क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
भारतीय क्रिकेट टीम के विकेट कीपर बल्लेबाज ऋषभ राजेंद्र पंत को एक घर की तलाश है, जिसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया, समाचार पत्रों, अपने प्रशंसकों और मित्रों से सलाह मांगी है। खबर है कि उन्हें हज़ारों लोगों की प्रतिक्रिया भी मिल रही है। ऐसा स्वाभाविक है। आमतौर पर क्रिकेट खिलाड़ियों के चाहने वाले उन्हें कभी निराश नहीं करते। लेकिन टीम इंडिया में जगह पक्की करने के लिए जूझ रहे ऋषभ 23 साल की उम्र में ही वह मुकाम पा चुके हैं जिस तक पहुंचने के लिए आम युवा और अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ी पूरी उम्र लगा देते हैं।
इसमें दो राय नहीं कि वह गज़ब का प्रतिभाशाली खिलाड़ी है लेकिन आज जिस मुकाम पर है उसे पाने में थोड़ा वक्त जरूर लग गया। यह कहना गलत नहीं होगा कि ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध खेले गए ब्रिस्बेन टेस्ट ने उसका भाग्य बदल दिया। उम्मीद की जा सकती है कि अब उसके बिना भारतीय टेस्ट टीम की कल्पना नहीं की जा सकती।
यह भी तय है कि अब उस पर पहले से कहीं ज्यादा धन दौलत की बरसात होने वाली है। आईपीएल में वह पहले ही सबसे महंगे खिलाड़ियों में शामिल है। अब बड़ी कंपनियां और औद्योगिक घराने उसे लपकने के लिए होड़ लगा रहे हैं। ऐसे में यदि वह किसी अच्छे घर की तलाश कर रहा है और अपने करीबियों से सलाह ले रहा है तो गलत क्या है?
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पाली गांव का यह लड़का जो सपने लेकर रुड़की से दिल्ली आया था, उन्हें साकार करने में उसे थोड़ा वक्त जरूर लगा, शुरुआती दिनों में गुरुद्वारे में भी शरण लेनी पड़ी। लेकिन अब वह टीम में जम गया है और उसे अपने परिवार के साथ रहने का कोई ठिकाना भी जरूर ढूंढ लेना चाहिए। आम उत्तराखंडी कुछ ऐसे ही सपने लेकर दिल्ली और बड़े महानगरों में पहले रोजी रोजगार खोजता है और फिर एक घर की तलाश करता है।
आमतौर पर घर का सपना रिटारमेंट के आसपास या कहीं बाद तक ही पूरा होता है। इस मामले में ऋषभ और उसका परिवार भाग्यशाली हैं। उसके जैसे काबिल बेटे के कारण पंत परिवार को शीघ्र ही एक आलीशान घर अवश्य मिल जाएगा। लेकिन जरा कल्पना कीजिए, पंत जितनी उम्र में बाकी खेलों से जुड़े खिलाड़ी क्या कभी ऐसा सपना देख सकते हैं?
यह सही है कि कपिल, सचिन, धोनी, विराट और ऋषभ जैसे खिलाड़ी कड़ी मेहमत और वर्षों की तपस्या के बाद करोड़ों के मालिक बने हैं। लेकिन बाकी खेलों में शायद ही कोई खिलाड़ी इस मुकाम को छू पाता है। यही कारण है कि देश का हर बच्चा और युवा बस क्रिकेटर बनने का सपना देखता है। उसकी पहली प्राथमिकता क्रिकेट खिलाड़ी बनने की होती है।
जिस उम्र में हॉकी, फुटबाल, बैडमिंटन, टेनिस, तैराकी, एथलेटिक, कबड्डी आदि खेलों से जुड़े खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए एड़ियां और घुटने रगड़ रहे होते हैं, एक अदद नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं, क्रिकेटर आईपीएल और अन्य आयोजनों में खेल कर लाखों करोड़ों बना लेते हैं। यह बात अलग है कि हर खिलाड़ी भाग्यशाली नहीं होता।
यह भी सच है कि हजारों लाखों में से कुछ एक ही विराट या ऋषभ बन पाते हैं। लेकन आम अभिभावक और युवा क्रिकेट को जिस चश्मे से देखता उन्हें बस रुपए -डॉलर और मान- सम्मान की बारिश नजर आती है। यही आकर्षण उन्हें बाकी खेलों से दूर ले जाता है और क्रिकेट में भीड़ तंत्र को स्थापित करता है।
जहां तक अन्य खेलों की बात है तो उनके खिलाड़ी आज भी सालों पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। कभी कभार लीग आयोजनों से उन्हें गुजर बसर के लायक पैसा मिल।पाता है। नौकरियां भी लगातार कम हो रही हैं। यदि खिलाड़ी का कद सुशील, योगेश्वर, विजेंदर, सायना जैसा ऊंचा हो तो भी उनके जीवन भर की कमाई आईपीएल के एक सीजन में मिलने वाली किसी स्टार क्रिकेटर जितनी नहीं हो सकती। यही अंतर क्रिकेट के प्रति आकर्षण बढ़ाता है ।
यही कारण है कि क्रिकेट में भागम भाग मची है। रातों रात करोंड़ों कमाने और छोटी उम्र में महल खड़ा करने की भूख के चलते प्रतिभाएं अन्य खेलों से मुंह मोड़ रही हैं। लेकिन हर कोई ऋषभ जैसा तो नहीं बन सकता! हर खिलाड़ी आईपीएल के एक सीजन में 15 करोड़ नहीं पा सकता। बाकी खेलों के ज्यादातर खिलाड़ियों की जीवन भर की कमाई भी इतनी नहीं होती कि वह एक एक एलआईजी फ्लैट खरीद सके।
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