क्लीन बोल्ड /राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलंम्पिक में पदक जीतने वाले भारतीय खेलों में यदि किसी खेल की चर्चा बढ़ चढ़ कर की जा रही है तो वह निसंदेह हॉकी है। बेशक, पुरुष और महिला टीमें बड़े से बड़े सम्मान और प्रोत्साहन की हकदार हैं, जिन्होंने चार दसक बाद अपने होने का अहसास कराया है।
पुरुष टीम ने कांस्य पदक जीत कर भारतीय हॉकी प्रेमियों का दिल जीत लिया तो महिला टीम पदक की जंग लड़ कर हारी। हाल के घटनाक्रम पर सरसरी नज़र डालें तो अपने तथाकथित राष्ट्रीय खेल के हित में कुछ बहुत खास होने जा रहा है। सूत्रों की माने तो सरकार देर सवेर हॉकी को राष्ट्रीय खेल घोषित कर सकती है।
प्रधानमंत्री का खेल प्रेम:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खेल प्रेम टोक्यो ओलंम्पिक में खुल कर सामने आया है। वह पहले ही दिन से पदक विजेता भारतीय खिलाड़ियों पर न सिर्फ नजर रखे हैं अपितु उन्हें बधाई देने का कोई मौका नहीं चूकते। वेट लिफ्टर मीरा बाई चानू ने जैसे ही रजत पदक जीता, पीएम ने उसे तुरंत बधाई संदेश भेजा ।
मणिपुर सरकार द्वारा दिए गए उच्च पद और पुरस्कारों में भी कहीं न कहीं मोदी फैक्टर साफ नजर आता है। इसी प्रकार मुक्केबाज लवलीना और पहलवान रवि दहिया को भी उन्होंने बधाई दी और हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया।
संभवतया, ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई शीर्ष नेता ओलंम्पिक खेलों में इस कदर रुचि ले रहा है और अच्छा प्रदर्शन करने वालों को जम कर शुभकामना, आशीर्वाद औरआश्वासन दे रहा है। भले ही कुछ लोग कह रहे हैं कि मोदी जी खिलाड़ियों और उनके परिवारों की सुध लेकर राजनीतिक स्वार्थ साध रहे हैं लेकिन इतना तय है कि भारत का खिलाड़ी उनसे खुश है।
महिला हॉकी भी सर माथे:
यह सही है कि पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद पदक की शक्ल देखी है। ओलंम्पिक दर ओलंम्पिक भारत की प्रतिष्ठा कम होती चली गई थी लेकिन हॉकी का बेताज बादशाह जब सालों बाद कांस्य पदक जीता तो प्रधानमंत्री ने न सिर्फ अभूतपूर्व और साधुवाद कहा अपितु टीम कप्तान, खिलाड़ियों और विदेशी कोच से सीधे बात की, बधाई दी और कहा कि देश को उन पर नाज़ है।
तारीफ की बात यह है कि उन्होंने चौथे स्थान पर रही और कांस्य पदक गंवाने वाली महिला टीम की कप्तान ऋतु रानी और कोच का उत्साह ऐसे बढ़ाया जैसे उन्होंने कोई बड़ा किला फतह किया हो। सचमुच महिला खिलाड़ियों ने भी चैंपियनों जैसा प्रदर्शन किया।
ओलंम्पिक में पहली बार चौथा स्थान अर्जित करना भारतीय महिलाओं की अब तक कि सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। प्रधानमंत्री ने स्टार खिलाड़ी वंदना कटारिया के परिजनों को प्रताड़ित करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही का आश्वासन देकर मौके पर चौका भी जमा दिया।
खेल रत्न के पीछे का खेल:
वर्षों से जिस खेल रत्न अवार्ड के पहले पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी का नाम जुड़ा था, उसे अब ध्यान चंद खेल रत्न अवार्ड के नाम से जाना जाएगा। यह सही है कि प्रधान मंत्री हॉकी टीमों के प्रदर्शन से गद गद थे लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह आनन फानन में ही खेल रत्न के साथ इतना बड़ा खेल करने की मंशा रखते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि दद्दा ध्यान चंद हॉकी जादूगर और असली खेल रत्न थे। उनके नाम पर देश का सबसे बड़ा खेल अवार्ड दिया जाना ऐतिहासिक निर्णय है। शायद यह फैसला इसलिए भी किया गया है क्योंकि सरकार हॉकी को राष्ट्रीय खेल बनाने का इरादा रखती है। ऐसा माना जा रहा है कि जल्दी ही हॉकी राष्ट्रीय खेल घोषित हो सकती है।
ध्यानचंद तो भारत रत्न हैं:
भले ही सरकार ने ध्यान चंद के नाम पर खेल रत्न देने का फैसला किया है लेकिन देश का एक बड़ा वर्ग ध्यान चंद को भारत रत्न के रूप में देखता है। हॉकी प्रेमियों का मानना है कि जब एक क्रिकेटर को भारत रत्न दिया जा सकता है तो ध्यान चंद को क्यों नहीं? इस मुद्दे पर आरोप प्रत्यारोपों का दौर चल निकला है। विवाद राजीव गांधी का नाम हटाने और ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं देने को लेकर है।
मौका और दस्तूर भी है:
यह सही है कि जब भारतीय हॉकी शिखर पर थी तब सरकारों ने गंभीरता नहीं दिखाई। वरना 8 ओलंम्पिक स्वर्ण जीतने वाला खेल कब का राष्ट्रीय खेल बन चुका होता। देर से ही सही, फैसला लेने का वक्त आ गया है। हर देश का कोई न कोई राष्ट्रीय खेल होता है। भारत सरकार चाहे तो हॉकी को यह दर्जा देकर वाह वाह लूट सकती है। ऐसा हो पाया तो क्रिकेट प्रेमी देश में हॉकी फिर से पनप सकती है। फिर हम हॉकी के बेताज बादशाह बन सकते हैं।