June 16, 2025

sajwansports

sajwansports पर पड़े latest sports news, India vs England test series news, local sports and special featured clean bold article.

खिलाड़ियों को नौकरी दें, धोखा नहीं! पाप लगेगा।

unemployment in sports

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

पिछले कुछ सालों से देश में बेरोज़गारों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है|। एक सर्वे  के अनुसार दस से बारह करोड़ शिक्षित बेरोज़गार बदहाली के शिकार हैं। यह सही है कि कोरोना काल में  कतार लगातार लंबी हो रही है ऐसे  में यदि केंद्र और राज्य की सरकारें खिलाड़ियों को नौकरी देने के विज्ञापन देती हैं तो इसे क्या कहा जाए? क्या खिलाड़ियों को तसल्ली दी जा रही है या सचमुच उनकी मुराद पूरी होने जा रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि निहित स्वार्थों और चुनावों  को देखते हुए सरकारें खिलाड़ियों को गुमराह कर रही हों?

देश के अधिकांश छोटे-बड़े शहरों में खेल कोटे की नौकरियों के लिए आवेदन माँगे जा रहे हैं। बिहार, उत्तराखंड, उतरप्रदेश, गोवा, असम, हिमाचल, महाराष्ट्र, राजस्थान, मणिपुर, सिक्किम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, तेलंगाना, केरल, पंजाब, हरियाणा, ओड़ीसा, झारखंड, छतीसगढ़ और तमाम राज्य खेल कोटे में नौकरी देने के लिए तैयार हैं और कहा यह जा रहा है कि लगभग एक लाख खिलाड़ियों को विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी, बैंक, बीमा कंपनियों, सेना, पुलिस, रेलवे और अन्य विभागों में श्रेष्ठता के आधार पर नौकरी दी जाएगी|

देर से ही सही भारत को खेल महाशक्ति बनाने का दम भरने वाली सरकारों को खिलाड़ियों की याद तो आई है। अब देखना यह होगा कि वर्षों से बेरोज़गार और बदहाल खिलाड़ियों में से कितनों को रोज़गार मिलता है|। कड़ुआ सच यह है कि देश में लगभग पचास लाख से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नौकरी खोज रहे हैं। उनमें से ज़्यादातर सरकारी विभागों में नौकरी पाने की आयु सीमा पार कर चुके हैं। 

हॉकी, फुटबाल, एथलेटिक, तैराकी, बैडमिंटन, टेनिस, टेबल टेनिस, वेट लिफ्टिंग, बास्केटबाल, वॉलीबाल, कुश्ती, बॉक्सिंग, जूडो, तायक्वांडो, जिमनास्तिक और दर्जनों अन्य ओलंपिक खेलों के अलावा, एशियाड, कामनवेल्थ खेलों और अन्य मान्यताप्राप्त खेलों के लाखों खिलाड़ी दर दर भटक रहे हैं। ऐसे लगभग 70 खेल ‘खेल कोटे’ में कवर होते हैं|

चूँकि खिलाड़ियों को पिछले कई सालों से बेरोज़गारी से दो-चार होना पड  रहा है इसलिए ज़्यादातर का सरकारों और उनके दावों पर से विश्वास उठ चुका है। कुछ बेरोज़गार खिलाड़ियों से बातचीत के बाद पता चला कि पिछले तीस सालों से कुछ गिने चुने और उँची पहुँच वालों को ही नौकरी मिली है। ख़ासकर, ऐसे खिलाड़ी जोकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं बना पाए, बेरोज़गारी के शिकार हैं। 

बेरोज़गारों के अनुसार ओलंपिक, एशियाड और अन्य अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में पदक जीतने वाले और देश के लिए खेलने वालों को तो जैसे तैसे नौकरी मिल जाती है पर राज्य और देश के लिए खेलने का लाभ कुछ किस्मत वालों को ही मिल पता है और उनमें से अधिकांश बेरोजगारों की कतार में सज जाते हैं।

सीधा सा मतलब है की खेल कोटा उस देश में महज़ धोखा बन कर रह गया है, जिसने 2028 तक अमेरिका और चीन को टक्कर देने का लक्ष्य निर्धारित किया है| क्या सरकारें नहीं जानतीं कि भूखे पेट भजन नहीं हो सकता।ज़ाहिर है खेलने और चैम्पियन खिलाड़ी बनने का दावा कितना खोखला है? कैसी बिदंबना है कि आज के भारत का युवा ना तो पढ़ लिख कर नवाब बन पा रहा है और खेल कूद कर भी खराब ही हो रहा है। नतीजा सामने है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र खेलों में सबसे फिसड्डी बन कर रह गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *