिसके हकदार बनते हैं। लेकिन महामारी से जूझने और मारा मारी के चलते हम एक ऐसे वर्ग को भूल रहे हैं, जिसने एक साल से भी अधिक समय से कोरोना के विरुद्ध मोर्चा संभाल रखा है। इस वर्ग में वे सब योद्धा आते हैं, जिनके कंधे पर देश का भविष्य टिका है।
जी हाँ, यहां शिक्षक वर्ग की बात की जा रही है, जोकि देश की भावी पीढ़ी को स्कूल में या आन लाइन सिखा पढ़ा रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा योगदान शारीरिक शिक्षक दे रहे हैं। दिल्ली सहित तमाम राज्यों में बीपीएड, एमपीएड शिक्षा प्राप्त पीईटी और अन्य शारीरिक शिक्षक दिन रात कोरोना पीड़ितों की सेवा कर रहे हैं।
शुरुआती लॉक डाउन से लेकर आज तक अधिकांश समर्पित शिक्षक कभी सड़क पर तो कभी हस्पतालों, औषधालयों और हवाई अड्डों पर ड्यूटी बजा रहे हैं। कुछ शिक्षकों से बात करने पर पता चला कि वे स्वेच्छा और सेवा भाव के साथ बुरे वक्त में देश और समाज की सेवा कर रहे हैं और दिल्ली और देश की सरकार के हर फैसले का स्वागत करते हैं।
एक सर्वे से पता चला है कि शारीरिक शिक्षकों में ज्यादातर 25 से 35 साल के युवा हैं , जिनका जोश देखते ही बनता है। उनमें से ज्यादातर अच्छे खिलाड़ी रह चुके हैं। यही कारण है कड़ी मेहनत और सेवा भाव उनमें कूट कूट कर भरा है। ऐसे कुछ शिक्षकों ने बातचीत के चलते कहा कि उन्हें सड़क पर चालान काटने, हस्पताल में कोरोना पीड़ितों की सेवा करने, हवाई अड्डे पर यात्रियों की जांच पड़ताल करने या झोपड़ पट्टी में दवा और राशन बांटने में एक अलग तरह का सुकून मिलता है।
ज्यादातर युवा कहते हैं कि उनके परिजन कोरोना का डर दिखाकर जब कभी छुट्टी लेने की बात करते हैं तो उन्हें समझ बुझा कर शांत कर देते हैं। कुछ शिक्षक तो पलट कर सवाल करते हैं कि जब देश और दुनिया संकट में है तो डरना कैसा? शिक्षक आगे से नेतृत्व करेगा तो संदेश भी बड़ा जाएगा। सचमुच ऐसे युवाओं को सैल्यूट करने का मन करता है।
लेकिन दूसरा पहलू कुछ हटकर है। अक्सर जब कभी केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा समर्पित और श्रेष्ठ शिक्षको को राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय सम्मान दिए जाते हैं तो स्टेज पर चढ़ने वाले ऐसे लोग ज्यादा होते हैं, जोकि अपने व्यवसाय और शारीरिक शिक्षा के साथ धोखाधड़ी करने में उस्ताद होते हैं। उन्हें ऊंची पहुंच और उच्च अधिकारियों के तलवे चाट कर ईनाम और सम्मान मिल जाते हैं। उम्मीद है दिल्ली, यूपी, एमपी, राजस्थान, केरल महाराष्ट्र आदि प्रदेशों की सरकारें बुरे वक्त में शारीरिक शिक्षकों के अच्छे और समाजसेवा के कार्यों को जरूर याद रखेंगी।
वक्त आ गया है कि सरकारें शारीरिक शिक्षा के महत्व को समझें। योग्य और ईमानदार शिक्षकों और कोचों को पहचानें और उन्हेँ यथोचित सम्मान दिया जाए। यह न भूलें कि ऐसे गुरुओं की उपेक्षा की सजा हमें मिलती रही है। नतीजन ओलंपिक और अंतर राष्ट्रीय आयोजनों में हम फिसड्डी राष्ट्र बन कर रह गए हैं और हमारे युवाओं को कमजोर और बीमार आंका जाता रहा है।