क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलंम्पिक में स्वर्ण पदक के प्रबल दावेदारों में पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को माना जा रहा है, क्योंकि दोनों का पिछला प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा है। एशियाड, कामनवेल्थ खेल, एशियन चैंपियनशिप और विश्व चैंपियनशिप में दोनों पहलवानों ने गज़ब का कौशल दिखाते हुए पदकों की झड़ी लगाई है। यही कारण है कि उन्हें स्वर्ण पदक के भारतीय दावेदारों में अव्वल स्थान प्राप्त है।
भले ही बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधू रियो ओलंम्पिक में रजत पदक जीत चुकी हैं और स्वर्ण जीतने वाली स्पेनिश खिलाड़ी चोट के कारण भाग नहीं ले रही। फिरभी सिंधु की दावेदारी विनेश और बजरंग से हल्की नज़र आती है। कारण, विनेश 53 किलो भार वर्ग में नंबर एक रैंकिंग पर है, जबकि बजरंग 65 किलो में नंबर एक पर विराजमान है। सिंधु छठे स्थान की खिलाड़ी है।
रियो ओलंम्पिक में विनेश घुटने की चोट के चलते बीच ओलंम्पिक में बाहर हुई थी। तब भी वह फुल फार्म में थी और इस बार भी कुश्ती विशेषज्ञ उसमें ओलंम्पिक पदक विजेता देख रहे हैं। बजरंग से भी ऐसी ही उम्मीद की जा रही है।
भारतीय कुश्ती के जानकार,पूर्व पहलवान और यहां तक कि विदेशी कोच भी विनेश और बजरंग में नया ओलंम्पिक चैंपियन इसलिए देख रहे हैं, क्योंकि दोनों ही पहलवान स्पीड और स्टेमिना से लबालब हैं और प्रतिद्वंद्वी को कम से कम समय में पटक डालने की चेष्टा में रहते हैं। अटैक के साथ साथ उनका डिफेंस भी लाजवाब है। कुश्ती पंडितों के अनुसार विनेश जैसी पहलवान अभी तक भारत में नहीं हुई जबकि बजरंग पूनिया में सुशील और योगेश्वर जैसा दमखम झलकता है।
अन्य भारतीय खेलों पर नज़र डालें तो मुक्केबाज अमित पंघाल भी विश्व रैंकिंग में नम्बर एक की पोजीशन पर है। उसने हाल के कुछ वर्षों में गजब का प्रदर्शन किया है। 2018 के एशियायी खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कई निशानेबाज भी पदक की दौड़ में शामिल हैं कुछ एक का प्रदर्शन उन्हें अभिनव बिंद्रा जैसी उपलब्धि दिला सकता है। हर तरफ से आवाजें उठ रही हैं कि भारतीय पुरुष हॉकी टीम मास्को ओलंम्पिक के बाद पहली बार स्वर्ण पदक की प्रबल दावेदार है। लेकिन सच यह है कि हॉकी कब का भरोसा खो चुकी है। उसे पहले पदक जीत कर दिखाना होगा।
हालांकि कुछ अन्य खेलों में भी दम भरा जा रहा है लेकिन विनेश और बजरंग जैसा जज्बा कहीं और शायद ही देखने को मिले। ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी ओलंम्पिक खेल में भारतीय खिलाड़ियों पर इस तरह का भरोसा किया जा रहा है। 2008 के बीजिंग ओलंम्पिक में अभिनव बिंद्रा भी ऐसा भरोसा नहीं जीत पाए थे लेकिन उन्होंने कर दिखाया। यह भी संभव है कि कुछ और पहलवान बाजी मार जाएं। लेकिन विनेश और बजरंग स्वर्णिम इतिहास रचने के काफी करीब हैं। बाकी किस्मत का खेल है।