September 17, 2025

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कुश्ती में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा: राज सिंह

राजेंद्र सजवान

पेरिस ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाले भारतीय पहलवान अमन सेहरावत को जग्रेब विश्व चैंपियनशिप से खाली हाथ और शायद गुस्से और अपमान के साथ लौटना पड़ा है। इसलिए क्योंकि उसका वजन एक किलो 700 ग्राम अधिक पाया गया और आयोजकों ने उसे पहले ही राउंड में प्रतियोगिता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अमन का मामला कुछ-कुछ विनेश फोगाट जैसा है। विनेश ने पेरिस ओलम्पिक में गज़ब का प्रदर्शन करते हुए ओलम्पिक चैंपियन को तो हराया लेकिन मात्र सौ ग्राम वजन बढ़ जाने के कारण उसे पदक से हाथ धोना पड़ा था। बाद में इस प्रकारण के चलते बड़ा बवाल मचा था।

   सवाल यह पैदा होता है कि हमारे पहलवान वजन के फेर में क्यों फंस रहे हैं। विनेश की तरह अमन भी छोटे भार वर्ग का बड़ा पहलवान है यही कारण है कि उसकी चर्चा भी आम है। लेकिन दोष किसका है? “पहलवान, उसके कोच और सपोर्ट स्टाफ पर ऊँगली उठना स्वाभाविक है, यह कहना है देश के सबसे  व्योवृद्ध, सबसे अनुभवी और कोचिंग के दिग्गज, पूर्व राष्ट्रीय कोच राज सिंह का। देश को कई दर्जन अंतर्राष्ट्रीय पहलवान और गुरु खलीफा देने वाले गुरु हनुमान अखाड़े के पहलवान और सफलतम अंतर्राष्ट्रीय कोच राजसिंह गंभीरता की कमी और अपने दायित्व के निर्वाहन में लापरवाही को बड़ा कारण मानते हैं। सुशील कुमार और बजरंग पूनिया के ओलम्पिक पदकों का सबसे बड़ा क्रेडिट यदि किसी को जाता है तो द्रोणाचार्य राजसिंह की रणनीति और उनके चातुर्य को।

हालांकि दोनों ही पहलवान छत्रसाल स्टेडियम स्थित अखाड़े में गुरु सतपाल की देखरेख में आगे बढ़े लेकिन सुशील का रजत और बजरंग का कांस्य इसलिए संभव हो पाया क्योंकि महीनों तक चले प्रशिक्षण शिविर में राजसिंह और उनके सपोर्ट स्टाफ ने दोनों पहलवानो के खान पान और वजन पर कड़ी नज़र रखी। राज सिंह मानते हैं कि जगमिंदर एक अच्छे और अनुभवी कोच हैं लेकिन उनका सपोर्ट स्टाफ कितना काबिल है यह मायने रखता है। उनके अनुसार अमन का वजन बढ़ना भारतीय कुश्ती की कमजोर कड़ी को उजागर करता है। बेशक़, सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा। सिर्फ कोच पर ऊँगली उठाना ठीक नहीं होगा। सच तो यह है कि फेडरेशन का रवैया भी ठीक नहीं है और पहलवान का वजन बढ़ने का मतलब है कि भारतीय कुश्ती का वजन घट रहा है।

   सुशील और योगेश्वर सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय पहलवानों की कामयाबी में बड़ी भूमिका निभाने वाले  राजसिंह अकेले श्रेय लूटने की बजाय टीम वर्क को महत्व देते हैं। उनके अनुसार हर दम चौकस रहने की जरूरत होती है। लन्दन ओलम्पिक में सुशील, योगेश्वर और अन्य पहलवानों के करीब रहते थे। ट्रेनिंग, खान-  पान, सोना बाथ सब कुछ एक साथ करते थे। यही कारण है कि उनके कोच रहते भारतीय पहलवानों पर कभी ऊँगली भी नहीं उठी।

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