क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
क्रिकेट वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में न्यूजीलैंड के हाथों मिली हार के बाद से भारतीय क्रिकेट टीम, खिलाड़ियों और क्रिकेट बोर्ड की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। भले ही टीम इंडिया के हाथ से पहला खिताब निकल गया लेकिन भारतीय क्रिकेट बोर्ड, टीम प्रबंधन, मैनेजर रवि शास्त्री कप्तान विराट कोहली और तमाम खिलाड़ी ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। यहां तक कि आम भारतीय क्रिकेट प्रेमी भी यह मान रहा है कि हार जीत खेल का हिस्सा है।
लेकिन पता नहीं क्यों हमारे मीडिया के पेट में लगातार मरोड़े पड़ रहे हैं। भारत महान केअधिकांश खेल (क्रिकेट)पत्रकारों का गुस्सा आज तक ठंडा नहीं पड़ा है। रह रह कर मीडिया द्वारा बीसीसीआई , खिलाड़ियों और टीम प्रबंधन को निशाना बनाया जा रहा है। किसी को विराट कोहली की कप्तानी में खोट नजर आता है तो दूसरा बल्लेबाजों को कोस रहा है।
कप्तान कोहली को बुरा भला कहा जा रहा है, उनकी कप्तानी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं तो ऋषभ पंत, पुजारा और कई अन्य को हार का जिम्मेदार बताया जा रहा है। यह सब सोशल मीडिया पर चल रहा है और कई नामी गिरामी और तथाकथित क्रिकेट एक्सपर्ट्स चटकारे ले ले कर अपनी भड़ास मिटा रहे हैं। यह हाल तब है जबकि टोक्यो ओलंपिक को शुरू होने में तीन सप्ताह का समय बचा है।
सभी जानते हैं कि क्रिकेट ओलंपिक खेल नहीं है। फिरभी यह खेल देश का नंबर एक खेल बना हुआ है। बेशक, हमारे प्रचार माध्यमों ने क्रिकेट को अव्वल दर्जा दिया है। सालों से यह खेल भारतीय ओलंपिक खेलों के निशाने पर रहा है पर इसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया।
उल्टे क्रिकेट ने अपनी लोकप्रियता से बाकी खेलों को अपना दास बना कर रख दिया है। टोक्यो ओलंपिक के लिए भारतीय दल को दस करोड़ की मदद देना बताता है कि हमारे बाकी खेल क्रिकेट के सामने कितने बौने हैं। पहले भी क्रिकेट बोर्ड अपनी अथाह कमाई में से कुछ टुकड़े बाकी खेलों पर फेंकता रहा है।
खुद को क्रिकेट का विद्वान बताने वाले और अलग अलग कोण से क्रिकेट को कोसने वालों में जो घमासान मचा है उसे देख कर लगता है कि एक मैच हारने पर भारतीय क्रिकेट की जैसे दुनिया ही उजड़ गई हो। मीडिया के इस पागलपन पर आम क्रिकेट प्रेमी भी खूब मजे ले रहा है।
खैर, ओलंपिक शुरू होने में ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। बेहतर होगा देश के तमाम प्रचार माध्यम अपना क्रिकेट ज्ञान फिलहाल कुछ दिन के लिए ठंडे बस्ते में डाल दें। यह न भूलें की असल खिलाड़ी वह है जो ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करता है। उन खिलाड़ियों की खोज खबर भी जरूरी है, जो चार साल और सालों साल ऐसे मौके का इंतजार करते हैं।
होना यह चाहिए था कि देश के तमाम समाचार माध्यम ओलंपिक खेलों की खोज खबर लेते, देश के खिलाड़ियों , कोचों और खेल संघों का मनोबल बढ़ाया जाता।लेकिन सोशल मीडिया पर सिर्फ़ और सिर्फ क्रिकेट छाया है और कई जाने माने विद्वान लोग भी अश्लील भाषा में क्रिकेट और क्रिकेट खिलाड़ियों को गरियाते मिल जाएंगे। बाकी खेलों की किसी को खबर तक नहीं । फिर भला हम अपने ओलम्पियनों और सपोर्ट स्टाफ़ का मनोबल कैसे बढ़ा सकते है? ऐसे कैसे हम खेल महाशक्ति बन सकते हैं?
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