क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान ,
टीम खेलों में जब कभी महान खिलाड़ियों की चर्चा होती है तो हॉकी में ध्यान चन्द, क्रिकेट में ब्रैडमैन और फुटबाल में पेले का नाम सहज ही ज़ुबान पर आ जाता है। चूँकि फुटबाल हमेशा से दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल रहा है इसलिए पेलें को कुछ खेल जानकार और एक्सपर्ट्स महानतम भी आँकते हैं।
आज की फुटबॉल मे ल्योंन मेसी, रोनाल्डो, ,नेमार ,सलाह और कई अन्य खिलाड़ी छाये हुए हैं। उनकी आपस मे तुलना होती है ।उनके अपने -अपने चाहने वाले हैं जोकि अपने पसंदीदा खिलाड़ी को बेहतर बताते हैं । लेकिन विश्व फुटबॉल मे सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ऐसा खिलाड़ी हुआ है जिसे हर कोई सर्वश्रेष्ठ मानता है और वह है “किंग पेले, ” दब्लैक दायमंड ” ।
पेले की श्रेष्ठता उतनी ही खरी है जितना सूर्य का रोज सुबह पूर्व से निकलना। हालाँकि कभी कभार उनके साथ माराडोना की तुलना की गई लेकिन पेले जैसा ना कोई हुआ और शायद ही कोई ऐसा खिलाड़ी कभी पैदा हो पाएगा ।
23 अक्तूबर 1940 में ब्राज़ील के एक ग़रीब परिवार मे जन्मे इस महान खिलाड़ी ने तंगहाली के बावजूद विश्व फुटबॉल मे वह मुकाम पाया जिसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता। तीन बार ब्राज़ील को विश्व कप दिलाने मे इस खिलाड़ी की बड़ी भूमिका रही है ।
19 जून 1958 को पेले ने 17साल 249 दिन की उम्र मे जब वह 10 नंबर की जर्सी पहनकर स्वीडन के विरुढ़ फाइनल खेलने उतरे तो सबसे छोटी उम्र मे यह करिश्मा करने वाले खिलाड़ी थे । ब्राज़ील ने मुकाबला 5-2 से जीता जिसमे पेले के दो शानदार गोल शामिल थे। इसके साथ ही वह दुनियाभर के लाड़ले खिलाड़ी बन गये। ब्राज़ील से लेकर पूरी दुनिया मे इस बच्चे की चर्चा हुई ।
लेकिन यह तो शुरुआत थी। उसने लगातार चार विश्व कप खेले और तीन बार अपने देश को खिताब दिला कर खुद को अमर कर दिया । इसके साथ ही दस नंबर की जर्सी भी हमेशा हमेशा के लिए अजर अमर हो गई । आज इस नंबर को विशेष आदर सम्मान प्राप्त है तो पेले की कारीगरी के कारण ।
गोल जमाने मे यूँ तो मेसी, रोनाल्डो और नेमार का भी जवाब नहीं लेकिन पेले की ख़ासियत यह थी कि उनके दौर मे फ्री फॉर आल जैसा माहौल था तब नियम और रेफ़री का संचालन अग्रिम पंक्ति के खिलाड़ियों के हित मे नहीं थे।
उन्हें बार बार फाउल प्ले का शिकार होना पड़ता था । ऐसी परिस्थितियों का सामना पेले को 1966 के विश्व कप मे करना प्डा था । तब बुल्गारिया और पुर्तगाल के रक्षकों के ख़ूँख़ार हमलों के चलते पेले को चोटिल होकर मैदान छोड़ना पड़ा था। हालाँकि तब तक पेले माहान खिलाड़ी बन चुके थे और 1962 मे खिताब जीतने वाली टीम के सदस्य भी रहे थे।
अपने खेल कौशल और गोल जमाने की कला के उस्ताद के रूप मे पेले विश्व फुटबॉल मे नाम कमा चुके थे और बस यहीं पर अपना सफ़र समाप्त करना चाहते थे लेकिन ब्राज़ील की जनता और दुनियाभर के फुटबॉल प्रेमियों की माँग पर एक बार फिर मैदान मे उतरे और 1970 के मैक्सिको विश्व कप मे अपने देश को तीसरा खिताब दिलाने मे सफल रहे ।
इस प्रकार ब्राज़ील फुटबॉल का बादशाह बना और पेले के साथ किंग और डायमंड जैसे संबोधन जुड़ गये । यूरोप और लेटिन अमेरिका के पेशेवर क्लबों मे खेल कर पेले ने गोलों की झड़ी लगाई और यश कमाया। उनकी बायसाइकल वॉली और बनाना शाट अभूतपूर्व आँके गये ।
पेले के बारे मे कहा जाता है कि वह कहीं से भी , किसी भी कोण से ,दुर्लभ कहे जाने वाला गोल कर सकते थे । अपने समकालीन खिलाड़ियों मे उनका बड़ा नाम -सम्मान रहा | उन्हें फुटबॉल का भगवान कहा गया । दो बार उन्हें भारत आने का मौका मिला । कोलकाता के फुटबॉल प्रेमियों मे उनकी एक झलक देखने और पाँव छूने की होड़ सी लगी थी ।
इतना पागल पन देख कर उन्हें कहना पड़ा कि भारत मे फुटबॉल की दीवानगी है पर यह देश पीछे क्यों रह गया! पेले के इस सवाल का जवाब है किसी के पास? आज तक भारतीय फुटबाल पेले को जवाब नहीं दे पाई है।