क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
कोरोना के चलते दुनिया भर के देशों में खेल गतिविधियां शिथिल पड़ी हैं लेकिन चूंकि टोक्यो ओलंपिक सिंर पर है इसलिए अधिकांश विदेशी खिलाड़ी पूरे अहतियात के साथ मैदान में उतर पड़े हैं। लेकिन भारतीय खेलों में गंभीर तैयारी जैसी बात नजर नहीं आ रही। फिलहाल सिर्फ़ और सिर्फ़ क्रिकेट चल रही है।
क्रिकेट टीम आस्ट्रेलिया में जीत के झंडे गाड़ने के बाद अब इंग्लैंड को अपने घर में दबोचने के लिए कमर कसे है। लेकिन हमारे ओलम्पिक खेलों का क्या हाल है, इस बारे में ना तो हमारा खेलमंत्रालय जानता है और ना ही विभिन्न खेलसंघ और खिलाड़ी अपनी तैयारियों के बारे में बता पा रहे हैं।
आईपीएल की नीलामी के बाद से तो तमाम खेल जैसे वेंटिलेटर पर है। करोड़ों में बिके क्रिकेट खिलाड़ियों ने उन्हें हैसियत का आईना जो दिखा दिया है। आईपीएल की नीलामी के बाद नरेंद मोदी स्टेडियम में मात्र दो दिन में मिली जीत ने भारतीय क्रिकेट टीम और खिलाड़ियों को स्टार बना दिया है। हर तरफ उनका स्तुतिगान चल रहा है।
बीच बीच में इंग्लिश खिलाड़ियों की कराहट भी सुनाई पड़ती है कि कैसे भारत ने स्पिन पिच बना कर उनका शिकार किया। देश के प्रचार माध्यमों में सिर्फ क्रिकेट को प्रचारित किया जा रहा है, हमेशा की तरह। बाकी खेल तो जैसे व्यवस्था की नाजायज संतानें हैं और क्रिकेट से उसे परहेज है।
ओलंपिक खेलों पर सरसरी नज़र डालें तो ज़्यादतर खेलों की सेहत अच्छी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले सौ सालों में हमारे खेल सौ कदम भी नहीं बढ़ा पाए हैं। आगे बढ़ना तो दूर कुछ खेल उल्टी चाल चल रहे हैं। मसलन हॉकी को ही लें आठ ओलम्पिक स्वर्ण जीतने के बाद से यह खेल पिछले 41 सालों से जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहा है।
फुटबाल की भी हवा फुस्स है। दो बार एशियाई खेलों के विजेता रहे, चार ओलम्पिक खेलों में भाग लिया लेकिन पिछले पचास सालों से भी अधिक समय से भारतीय फुटबाल पंचर हुई पड़ी है। तैराकी, एथलेटिक, जिम्नास्टिक में सबसे ज़्यादा पदक दाव पर रहते हैं। इन खेलों में आज तक एक भी भारतीय खिलाड़ी ओलम्पिक पदक नहीं जीत पाया। ले देकर कुश्ती, निशानेबाज़ी, मुक्केबाज़ी, बैडमिंटन, वेट लिफ्टिंग, टेनिस में ही भारत को ओलम्पिक पदक मिले हैं।
भले ही हमारा खेल मंत्रालय, भारतीय ओलम्पिक संघ, खेल संघ और खेल प्रशासक लाख दावे करें और झूठे आँकड़े परोसें लेकिन आम मां बाप यह मान चुका है कि क्रिकेट के अलावा किसी भी खेल में उनके बच्चे का भविष्य सुरक्षित नहीं है| यह भी सच है कि जब से आईपीएल में रुपयों की बरसात शुरू हुई है बाकी खेलों के लिए कहीं कोई उम्मीद नहीं बची है।
एक सर्वे से पता चला है कि क्रिकेट देश के हर बच्चे और युवा का पहला और पसंदीदा खेल बन चुका है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं कि क्रिकेट ओलंपिक खेल नहीं है। क्रिकेट के पीछे हर कोई अंधी दौड़ दौड़ रहा है और इसी अनुपात में बाकी खेलों को खेलने वाले लगातार घट रहे हैं। क्रिकेट में पैसे, शोहरत, मान सम्मान और चमक दमक ने बाकी खेलों को हाशिए पर रख दिया है।
सवाल यह पैदा होता है कि यदि सभी क्रिकेट खेलेंगे तो बाकी खेलों का क्या होगा? और क्या क्रिकेट की अंधी दौड़ बहुतों का भविष्य खराब नहीं कर देगी? अन्य खेलों की बड़ी पीड़ा यह भी है कि उनके चैम्पियन खिलाड़ियों की हैसियत किसी पिद्दी से क्रिकेटर जितनी भी नहीं है| पूर्व ओलंपियन और अन्य खिलाड़ियों की राय में देश का मीडिया सबसे बड़ा गुनहगार है। उसे बाकी खेल नजर नहीं आते। समाचार पत्र पत्रिकाएं , टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर बस क्रिकेट छाया रहता है।