क्लीन बोल्ड/ राजेन्द्र सजवान
विश्व फुटबाल के महानतम खिलाड़ी डियागो माराडोना के निधन से पूरी दुनिया में शोक की लहर है। दिवंगत आत्मा को वैसा ही सम्मान दिया जा रहा है जैसा 1986 में अर्जेंटीना की खिताबी जीत पर माराडोना को हीरो बना दिया गया था। बेशक, भारत में भी फुटबाल का जादू सर चढ़ कर बोलता है। यही कारण है कि पेले और माराडोना जैसे सितारा खिलाड़ियों को यहां भी पूजा जाता रहा है। खुद पेले और माराडोना जब भारत आये थे तो उन्होंने भारतीय फुटबाल प्रेमियों की दीवानगी को जमकर सराहा था। साथ ही हैरानी व्यक्त की थी कि क्यों भारत फुटबाल में बड़ी ताकत नहीं बन पाया!
भारत में शोक:
माराडोना के सम्मान में अर्जेंटीना में तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया तो भारत में भी ऐसा ही माहौल देखने को मिल रहा है। केरल ने दो दिन का शोक मनाया गया तो गोवा माराडोना की एक बड़ी प्रतिमा बनाने की घोषणा कर चुका है। बंगाल, आंध्र, तेलंगाना, महाराष्ट्र आदि प्रदेश भी माराडोना को अपने अपने तरीके से श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
मीडिया में बस माराडोना:
इसमें दो राय नहीं कि भारत में फुटबॉल और उसके स्टार ख़िलाडियों को सम्मान देने की परंपरा रही है। गोवा, केरल और पश्चिम बंगाल में फुटबॉल का जादू देखते ही बनता है। भले ही माराडोना विदेशी खिलाड़ी थे लेकिन देश भर के मीडिया ने उन पर जैसे ग्रन्थ लिख डाले। भारत में सभी अखबारों ने माराडोना पर विशेष संस्करण निकाले। डोनाल्ड ट्रम्प की हार पर भी ऐसा उबाल देखने को नहीं मिला। कोरोना काल में जबकि देश का मीडिया थकाऊ, उबाऊ और बिकाऊ हो चुका है, माराडोना का गुणगान देख कर लगा कि अब भी भारत में फुटबॉल की दीवानगी कम नहीं हुई है। लेकिन सवाल फिर वही कि भारत में फुटबॉल पिछड़ी क्यों है?
क्रिकेट नहीं फुटबाल:
भले ही भारत में क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल का दर्जा हासिल कर चुका है। लेकिन क्लीन बोल्ड इस भ्रांति को दूर करना चाहता है। सही मायने में क्रिकेट तब तक ही देखा जाता है जब टीम इंडिया अन्य देशों के साथ खेल रही हो। लेकिन फुटबाल तब भी देखी जाती है जब भारतीय राष्ट्रीय टीम मैदान में ना हो। अर्जेंटीना, इंग्लैंड, स्पेन, ब्राजील, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, पुर्तगाल और तमाम चैंपियन जब एक दूसरे के विरुद्ध खेलते हैं तो उनकी जीत-हार के लिए सबसे बड़ा दांव भारत में खेला जाता है। विश्व कप, यूरोपियन लीग और तमाम अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों को भारतीय फुटबाल प्रेमी करोड़ों की संख्यामें देखते हैं।
मौत तो अपनी फुटबाल की भी हुई है!:
कई अवसरों पर अपनी प्रिय विदेशी टीम की हार पर भारत में आत्महत्याएं भी हुईं। लेकिन भारतीय टीम की हार पर हमारे वही फुटबाल प्रेमी जान नहीं गालियां देते मिलेंगे। अपने देश में पेले, माराडोना, मेस्सी, रोनाल्डो जैसे स्टार खिलाड़ियों को सम्मान देने, उनके खेल पर मर मिटने का जुनून तो देखने को मिलेगा लेकिन फेडरेशन और फुटबाल के तमाम हत्यारों को कोसने का साहस शायद ही कोई दिखा पाता हो। आबादी के हिसाब से भारत में दुनियां के सबसे ज्यादा फुटबाल प्रेमी हैं। लेकिन यह भी सच है कि ज्यादातर ढोंगी और तमाशेबाजी हैं। क्या उन्हें भारतीय फुटबाल की मौत का जरा भी अहसास नहीं है?
Bhai saab Bharat 600 saal muglo ka aur 200 saal angrezo ka gulam raha hai….yei gulami wali mansikta jaanei mei samay lagegga…..apno ka anadar aur bahari khiladio pei rehmo karam inki purani addat hai…….
Maradona ek mahan khiladi thaa….kisi ko bhi koi shaq nhi…..hai…shardhanjali bhi thhek…hai par aoni khelo ki dasha aur disha ko nhi bhoolna chayri ,khas taur pei football ka……⚽
Jisko drkho cricket premi hai…jaise baki koi aur khel hai he nhi…. football sangh ko aur state association ns ko football ko aagei lanei kei liyei kadi mehnat krni hogi.🙏⚽🍁