कोरोना काल में न जाने कितने परिचित और करीबी चले गए। फिलहाल यह सिलसिला थोड़ा थमा ही था कि मंगलवार सुबह एक दुख भरी खबर आई की, 1983 विश्व कप क्रिकेट टीम के सदस्य यशपाल शर्मा का हार्ट अटैक से निधन हो गया।
यह बात सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ। हर कोई जानका होगा कि यशपाल शर्मा विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रहें है। लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि वह कितने सरल और साफ बात करने वाले क्रिकेटर थे।
मेरी मुलाकात उनसे एक क्रिकेटर के रूप में कम एक बडे भाई के रूप में अधिक थी। वह अक्सर मुझे शैतानी पत्रकार कहा करते थे। क्योंकि मैं अक्सर उनके बारें में कुछ ना कुछ अपने तत्तकालीन अखबार दैनिक जागरण में लिख दिया करता था। वह तब दिल्ली क्रिकेट के चयनकर्ता या कोच हुआ करते थे, जिसके चलते चयन को लेकर होने वाले वाद विवाद पर ज्यादा बहस होती थी।
यशपाल काफी हंसमुख किस्म के व्यक्ति थे।
अक्सर वह वर्ष 1979 में अपने पहले पाकिस्तानी दौरे की चर्चा किया करते थे। वह कहते थे कि पंजाब का होने के कारण मैं पाकिस्तानी क्रिकेटरों से पंजाबी में ही बात किया करता था। जब मैं अपने पहले एक दिवसीय मैच में बल्लेबाजी के लिए उतरा तब तक मैं पाकिस्तानी क्रिकेटरों के बीच पंबाजी होने के कारण काफी लोकप्रिय हो चुका था।
जिन्ना स्टेडियम पर मैं जब बल्लेबाजी के लिए आया तो मैंने उस मैच के अंपायर शकूर राणा से पंजाबी में कहा कि करियर समाप्त हो जाएगा अगर बिना रन बनाए वापस गया तो।
पाकिस्तानी अंपायरों के बारे में तो उस दौरान सभी जानते थे कि इमरान खान ने अपील की और बल्लेबाज आउट। ऐसे में पहली स्लिप में खडे तत्कालीन कप्तान व वर्तमान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने शकूर राणा को कहा कि ऐ मुंडा पंजाब दा हैं, ध्यान रखना। उस मैच में मैंने जैसे ही 50 रन बनाए तो शकूर राणा ने कहा अब तो टीम में जगह पक्की हो गई पुतर। बस अगली गेंद पर मुझे पैड पर लगते ही पगबाधा आउट दे दिया गया।
यशपाल ऐसे स्वभाव के क्रिकेटर थे कि जो कोई भी उनको किसी कार्यक्रम में बुलाता था तो वह सीधे अपनी ही गाडी में पहुंच जाते थे। हालांकि मुझे उन्होंने अपनी बेटी के जन्मदिन पर घर में आयोजित जागरण में निमंत्रण दिया था। उस जागरण में मैं ही एक मात्र पत्रकार था, जिसको निमंत्रण भेजा था। यह बात खुद यशपाल जी ने मुझे बताई थी। मुझे वह अक्सर कहा करते थे कि उनको अपने लोगों का जो प्यार मिलता है वह किसी से कम नहीं है। वह अम्पायरिंग की भूमिका में भी रहे है।
एक बार का किस्सा है गोस्वामी गणेश दत्त क्रिकेट में दिल्ली पुलिस का मैच था, वह मैच टाई हो गया। लेकिन निर्णय की बात हुई तो उन्होंने आयोजकों को बताया कि टाई में मैच का निर्णय कैसे होगा व कितने समय तक मैच खेला जाएगा, निर्धारित नहीं है। इसी पर विवाद भी बना हुआ था। विवाद ना सुलझने पर यशपाल के कहने पर ही उस मैच की टीम ने पुन; मैच खेलने का फैसला स्वीकार किया।
यशपाल शर्मा जी के बारें में कहने के लिए तो बहुत कुछ है, मगर उनको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। मैं केवल इतना ही कहूँगा कि ईश्वर उनको अपने चरणों में स्थान दें।