क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
विश्व चैम्पियन और रियो ओलंपिक में भारत की लाज बचाने वाली पुसरला वेंकट सिंधु द्वारा सन्यास लेने की खबर ने भारतीय खेल जगत में हड़कंप मचा दिया। हालाँकि उसने स्पष्ट किया कि वह कोविङ19 के कारण फैली नकारात्मकता, डर, भय, अविश्वसनीयता और अनिश्चितता से सन्यास ले रही है। हालाँकि उसके बयान को अंतरकलह और कुंठा के रूप में देखा जा रहा है परंतु कुछ खेल मनोवैज्ञानिक कह रहे हैं कि सिंधु अपने आप से जूझ रही है और कोई राह नज़र नहीं आने पर उसका गुस्सा खुद पर नाराज़गी के रूप में फूट पड़ा, जिसे लेकर खेल हलकों में अलग अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है।
कुछ दिन पहले की ही बात है, उसने अपने माता पिता और कोच गोपी चंद के प्रति नाराज़गी दिखाई और यह कहते हुए लंदन रवाना हुई कि वहाँ जा कर डाइट और फिटनेस पर ध्यान देगी। तब उसके पिता ने बयान दिया था कि कोच गोपी चन्द सारे फ़साद की जड़ है। वह अपनी व्यस्ताओं के चलते सिंधु पर ज़रा भी ध्यान नहीं दे रहे।
इसमें दो राय नहीं कि कोरोना काल में बड़े और मजबूत दिल वालों की मानसिक स्थिति गड़बड़ा गई है। जिनके रोज़गार और धंधे चौपट हुए उनमें से कई एक ने अप्रिय कदम भी उठाए लेकिन सिंधु जैसी बड़े कद और नाम सम्मान वाली खिलाड़ी का यूँ संतुलन गँवाना और अनाप शनाप बयान देना गले उतरने वाला नहीं है। बेशक, एक चैम्पियन होने के साथ साथ वह भी एक आम इंसान है और कभी भी किसी भी वक्त उसके दिल दिमाग़ में महामारी का भय घर कर सकता है लेकिन पिछले कुछ समय से उसके साथ जो कुछ चल रहा है उसे लेकर भारतीय खेल जगत का चिंतित होना स्वाभाविक है।
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पदक उम्मीदों की बात की जाती है तो संभवतया उसका नाम शीर्ष पर होता है। खेल मंत्रालय और भारतीय बैडमिंटन संघ को उस पर भरोसा है और उनके दावों को सच कर दिखाने का दमखम भी रखती है। हैरानी वाली बात यह है कि मंत्रालय और बाई को उसकी पीड़ा से जैसे कोई लेना देना नहीं है। खेल मंत्री वैसे तो देश को खेल महाशक्ति बनाने की डींग हांकते फिरते हैं लेकिन उन्होने देश की श्रेष्ठ खिलाड़ी को लेकर चुप्पी क्यों साध रखी है? बाई भी खिलाड़ियों की मेहनत और कामयाबी की मलाई खाने में लगा है। लेकिन जब एकमात्र भारतीय उम्मीद बुझ जाएगी तो फिर किसके दम पर उछल कूद मचाएँगे?
खेल मंत्रालय और बाई की बोलती बंद क्यों है?
हालाँक सिंधु ने अपने बयान में यह स्पष्टकिया है किवह आगे भी खेलना जारी रखेगी । वह आज के दौर की अशांति से सन्यास ले रही है और नकारात्मक सोच से बाहर निकलना चाहती है। लेकिन उसने अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का जो रास्ता चुना है उसे लेकर तो यही कहा जाएगा कि महामारी ने उसे अंदर तक हिला कर रख दिया है। ऐसे में उसे मनोवैज्ञानिको, डाक्टरों, माता पिता, कोच और साथी खिलाड़ियों के सहयोग की ज़रूरत है। खेल मंत्रालय और बाई भी अपना कर्तव्य निभाएँ तो बेहतर रहेगा। एक वही खिलाड़ी है जिससे ओलंपिक पदक की उम्मीद की जा सकती है।