उत्तराखंड में क्रिकेट और क्रिकेटरों के लिये अपार संभावनाएं हैं, लेकिन उत्तराखंड क्रिकेट का ढांचा शुरू से इस तरह से रचा बुना गया कि यहां के क्रिकेटरों का उचित मंच नहीं मिल पाया। इसके बावजूद कई खिलाड़ियों ने दूसरे राज्यों की तरफ से खेलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी चमक बिखेरी।
भला महेंद्र सिंह धौनी, ऋषभ पंत या मनीष पांडे के नाम से कौन वाकिफ नहीं होगा लेकिन जब इन खिलाड़ियों पर चर्चा होती है तो आगे होता है वह राज्य जिसका ये खिलाड़ी प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। ऐसे में उत्तराखंड कहीं नेपथ्य में खो जाता है।
आखिर क्या थे ऐसे कारण कि नवंबर 2000 में राज्य का दर्जा मिलने के बावजूद उत्तराखंड क्रिकेट में आगे नहीं बढ़ पाया। धौनी ने जिस झारखंड राज्य का प्रतिनिधित्व किया उसे भी नवंबर 2000 में ही राज्य का दर्जा मिल गया था लेकिन उसे भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) से मान्यता हासिल करने और धौनी जैस धुरंधर विश्व क्रिकेट को देने में देर नहीं लगी।
नवंबर 2000 में तीन नये राज्यों का गठन हुआ था। छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड। उत्तराखंड नौ नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर भारत का 27वां राज्य बना था। उत्तरप्रदेश तब बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त सदस्य था और इसलिए उत्तराखंड को मान्यता नहीं दी गयी। यही स्थिति एक नवंबर 2000 को अस्तित्व में आये छत्तीसगढ़ की थी जो मध्यप्रदेश से अलग हुआ था।
झारखंड का मामला भिन्न था। जब झारखंड राज्य बना था तब बीसीसीआई अध्यक्ष एसी मुथैया ने बिहार क्रिकेट संघ को मान्यता दी थी लेकिन इसके कुछ महीने बाद जगमोहन डालमिया बोर्ड अध्यक्ष बन गये और उन्होंने बिहार की मान्यता समाप्त करके झारखंड राज्य क्रिकेट संघ को बीसीसीआई का सदस्य बना दिया। झारखंड की टीम नवंबर 2004 से रणजी ट्राफी में भी खेल रही है। छत्तीसगढ़ भी एसोसिएट सदस्य बन गया और 2016 में उसे पूर्ण सदस्य की मान्यता मिल गयी।
अब 15 दिन के अंदर अस्तित्व में आने वाले तीन राज्यों में से केवल उत्तराखंड ही बच गया है जिसे कि बीसीसीआई से मान्यता नहीं मिली थी। उत्तराखंड की तरफ से प्रयास भी किये गये लेकिन इस पहाड़ी राज्य से एक नहीं पांच संघ थे … उत्तराखंड क्रिकेट संघ, यूनाईटेड क्रिकेट संघ, अभिमन्यु क्रिकेट संघ, उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन और क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तरांचल।
हर कोई चाहता था कि उसके संघ को मान्यता मिले। इस धींगामुश्ती के कारण उत्तराखंड पिछड़ गया क्योंकि कई संघ होने के कारण बीसीसीआई ने भी दिलचस्पी नहीं दिखायी और उत्तराखंड क्रिकेट की स्थिति बिहार जैसी हो गयी। बिहार में भी तीन क्रिकेट संस्थाओं में आपस में धींगामुश्ती चल रही थी।
बीसीसीआई से मान्यता हासिल करने की खातिर जनवरी 2015 में उत्तराखंड क्रिकेट संघ, अभिमन्यु क्रिकेट संघ और यूनाईटेड क्रिकेट संघ ने एक मंच पर आने का फैसला किया। इस बैठक में उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन और क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तरांचल (उत्तराखंड) ने हिस्सा नहीं लिया।
बीसीसीआई ने बिहार और उत्तराखंड को मान्यता देने के लिये अगस्त 2015 में एक तदर्थ समिति बनायी। पंजाब क्रिकेट संघ के एम पी पांडोव उत्तराखंड के लिये बने पैनल के अध्यक्ष थे। उत्तराखंड में इसके बाद भी उत्तराखंड क्रिकेट संघ यानि यूसीए और क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड में आपस में ठनी रही और राज्य के क्रिकेटरों को दूसरे राज्यों विशेषकर दिल्ली से खेलने के लिये मजबूर होना पड़ा।
वह तो भला हो उच्चतम न्यायालय से नियुक्त न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा समिति की जिसने बीसीसीआई से प्रत्येक राज्य को मान्यता देने के लिये कहा और बोर्ड को उसे मानना पड़ा। उत्तराखंड को रणजी ट्राफी और अन्य राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेलने का मौका मिला।
उत्तराखंड की टीम को 2018-19 में प्लेट ग्रुप में रखा गया था और अगले सत्र में वह ग्रुप सी में खेला था, लेकिन वह अधिकतर बाहरी खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर ही निर्भर रही। स्थानीय खिलाड़ियों कुछ अवसरों पर ही अपनी छाप छोड़ पाये। इन खिलाड़ियों में सौरभ रावत और वैभव पंवार भी शामिल थे।
ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के खिलाड़ियों में प्रतिभा नहीं है, असल में इस पहाड़ी राज्य में हिमाचल प्रदेश की तरह क्रिकेट का ढांचा तैयार नहीं हो पाया है। देहरादून के एक स्टेडियम को छोड़ दिया जाए तो आज भी राज्य में कोई स्तरीय स्टेडियम नहीं है।
देश के विभिन्न शहरों में क्रिकेट अकादमियां कुकरमुत्तों की तरह उग गयी हैं लेकिन उत्तराखंड अब भी अदद अकादमियों से वंचित हैं। उत्तराखंड में असली खेल प्रतिभा गांव में छिपी है जिसकी पहचान करना जरूरी है और इसके लिये उत्तराखंड क्रिकेट संघ को सार्थक कदम उठाने चाहिए क्योंकि उत्तराखंड मूल के कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रदर्शन से साबित किया है कि मौका मिलने पर वे भी अपनी छाप छोड़ सकते हैं।
अगर ऐसे खिलाड़ियों का जिक्र करें तो इनमें सबसे ऊपर धौनी का नाम होगा जो मूलरूप से कुमांऊ के रहने वाले हैं लेकिन उनकी परवरिश झारखंड में हुई। वह पहले बिहार और फिर झारखंड की तरफ से खेले। वह खुद को झारखंड का ही मानते हैं।
भारतीय टीम में शामिल एक अन्य खिलाड़ी मनीष पांडे कर्नाटक की तरफ से खेलते हैं लेकिन उनका जन्म नैनीताल में हुआ और बचपन भी यहीं बीता था। भारतीय टीम के वर्तमान विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत मूल रूप से कुमांऊ के रहने वाले हैं, लेकिन वह अपनी क्रिकेट को निखारने के लिये दिल्ली चले गये।
उत्तराखंड में क्रिकेट को अच्छा ढांचा न होने के कारण कोई भी क्रिकेटर दिल्ली जैसी बड़ी टीम का हिस्सा बनना चाहता है और ऋषभ को इसका फायदा भी मिला। आज वह धौनी के उत्तराधिकारियों की कतार में सबसे आगे खड़े हैं।
दिल्ली की रणजी टीम में उत्तराखंड के कई खिलाड़ी खेलते रहे हैं। एक समय में एन एस नेगी और कुलदीप
रावत दिल्ली का टीम का हिस्सा थे। उन्मुक्त चंद एक समय दिल्ली की टीम के नियमित सदस्य थे और
उसकी कप्तानी भी कर चुके थे। बाद में उन्हें जब दिल्ली की टीम में जगह नहीं मिली तो फिर उन्होंने उत्तराखंड का रुख किया और अब अपने गृह राज्य की टीम का हिस्सा हैं। उन्मुक्त प्रतिभाशाली बल्लेबाज हैं लेकिन वह अपनी प्रतिभा से न्याय नहीं कर पाये। उम्मीद है कि उत्तराखंड की तरफ से अच्छा प्रदर्शन करके वह भारतीय क्रिकेट के आकाओं का ध्यान अपनी तरफ खींचेंगे।
पवन सुयाल ने क्रिकेट का ककहरा पौड़ी गढ़वाल के अपने गांव में सीखा था लेकिन बाद में दिल्ली की टीम से जुड़ गये। वह बहुत अच्छे तेज गेंदबाज हैं तथा आईपीएल में मुंबई इंडियन्स की तरफ से खेलते हैं। पवन नेगी बायें हाथ का स्पिनर होने के साथ निचले क्रम के अच्छे बल्लेबाज भी है। वह भारत की तरफ से एक टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच भी खेल चुके हैं। नेगी आईपीएल में चेन्नई सुपरकिंग्स और दिल्ली डेयरडेविल्स की तरफ से खेलते रहे हैं।
दिल्ली के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज पुनीत बिष्ट भी उत्तराखंड के हैं। वह पहले दिल्ली की तरफ से खेलते थे लेकिन बाद में जम्मू कश्मीर की तरफ से खेलने लग गये थे। अभी अनुज रावत दिल्ली की टीम में विकेटकीपर बल्लेबाज की भूमिका निभा रहे हैं। कभी राजस्थान की तरफ से खेलने वाले रोबिन बिष्ट ने एक समय अपनी बल्लेबाजी से महान सुनील गावस्कर को भी प्रभावित किया था।
उन्होंने 2011-12 सत्र में रणजी ट्राफी में सर्वाधिक रन बनाये थे और तब गावस्कर ने भी उनकी प्रशंसा की थी। रोबिन उत्तराखंड के रहने वाले हैं। उनके छोटे भाई चेतन बिष्ट भी राजस्थान के विकेटकीपर बल्लेबाज रहे हैं। राजस्थान की रणजी टीम से युवा बल्लेबाज सिद्धांत डोभाल भी खेले हैं जिनके पिता संजय डोभाल दिल्ली के नामी कोच थे।
राजस्थान की टीम में ही कभी नवीन नेगी विकेटकीपर बल्लेबाज हुआ करते थे। उत्तरप्रदेश से दिग्विजय सिंह रावत ने छह प्रथम श्रेणी मैच खेले थे। वे भी उत्तराखंड के हैं। उत्तराखंड के कई युवा क्रिकेटर भी विभिन्न राज्यों की जूनियर टीमों का हिस्सा रहे हैं।
पंजाब के पूर्व तेज गेंदबाज अमित उनियाल पौड़ी जिले के सांगुड़ा गांव के रहने वाले हैं। वह पंजाब की तरफ से 28 रणजी मैच खेलने के अलावा राजस्थान रायल्स के लिये आईपीएल में भी खेले थे। अमित अब चंडीगढ़ में कोचिंग अकादमी चलाते हैं।