क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
इसमें दो राय नहीं कि दद्दा ध्यानचन्द भारतीय हॉकी इतिहास के सबसे महान खिलाड़ी थे| उनके अलावा महानतम खिलाड़ियों की श्रेणी में सरदार बलबीर सिंह सीनियर का नाम लिया जाता है| बहुत कम लोग जानते हैं कि इन दोनों महान खिलाड़ियों की क्लास का एक और चैम्पियन था जिसका नाम रूप सिंह था, जिसे उनके बड़े भाई ध्यान चन्द अपने से बड़ा खिलाड़ी मानते थे|
संयोग से आज आठ सितंबर (1908) को उनका जन्मदिन है, जिसे देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय “दैनिक भास्कर” ने अपने मुख पृष्ठ पर स्थान देकर सराहनीय काम किया है| पहली बार किसी ने रूप सिंह के ओलम्पिक और अंतरराष्ट्रीय पदकों और उनके समाधि स्थल की बदहाली का मुद्दा उठाया है|
मेजर ध्यान चन्द से जब कभी उनके भाई रूप के बारे में पूछा गया तो उन्होने हमेशा कहा कि रूप उनसे किसी मायने में कमतर नहीं थे| वे ग़ज़ब के चैम्पियन थे और ज़रा सा ,मौका मिलते ही विपक्षी रक्षकों की कमर तोड़ डालते थे|
गोल जमाने की कला में वह अपने बड़े भाई की तरह थे और जब कभी साथ खेले दोनों ने मिल कर दुनिया के टाप रक्षकों को गाजर मूली की तरह काटा और गोल दागे| १९३२ के लास एंजेल्स और 1936 के बर्लिन खेलों में दोनों भाइयों ने ग़ज़ब का खेल दिखाते हुए भारत के लए स्वर्ण पदक जीते| लास एंजेलस्से में जापान और मेजबान अमेरिका की विरुद्ध क्रमश: 11 और 24 गोलों में से ज़्यादातर रूप सिंह की स्टिक से निकले थे|
बर्लिन ओलम्पिक में दोनों भाइयों ने मिलकर गोलों की झड़ी लगाई| एक डाल डाल तो दूसरा पात पात था| हंगरी, अमेरिका, जापान, फ्रांस और अंततः मेजबान जर्मनी को उनके हाथों बड़ी हारों का सामना करना पड़ा|
खुद बड़े भाई ने रूप की प्रशंसा करते हुए बयान दिया था कि हालाँकि उन्हें कप्तान होने और तीसरा ओलम्पिक गोल्ड जीतने की एवज में ज़्यादा लोकप्रियता मिली लेकिन छोटू का प्रदर्शन पूरे टूर्नामेंट में चर्चा का विषय दोनों भाइयों ने फाइनल में हिटलर की टीम पर टीन टीन गोल जमाए थे|
बर्लिन ओलम्पिक के शानदार प्रदर्शन के इनाम स्वरूप म्यूनिख की एक सड़क का नाम रूप सिंह के नाम पर रखा गया| 2012 के लंदन ओलम्पिक में महान हॉकी ओलम्पियनों ध्यानचन्द, लेस्ली क्लाडियास और रूप सिंह को याद किया गया और उनके नाम से मेट्रो स्टेशनो का नाम करण किया गया|
हालाँकि रूप सिंह के नाम पर भारत में भी स्टेडियम है लेकिन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में क्रिकेट मैदान है जिसे कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम नाम दिया गया है| लेकिन उन्हें बड़े भाई जैसा मान सम्मान क्यों नहीं मिल पाया? इस बारे में अलग अलग राय है|
ज़्यादातर का मानना है कि रूप बड़े भाई ध्यान की छाया में उबर नहीं पाए| वह हमेशा छोटे बने रहे या बड़े भाई के रहते उन्होने हमेशा सच्चे और अच्छे छोटे भाई की भूमिका बखूबी निभाई| उनका दुर्भाग्य रहा कि बड़े भाई से दो साल पहले 1977 में इस दुनिया से कूच कर गए|
पिताजी ठीक कहते थे-अशोक ध्यान चन्द के ओलम्पियन सुपुत्र एवम् विश्व कप 1975 की विश्व विजेता हॉकी टीम के स्टार खिलाड़ी अशोक ध्यान चन्द मानते हैं कि देश के आकाओं ने आज़ादी पूर्वके हॉकी चैम्पियनों के साथ न्याय नहीं किया|
ख़ासकर, चाचा रूप सिंह को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके हकदार थे| पिता जी को भारत रत्न नहीं मिला लेकिन रूप सिंह के नाम पर सड़कें और स्टेडियम बनाने का क्या औचित्य, जबकि उनके परिवार को कहीं से कोई सहायता नहीं दी गई|
दोनों भाई अपने बड़े परिवारों का लालन पालन करते हुए दुनिया से विदा हुए| वव इसलिए पिता जी से बेहतर खिलाड़ी थे क्योंकि पिता जी खुद कहते थे और उन्होने कभी भी झूठ नहीं बोला| वह यह भी मानते हैं कि पिता जी का कद बहुत बड़ा था, जिसकी छाया से उबरने का चाचा ने कभी प्रयास नहीं किया| दोनों भाइयों का प्यार और आदर सम्मान ही कुछ एसा था|