क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
कोविड 19 हर लिहाज से मानव और मानवता के लिए बेहद नुकसानदेह और घातक रहा है। लाखों जाने जा रही हैं और यह महामारी करोड़ों बीमारों की संख्या भी बढ़ा सकती है। लेकिन एक अच्छी खबर यह आ रही है कि खिलाड़ी कोरोना से लड़ सकते हैं, भिड़ सकते हैं और उसे हरा भी सकते हैं।
देश और दुनिया से प्राप्त जानकारियों के आधार पर कहा जा सकता है कि कपटी कोरोना के सामने डाक्टर वैज्ञानिक और और तमाम शोधकर्ता फेल हो गए, बस एक खिलाड़ी ही है जिसने उसका डट कर मुकाबला किया और शायद जीत भी पाई है।
विश्व स्तर पर एकत्र आँकड़ों से पता चलता है कि महामारी ने भले ही दुनिया का सबसे बड़ा खेल मेला, टोक्यो ओलम्पिक खराब कर दिया पर खिलाड़ियों का वह बाल भी बांका नहीं कर पाया।
ऐसा कैसे हुआ और आख़िर खिलाड़ियों के पास कौनसी जादुई ताक़त है जिसकी तोड़ कोरोना के पास भी नहीं है? इस बारे में जाने माने खिलाड़ियों, खेल गुरुओं, कोचों और खेल पत्रकारों से बात चीत के बाद इस नतीजे पर पहुँचा जा सकता है कि बीमारी या महामारी कोई भी हो उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ खिलाड़ी शरीर हरा सकता है। फिर चाहे वह खिलाड़ी गली कूचे का हो, गाँव देहात का हो या दुनिया के किसी भी देश का क्यों ना हो।
खिलाड़ी की ताक़त और क्षमता के बारे में कुश्ती द्रोणाचार्य राज सिंह से बेहतर कौन बता सकता है। गुरु हनुमान के शिष्य, सतपाल और करतार जैसे दिग्गज पहलवानों को दाँव सिखाने वाले और सुशील एवम् योगेश्वर दत्त के ओलम्पिक पदकों में बड़ा हाथ बंटाने वाले श्री सिंह के अनुसार पहलवान या आम खिलाड़ी की जीवन शैली आम आदमी से अल्ग होती है।अनुशासन, स्पीड, स्टेमीना, दम खम, ख़ान पान और खुराक के मामले में वह एक दम हटकर होता है।
अच्छे माहौल में रहना, अच्छा खाना और बेहतर सोच उसे मजबूत बनाते हैं। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ऐसी होती है कि खुद बीमारी भी तौबा कर जाती है। लगभग दो दशक तक भारत के राष्ट्रीय कुश्ती कोच रहे राज सिंह कहते हैं की खिलाड़ी का कोई भी बीमारी कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
कुश्ती के एक और द्रोणाचार्य, गुरु हनुमान के शिष्य और बिड़ला व्यायामशाला के संचालक महा सिंह राव भी राज सिंह से सहमत हैं। वह कहते हैं कि दुनिया के हज़ारों खिलाड़ियों को बीमारी ने घेरा लेकिन सभी उसके चंगुल से निकल गए क्योंकि उनमें दम है। सालों साल की मेहनत ने उन्हें अजेय बनाया है।
यह बात अलग है कि कुछ खिलाड़ी जान नहीं बचा पाए पर वे घातक बीमारियों के शिकार थे। ओलम्पियन ज्ञान पहलवान और भारत केसरी एवम् अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पहलवान भगत भी अपने गुरुओं से सहमत हैं। कोच ज्ञान के अनुसार अच्छे और मेहनती खिलाड़ियों को कभी भी हृदय और श्वास की बीमारी नहीं हो सकती। उनकी इम्यूनिटी बहुत मजबूत होती है और कोई भी बीमारी उनके सामने नहीं टिक सकती।
भारतीय खेल प्राधिकरण के नामी फुटबाल कोच और सैकड़ों राष्ट्रीय एवम् अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करने वाले डीएस रावत मानते हैं कि खिलाड़ियों की शारीरिक क्षमता, लंबी अवधि तक दौड़ना, स्किल प्रैक्टिस और संतुलित आहार कोरोना वायरस का प्रभाव शून्य कर देते हैं। यदि खिलाड़ी नियमित वर्कआउट करता है तो संक्रमित होने की आशंका वैसे ही कम हो जाती है। सामान्य इंसानों को संदेश देते हुए कहते हैं कि खिलाड़ियों की तरह की जीवनसैली अपना कर आप भी रोगों से लड़ सकते हैं, जीत सकते हैं।
दिल्ली की फुटबाल के पितामह नरेंद्र कुमार भाटिया और वरिष्ठ प्रशासक हेम चन्द क्रमशः 73 और 70 साल पूरे करने के बाद भी आत्मविश्वास से लबालब हैं। पूरा जीवन फुटबाल मैदान में बिताने वाले इन शूरमाओं का कहना है कि बीमारी नियम तोड़ने वालों पर भारी पड़ती है। चूँकि ज़्यादातर खिलाड़ी सरकार की गाइड लाइन्स का पालन करते हैं और शरीर से सुदृढ़ हैं इसलिए कोरोना उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। हेम चन्द के अनुसार कोरोना से ज़्यादा ख़तरनाक उसका डर है| चूँकि खिलाड़ी मजबूत जिगरे वाला होता है इसलिए बीमारी भी उससे डरती है।
दिल्ली खेल पत्रकार संघ(DSJA) के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार कन्नन श्रीनिवासन को नहीं लगता कि कोरोना या कोई भी बीमारी खिलाड़ी को हरा सकती है। उनके अनुसार अनेक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी कोरोनाग्रस्त हुए पर उन्हें ठीक होने में ज़रा भी वक्त नहीं लगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि वे दिल, दिमाग़ और शरीर से आम आदमी की तुलना में मजबूत हैं और खेल मैदान की तरह आम जीवन में भी लड़ने की बेहतर योग्यता रखते है। यही कारण है कि हमारे बहुत से हॉकी खिलाड़ी, पहलवान, बैडमिंटन खिलाड़ी कोरोना की चपेट में आए और ठीक होकर फिर से तैयारियों में जुट गए। लेकिन उनकी सलाह है कि सभी खिलाड़ी वैक्शीन ज़रूर लगवा लें ताकि ख़तरा खुद ब खुद कम हो जाए
सलाह नेक है, जल्दी करें।
शेष अगले अंक में (जारी…)