क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
राजबीर कौर (राय) आजकल गुस्से में हैं। देश के किसानों के साथ सरकारी दुराचार को लेकर आमतौर पर शांत रहने वाली यह पंजाबन सालों बाद यकायक खबरों में आई है। बेहद गुस्से में है क्योंकि गंदी राजनीति करने वाले उनके परिवार को खालिस्तानी समर्थक बता रहे हैं। वह इसलिए भी नाराज हैं क्योंकि पंजाब में हॉकी बर्बाद हो रही है और रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं।
कौन है यह जांबाज महिला:
जो लोग भारतीय हॉकी से प्यार करते हैं, जिन्होंने भारतीय महिला हॉकी को परचम फहराते देखा, जिन्होंने 1982 के दिल्ली एशियाडमें हॉकी के उत्थान- पतन के साक्षात दर्शन किए उन्हें राजबीर कौर की याद जरूर होगी।
जब नेशनल स्टेडियम में खेले गए पुरुष हॉकी फाइनल में भारतीय टीम ने पाकिस्तान के हाथों 1-7 की हार के साथ अपनी नाक कटवाई थी तो महिला टीम ने शिवाजी स्टेडियम पर खेले गए फाइनल में दक्षिण कोरिया को 6-0 से रौंद कर पुरुषों की शर्मनाक हार पर कुछ मरहम जरूर लगाया था। बेशक, फाइनल और पूरे टूर्नामेंट की स्टार राजबीर रही थीं। भारतीय महिला हॉकी फिर कभी ऐसा प्रदर्शन नहीं कर पाई। कारण चाहे कुछ भी रहा हो पर महिला टीम को ऐसी शानदार और जानदार खिलाड़ी फिर कभी मिली भी नहीं।
साक्षात देखा:
हॉकी और फुटबाल का कीड़ा अपने अंदर भी रहा है और दिल्ली के शिवाजी और अम्बेडकर स्टेडियम दूसरे घर हुआ करते थे,जोकि अब वीरान हो चुके हैं। यही कारण है कि राजबीर को साक्षात देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 16 साल की इस लड़की को जिस किसी ने खेलते देखा, दांतों तले उंगली दबा बैठा। सच कहूं तो उसकी जैसी खिलाड़ी न तो भारत पैदा कर पाया और आगे भी कोई उम्मीद नज़र नहीं आती।
गोल से लेकर रक्षा पंक्ति, मध्य पंक्ति और गोल जमाने की भूमिका में वह पूरे मैदान में नज़र आई। पेनल्टी कार्नर हो या फील्ड गोल हर कला में इतनी निपुण खिलाड़ी शायद ही कोई हुई हो। उसने भारत द्वारा जमाए 26 में से 16 गोल दागे। एक मिड फील्ड खिलाड़ी का ऐसा प्रदर्शन बहुत कम देखने को मिलता है।
क्यों भुला दिया:
राजबीर चार एशियाई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली इकलौती महिला खिलाड़ी हैं। महिला हॉकी फेडरेशन की गंदी राजनीति के चलते ना सिर्फ उनके शानदार प्रदर्शन को भुला दिया गया अपितु उन्हें खेल को प्रोत्साहन देने वाले कार्यक्रमों से भी दूर रखा गया। इतना ही नहीं उन्हें अपने प्रदेश पंजाब की हॉकी में भी उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। एक सवाल के जवाब में कहती हैं कि पुरुष प्रधान प्रदेश के हॉकी संघ ने उन्हें हमेशा नजरअंदाज किया। यही कारण है कि महिला हॉकी के लिए कुछ नहीं कर पाई।
अकादमी की जगह नहीं मिली:
अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहती हैं कि 2013 में पंजाब सिंध बैंक की नौकरी से वीआरएस इसलिए लिया ताकि हॉकी अकादमी खोलकर प्रदेश में चैंपियन खिलाड़ियों की फौज तैयार कर सकें लेकिन पुरुषों के दबदबे वाली पंजाब हॉकी एसोसिएशन और सरकार ने उनकी फरियाद नहीं सुनी। नतीजन रिटारमेंट से 13 साल पहले लिया वीआरएस बेकार गया।
वह खिलाड़ियों को बिना शुल्क ट्रेनिंग देना चाहती हैं। उनके ओलंपिक स्वर्ण विजेता और पुलिस अधिकारी पति गुरमेल सिंह भी राज्य हॉकी से कोसों दूर हैं। उन्हें भी कोई नहीं पूछता। राजबीर को डर है कि ऐसी हालत में पंजाब से हॉकी लुप्त हो सकती है। हॉकी के करता धर्ताओं से वह बेहद खफा है और चाहती है कि नकारा अधिकारी पदों से हट जाएं।
चाहिए बलदेव से कोच:
राजबीर के अनुसार पंजाब की महिला हॉकी को बलदेव सर जैसे कोच की जरूरत है, जिसने हरियाणा में हॉकी का सीन ही बदल डाला। वह मानती हैं कि बलदेव बहुत सख्त कोच हैं लेकिन उन्होंने गरीब मजदूरों की बेटियों को मालामाल कर दिया। आज राष्ट्रीय टीम में उनके द्वारा तैयार खिलाड़ी बहुतायत में शामिल हैं। कई एक रेलवे और अन्य विभागों में उच्च पदों पर हैं।पता नहीं पंजाब को कब समझ आएगी।
राजबीर ने किसानों के हितों को लेकर अपने संघर्ष को जारी रखने का प्रण दोहराया और कहा कि किसानों के साथ धोखा देश से धोखे समान है।