क्लीन बोल्ड /राजेंद्र सजवान
कुश्ती जानकारों का मानना है कि छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती की शिक्षा दीक्षा पाने वाला रवि कुमार दहिया देश का ऐसा बड़ा पहलवान साबित हो सकता है, जिसकी उपलब्धियों की बराबरी करना आसान नहीं होगा। जिस आत्मविश्वास और सहजता के साथ उसने अपने पहले ओलंम्पिक में सिल्वर मेडल जीता, उसकी हर कोई तारीफ कर रहा है।
चपलता, तेज दिमाग और सूझ बूझ में वह दो ओलंम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार जैसा है तो किसी भी दिग्गज प्रतिद्वंद्वी को वह योगेश्वर की तरह तोड़ मरोड़ सकता है। उसके तरकश में इतने तीर हैं जिनके बारे में राष्ट्रीय कोच जगमिंदर ने टोक्यो रवाना होने से पहले विस्तार से बताया था।
लेकिन कभी कभार किसी के बारे में ज्यादा तारीफ कम भरोसे वाली लगती है। यही कारण है कि रवि को बहुत ज्यादा भाव नहीं मिल पाया था। लेकिन उसने अपने प्रदर्शन से खुद को साबित कर दिया है।
जगमिंदर जाने माने ओलंपियन रहे हैं, रवि और बजरंग पूनिया को उनकी पारखी नजर ने पहले ही पदक विजेता मान लिया था। लगभग दो दशक तक राष्ट्रीय कोच रहे राज सिंह जैसा पारखी शायद कोई और हो। सतपाल, करतार जैसे दिग्गजों के साथ जोर करने और दीक्षा देने वाले गुरु ने एक साक्षात्कार में रवि की खूबियों का बखान किया था और कहा था कि वह सुशील जैसा कूल और योगेश्वर जैसी आक्रामकता का धनी है।
भले ही द्रोणाचार्य महा सिंह राव और अर्जुन अवार्डी ओलंपियन राजीव तोमर गुरु हनुमान अखाडे से हैं लेकिन उन्हें छत्रसाल स्टेडियम के जांबाज पहलवानों पर हमेशा नाज़ रहा है। खासक्कर, सुशील और योगेश्वर उनके प्रिय पहलवानों में से हैं। महासिंह ने जिन पहलवानों पर नज़र रखने का विश्वास व्यक्त किया था उनमें रवि दहिया शीर्ष पर था।
खैर, अब रवि दहिया कमाल कर चुका है। उसने तमाम कुश्ती दिग्गजों की भविष्यवाणी को सही साबित कर दिखाया है। साथ ही वह यह भी मानता है कि उसकी कामयाबी में कोच सतपाल और वरिष्ठ पहलवान सुशील कुमार का बड़ा हाथ रहा है। रवि ने अपनी कामयाबी का श्रेय गुरु सतपाल और वरिष्ठ सहयोगी एवम कोच सुशील को देकर छत्रसाल अखाड़े को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।
भले ही एक अफसोस जनक प्रकरण के चलते दो ओलंम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार और छत्रसाल स्टेडियम की ख्याति को भारी नुकसान पहुंचा है लेकिन रवि की उपलब्धि ने छत्रसाल अखाड़े को आशा की किरण दिखाई है।
तारीफ की बात यह है कि टोक्यो ओलंम्पिक का टिकट पाने वाले सभी चार पुरुष पहलवानों का इस अखाड़े से करीबी रिश्ता है। विश्व चैंपियन बजरंग पूनिया, दीपक पूनिया और डोप टेस्ट में विफल रहे सुमित भी इसी अखाड़े की उपज रहे हैं। इन सभी ने सतपाल, रामफल और स्वर्गीय यशवीर की देखरेख में कुश्ती के दांवपेंच सीखे और अपने अखाड़े की कीर्ति को दुनियाभर में फैलाया।
सुशील और उसके साथी गुनहगार हैं या नहीं, फैसला कोर्ट को करना है लेकिन छत्रसाल स्टेडियम विश्व कुश्ती में एक बड़ा नाम और मुकाम हासिल कर चुका है। जो संस्था देश के मान सम्मान के साथ जुड़ी है और जो अखाड़ा भारत को पदक तालिका में गौरव का पर्याय है, उसको हर हाल में सरंक्षण देने और बनाए रखने की जरूरत है।
इस बारे में दिल्ली सरकार को फिर से सोचना होगा। अदालतें अपना काम कर रही हैं। उन पर भरोसा रखते हुए भारतीय कुश्ती के गढ़ को बचाने की चुनौती है। छत्रसाल जैसे अखाड़े रहेंगे तो भारत को शायद पदकों की कमी नहीं पड़ने वाली।
यदि भारत को सुशील, योगेश्वर, रवि दहिया, बजरंग पूनिया जैसे चैंपियन पैदा करने हैं तो छत्रसाल स्टेडियम की सुरक्षा और निरंतरता को हर हाल में बचा कर रखना होगा। बेशक, अखाड़े पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है ताकि कुश्ती की पवित्रता बनी रहे और देश को यूं ही चैंपियन पहलवान मिलते रहें।